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रेप के दोषियों को 21 दिन में फांसी पर लटका देनेवाला वाला बिल पास.

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रेप के दोषियों को 21 दिन में फांसी पर लटका देनेवाला वाला बिल पास.

सिटी पोस्ट लाइव : पुलिस मुठभेड़ में गैंगरेप के चार आरोपियों को गोली से उद्वा देनेवाली आंध्र प्रदेश की सरकार ने गैंगरेप को लेकर एक कड़ा कानून बना दिया है.आंध्र प्रदेश विधानसभा में शुक्रवार को एक ऐसा विधेयक पास हुआ है, जिससे औरतों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामलों का निपटारा 21 दिनों में किया जा सकेगा.इस पास हुए ‘आंध्र प्रदेश दिशा विधेयक’ में दोषी को फांसी की सजा 21 दिन के अंदर देने का भी प्रावधान है.

रेप के मामलों में पुख्ता सबूत होने पर अदालतें 21 दिन में दोषी को मौत की सज़ा सुना सकती हैं.पुलिस को सात दिनों के भीतर जांच पूरी करनी होगी.स्पेशल कोर्ट को 14 दिनों के भीतर ट्रायल पूरा करना होगा.सारी प्रक्रियाओं को 21 दिन में पूरा करना होगा.आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी के मुताबिक़, ”भले ही हाल ही में हुई रेप की घटना पड़ोसी राज्य तेलंगाना में हुई थी लेकिन उनकी सरकार इस मामले को लेकर बेहद गंभीर है. महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए यह क़ानून लाया जा रहा है.

इस क़ानून में आईपीसी की धारा 354(e) और 354 (f) को भी रखा गया है. इस 354 (f) धारा में बाल यौन शोषण के दोषियों के लिए दस से 14 साल तक की सज़ा का प्रावधान है. अगर मामला बेहद गंभीर और अमानवीय है तो उम्र क़ैद की सज़ा भी दी जा सकती है.मौजूदा वक़्त में ऐसे अपराधों के लिए पोक्सो एक्ट के तहत 3-5 साल तक के लिए जेल की सज़ा का प्रावधान रहा है.

अगर कोई शख़्स ई-मेल, सोशल मीडिया और किसी भी डिजिटल प्लेटफार्म पर कुछ ऐसी पोस्ट या तस्वीरें डालता है, जिससे किसी महिला के सम्मान को आघात पहुंचता है तो ये अपराध की श्रेणी में होगा.अगर कोई शख़्स ऐसा पहली बार कर रहा है तो दो साल की सज़ा और दूसरी बार चार साल की सज़ा का प्रावधान है.फ़िल्म स्टार और पूर्व केंद्रीय मंत्री चिरंजीवी ने सरकार की इस कोशिश की तारीफ़ की है. उन्होंने कहा, “मुझे पूरी उम्मीद है कि यह क़ानून यौन हिंसा की पीड़ित महिलाओं और बच्चों को ज़रूरी विश्वास और सुरक्षा देने में कामयाब होगा.

नेशनल लॉ कमीशन के अनुसार प्रति दस लाख की आबादी पर कम से कम 50 जज होने चाहिए. लेकिन मौजूदा समय में सिर्फ़ 13 हैं. कई पद खाली हैं. आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट में 24 जज होने चाहिए. लेकिन हैं सिर्फ़ 13. ऐसे में ये कैसे संभव होगा कि 21 दिन के भीतर फ़ैसला सुना दिया जाए?”

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