City Post Live
NEWS 24x7

झारखंड विधानसभा चुनाव : रघुवर दास बने बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह

-sponsored-

-sponsored-

- Sponsored -

झारखंड विधानसभा चुनाव: रघुवर दास बने बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह.

सिटी पोस्ट लाइव :  झारखंड में पहली बार लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री बने रहने का रिकॉर्ड बनाने वाले रघुवर दास को झारखण्ड की जनता ने बाहर का रास्ता दिखा दिया है. चुनावों से पहले ‘अपकी बार 65 पार’ का नारा देने वाली बीजेपी 25 सीटों तक आते आते ही हांफने लगी है. हेमंत सोरेन के सत्ता में वापसी तय हो गई है.

बीजेपी की इस बड़ी हार की कई वजहें हैं. लोगों का मानना है कि मुख्यमंत्री रघुबर दास की व्यक्तिगत छवि भी इस हार की सबसे बड़ी वजह है. इसके अलावा बीजेपी के केंद्रीय स्तर पर चले कुछ कार्यक्रम और केंद्र व राज्य सरकार के कुछ फैसलों के कारण बीजेपी की झारखंड में हार हुई. राजनीतिक पंडितों के अनुसार  पिछले कुछ सालों के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास की व्यक्तिगत छवि काफी ख़राब हो गई थी. एक तबके को ऐसा लगने लगा था कि मुख्यमंत्री अहंकारी हो गए हैं.इससे पार्टी के अंदरखाने भी नाराजगी थी. तब बीजेपी में रहे और अब रघुबर दास के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान में डटे सरयू राय ने कई मौक़े पर पार्टी फोरम में यह मुद्दा उठाया, लेकिन नेतृत्व ने उनकी आपत्तियों पर ध्यान नहीं दिया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष व गृहमंत्री अमित शाह हर बार रघुवर दास की पीठ थपथपाते रहे. इस कारण रघुबर दास के विरोधी ख़ेमे मे नाराज़गी बढ़ती चली गई. यह बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह बताई जा रही है. भूमि क़ानूनों में संशोधन ही आदिवासियों की नाराजगी की वजह बनी. आदिवासियों के ज़मीन संबंधी अधिकारों की रक्षा के लिए बने छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (सीएनटी) और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम (एसपीटी) में संशोधन की भाजपा सरकार की कोशिशों का राज्य के आदिवासियों पर बड़ा प्रभाव पड़ा. विधानसभा में विपक्ष के वॉकआउट के बीच पारित कराए गए संशोधन विधेयक पर गृह मंत्रालय तक ने आपत्ति जताई.विपक्ष ने सदन से सड़क तक यह लड़ाई लड़ी और राष्ट्रपति से इस विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करने का अनुरोध किया.आपत्तियों के बाद राष्ट्रपति ने इस विधेयक को वापस लौटा दिया. फिर सरकार ने इसे दोबारा नहीं भेजा और ये संशोधन नहीं हो सके. इसके बावजूद राज्य भर के आदिवासी समाज में इसका गलत मैसेज गया. बीजेपी आदिवासियों को यह समझाने में नाक़ाम रही कि ये संशोधन कथित तौर पर आदिवासियों के पक्ष में थे.

 भूमि अधिग्रहण क़ानून मे संशोधन की कोशिश भी बीजेपी पर भारी पड़ा. भूमि अधिग्रहण क़ानून की कुछ धाराओं को ख़त्म कर उसमें संशोधन की कोशिश भी आदिवासियों की नाराज़गी का कारण बनी.विपक्ष ने एक निजी कंपनी के पावर प्लांट के लिए गोड्डा में हुए ज़मीन अधिग्रहण के दौरान लोगों पर गोलियां चलवाने के आरोप लगाए.इसमें आदिवासियों और दलितों की ज़मीनें फर्जी ग्रामसभा के आधार पर जबरन अधिग्रहित कराने तक के आरोप लगे.सरकार यह समझ ही नहीं सकी कि इसका व्यापक विरोध होगा. इससे लोगों की नाराज़गी बढ़ती चली गई.

 मॉब लिंचिंग और भूखमरी भी चुनाव का सबसे अहम् मुद्दा रहा.पिछले पांच साल के दौरान झारखंड के विभिन्न जगहों पर हुई मॉब लिंचिंग में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाए जाने और भूख के कारण कई लोगो की मौत होने जैसे मामले भी भाजपा की सरकार के ख़िलाफ़ गए. लोगों को लगा कि यह सरकार अल्पसंख्यकों के विरोध में काम कर रही है. इस दौरान मुसलमानों और ईसाइयों पर हमले और मॉब लिंचिंग में उनकी हत्या की घटनाएं भी सरकार के ख़िलाफ़ गईं. सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मामले को देशव्यापी स्तर पर उठाया. विपक्ष ने इसे चुनावी प्रचार का हिस्सा बनाया और रघुवर दास की सरकार लोगों को अपने जवाब से संतुष्ट नहीं कर सकी.

धर्मांतरण क़ानून को लेकर मुख्यमंत्री के सार्वजनिक बयानों के कारण ईसाई समुदाय में काफी नाराजगी देखी गई. बेरोज़गारी, पत्थलगड़ी, अफ़सरशाही भी बीजेपी के लिए नासूर साबित हुआ.पिछले पांच साल के दौरान बेरोज़गारी, अफ़सरशाही और पत्थलगड़ी अभियान के ख़िलाफ़ रघुबर दास की सरकार की नीतियां भी भाजपा के ख़िलाफ़ गईं. इससे मतदाताओं का बड़ा वर्ग नाराज़ हुआ और देखते ही देखते यह मसला पूरे चुनाव के दौरान चर्चा में रहा.यही वजह है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नौ, अमित शाह की 11 और रघुवर दास की 51 सभाओं के बावजूद भाजपा अपनी सत्ता बरकरार नहीं रख पाई.लोगों में इसकी भी नाराज़गी रही कि प्रधानंमत्री ने अपनी सभाओं में धारा-370, राम मंदिर और नागरिकता संशोधन विधेयक जैसे मुद्दों की बातें की. वहीं दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा ने सारे स्थानीय मुद्दों पर अपना चुनाव प्रचार किया.

- Sponsored -

-sponsored-

-sponsored-

Comments are closed.