मरणोपरांत राम विलास पासवान को मिला पद्मभूषण सम्मान.
सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और जॉर्ज फर्नांडीज़ को मरणोपरांत मिला पद्म विभूषण सम्मान.
सिटी पोस्ट लाइव :भारत सरकार ने लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक , देश के बड़े नेताओं में शुमार रहे दिवंगत राम विलास पासवान को मरणोपरांत पद्मभूषण सम्मान से अलंकृत किया है. राष्ट्रपति भवन में सोमवार की सुबह आयोजित समारोह के दौरान राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने जनसेवा के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए पासवान को यह सम्मान प्रदान किया. बिहार से अन्य तीन लोगों कला के क्षेत्र में दुलारी देवी एवं रामचंद्र मांझी और चिकित्सा के क्षेत्र में डा. दिलीप कुमार सिंह को पद्मश्री सम्मान दिया गया.गौरतलब है कि एक वर्ष पूर्व राम विलास पासवान का निधन हो गया था. तब से उनको भारतरत्न देने की मांग उठती रही है.
राम विलास पासवान ने भारतीय राजनीति में एक लम्बी लाइन खिंची. बिहार के एक छोटे से गाँव के दलित परिवार में पैदा हुए पासवान देश की राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाने में कामयाब रहे.उन्होंने हमेशा केंद्र की राजनीति की.केंद्र सरकार में वे लंबे समय तक मंत्री रहे. अटल बिहारी वाजपेयी, मनमोहन सिंह, नरेंद्र मोदी के साथ ही छह प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया. सभी राजनीतिक दलों के नेताओं से उनके निकट संबंध रहे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी उनकी अच्छी मित्रता रही.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राम विलास पासवान के बीच मित्रता के संबंध मजबूत होने की बड़ी वजह चिराग पासवान बने थे. दरअसल, जब भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी का नाम आगे किया तब राम विलास पासवान, कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में मंत्री थे, जिसका नेतृत्व मनमोहन सिंह कर रहे थे. चिराग ने ही अपने पिता पर दबाव बनाया कि वे अगले चुनाव के लिए कांग्रेस की बजाय भाजपा को अपने सहयोगी के तौर पर चुनें. पिता-पुत्र का यह फैसला सही साबित हुआ था. प्रधानमंत्री ने उनको पद्मभूषण सम्मान देकर अपनी दोस्ती की लाज रख ली है.
रामविलास ने अपने राजनीतिक जीवन में 11 चुनाव लड़े. इनमें नौ चुनावों में उन्होंने जीत हासिल की. नौ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए. अपने राजनीतिक रुझान के कारण उन्होंने पिता के विरोध के बावजूद डीएसपी की नौकरी को ठुकरा दिया था. राम विलास का निधन 74 वर्ष की उम्र में 8 अक्टूबर 2020 को इलाज के दौरान हुआ. उनका जन्म बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में 1946 में हुआ था. जय प्रकाश आंदोलन के दौरान वे तेजी से बिहार की सियासत में उभरे. 1977 में बिहार की हाजीपुर लोकसभा सीट से चुनाव जीते. इस सीट से वे आखिर तक चुनाव जीतते रहे. उम्र के आखिरी पड़ाव पर उन्होंने खुद लोकसभा चुनाव लड़ने की बजाय हाजीपुर सीट से अपने भाई पशुपति पारस को उम्मीदवार बनाया और वे जीते.
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