पूर्व सीएम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा की कमजोरियां भुनाने में जुटी राजद-कांग्रेस?
सिटी पोस्ट लाइवः महागठबंधन में शामिल दो प्रमुख दल पूर्व सीएम जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा और उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा बड़े उथल-पुथल वाले हालात से जूझ रहे हैं। रालोसपा से पूर्व केन्द्रीय मंत्री नागमणि की विदायी हो गयी है और ‘हम’ से दानिश रिजवान और वृषिण पटेल विदा हो गये हैं। ‘हम’ में रिजवान की वापसी होगी या नहीं यह अभी तय नहीं है लेकिन वृषिण पटेल के बारे में पूर्व सीएम मांझी ने साफ किया है कि उनपर पार्टी फंड में गड़बड़ी का आरोप है और पार्टी में उनकी वापसी नहीं होगी। रालोसपा में नागमणि को सीएम नीतीश कुमार की तारीफ मंहगी पड़ी और वे पार्टी से चलता कर दिये गये। तो महागठबंधन में शामिल इन दो दलों में भूचाल है कह सकते हैं कि अंर्तकलह खुलकर सामने आया है पार्टी से महत्वपूर्ण नेताओं की विदाई हो गयी है। सवाल यह है कि क्या रालोसपा और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा में जो कलह सुलगी है उससे महागठबंधन को कोई नुकसान होगा या फिर यह नुकसान इन पार्टियों का अपना व्यक्तिगत नुकसान है? जवाब के लिए महागठबंधन में मची सीटों की खींचतान को जेहन में रखना होगा।
महागठबंधन में सीटों की खींचतान खत्म नहीं हो रही है। महागठबंधन में शामिल तकरीबन सभी दलों के नेता रांची के रिम्स जाकर राजद सुप्रीमो लालू यादव से मुलाकात कर आए हैं। हर मुलाकात के बाद दावा था कि खरमास खत्म होगा तो सीटों का पेंच सुलझ जाएगा। खरमास खत्म हो गया, लेकिन सीटों का पेंच नहीं सुलझा फिर कयास लगे कि 3 फरवरी को गांधी मैदान में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की जन आकांक्षा रैली खत्म हो जाएगी तो सीटों पर फैसला भी सामने आ जाएगा लेकिन खरमास की तरह रैली भी खत्म हो गयी लेकिन महागठबंधन में सीटों की मगजमारी आसान नहीं हुई। सीट शेयरिंग को लेकर जो उलझन है उसकी जो महत्वपूर्ण वजह सामने आती है वो यह कि रालोसपा, राजद, कांग्रेस हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा, वीआईपी पार्टी सभी दल अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाओं के हिसाब से सीटें चाहते हैं। अपेक्षा इतनी है कि कम मिले तो उपेक्षा का अहसास हो, राजद-कांग्रेस तो अधिकत्तम लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं। अगर खबरों को सही मानें तो राजद और कांग्रेस बिहार में जितनी सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है उसमें सहयोगियों के लिए कुछ बचता हीं नहीं है एक या दो सीटें भी मिलें तो बहुत है। ऐसे में जाहिर है फैसला लेना आसान नहीं हो पा रहा था।
लालू यादव जैसे राजनीति के दिग्गज भी सीटों का पेच सुलझा नहीं पा रहे थे लेकिन अब रालोसपा और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के अंदखाने मचे तूफान ने राजद या कांग्रेस की राह आसान कर दी है। इस तूफान से तकरीबन यह सुनिश्चित हो गया है कि हाल के दौर में कमजोर पड़े इन दो दलों को राजद और कांग्रेस इनकी हैसियत बताएगी और वही हिस्सेदारी देगी जो राजद या कांग्रेस तय करेगी। कह सकते हैं अगर सीटों की हिस्सेदारी के लिहाज से देखें तो ‘हम’ और रालोसपा के अंदर के भूचाल ने राजद कांग्रेस को फायदा पहुंचाया है और उनके लिए यह फैसला आसान कर दिया है कि दूसरे सहयोगियों को हिस्से में क्या और कितना दिया जाए। बड़े राजनीतिक उथल-पुथल से जूझ रही ‘हम’ और रालोसपा बैकफुट पर है, विकल्प सीमित है, चुनाव में वक्त नहीं है ऐसे में इनकी सियासत एक सीमित दायरे में उलझ कर रह गयी है, राजनीति में इनका रास्ता बेहद संकीर्ण है और इस सर्कीणता का अहसास राजद-कांग्रेस को है इसलिए माना जा रहा है कि बारगेनिंग अब आसान होगी। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हाल के दिनों में रालोसपा और ‘हम’ के अंदरखाने जो राजनीतिक भूचाल आया है या अंर्तकलह मची है वो इन पार्टियों का व्यक्तिगत नुकसान है और कई मायनों में राजद-कांग्रेस को फायदा हीं हुआ है।
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