सिटी पोस्ट लाइव :बिहार सरकार ने सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में दी जानेवाली दवाओं की संख्या में ईजाफा तो कर दिया है लेकिन हकीकत ये है कि बिहार के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल PMCH में मरीजों को जरूरी दवाइयां नहीं मिल रही है. परिजनों को बाहर से दवा लाने के लिए पर्ची थमा दी जाती है. जो मरीज PMCH में मुफ्त इलाज के भरोसे आते हैं उन्हें हजारों रुपये दवा में खर्च करने पड़ते हैं.एंटीबायोटिक और गैस का इंजेक्शन जैसी छोटी-छोटी दवाइयां भी उपलब्ध नहीं हैं. इलाज तो मुफ्त में हो जाता है, लेकिन दवाओं का बिल ही गरीब लोगों की कमर तोड़ देता है.
लखीसराय की 32 वर्षीय गर्भवती बिरन देवी बच्चे और अपनी सुरक्षा के लिए वे पीएमसीएच पहुंची क्योंकि उन्हें भरोसा था कि यहाँ मुफ्त में ईलाज हो जाएगा.तीन जनवरी को वे भर्ती हुईं और चार जनवरी को सिजेरियन डिलीवरी के पहले उन्हें बाजार से दवा लेने की पर्ची थमा दी गई. जो व्यक्ति मुफ्त में इलाज के लिए अस्पताल आया था, उसे अस्पताल वालों ने 5967 रुपये की दवा लाने की मांग कर दी. इसमें सर्जरी के बाद पेट सिलने के काम आनेवाला धागा 2067 रुपये का था.इसके अलावा 500 की नीडल, एंटीबायोटिक, पेट सुन्न करने के लिए जाइलोकेन, गैस का इंजेक्शन भी दवा की सूची में शामिल थे.
अस्पताल द्वारा बाहर से महंगी दवा मंगवाने का यह सिलसिला रुका नहीं. आठ जनवरी तक बाहर की दुकानों से उनसे करीब 9 हजार रुपये की दवाएं मंगवा ली गईं. एक ओर सरकार संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए हजार या 1400 रुपये प्रोत्साहन राशि दे रही है. अस्पतालों में सम्मानजन, सुविधाओं का दावा किया जा रहा है .लेकिन पीएमसीएच जैसे अस्पताल में गरीबों से दस-दस हजार की दवाएं मंगवाई जा रही हैं.स्त्री रोग विभाग के डाक्टरों ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि जो दवाएं पीएमसीएच में उपलब्ध नहीं होती हैं, वहीं मरीजों से मंगवानी पड़ती हैं.
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