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केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से बदल जाएगा लद्दाख, मिलेगी एक अलग पहचान

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केंद्र शासित प्रदेश बन जाने से बदल जाएगा लद्दाख, मिलेगी एक अलग पहचान

सिटी पोस्ट लाइव : अब तक जम्मू और कश्मीर की ही बात होती है जबकि सच्चाई ये है कि जम्मू कश्मीर राज्य के कुल क्षेत्रफल का 68 प्रतिशत हिस्सा लद्दाख का है.अब  केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद उस लद्दाख को एक अलग पहचान मिलेगी. भारत के नक्शे में इसे अलग जगह मिलेगी.सबसे बड़ी बात यह कि यहां के लोगों को महत्वपूर्ण या हर छोटे-मोटे काम के लिए जम्मू या फिर श्रीनगर नहीं जाना पड़ेगा.भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने और राज्य को दो हिस्सों में बांटकर लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के फैसले से लद्दाख के लोग बहुत खुश हैं. केंद्र सरकार के इस फ़ैसले को लेह-लद्दाख में ऐतिहासिक माना जा रहा है. नेता और धार्मिक संस्थाएं भी इसका स्वागत कर रही हैं.दरअसल लद्दाख में बहुत सालों से इसकी मांग की जा रही थी.

साल 1989 में अलग राज्य बनाए जाने को लेकर यहां आंदोलन भी चला था जिसके आधार पर लद्दाख को स्वायत्त हिल डेवलपमेंट काउंसिल मिली थी.धारा 370 को हटाये जाने के बाद अब दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाएंगे- जम्मू कश्मीर और लद्दाख. जम्मू कश्मीर में विधायिका होगी जबकि लद्दाख में विधायिका नहीं होगी. लेकिन यहाँ के लोग विधायिका की भी व्यवस्था करने की मांग कर रहे हैं.लोगों का मानना है कि बिना विधायिका दिए लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाने से कुछ समस्याएं हो सकती हैं.

लेह में तो लगभग सभी लोग इस क़दम का स्वागत कर रहे हैं मगर ऐसी जानकारी आ रही है कि इस फ़ैसले को लेकर कारगिल में थोड़ी सहजता नहीं है.लेह में 15-20 प्रतिशत आबादी मुसलमानों की है और यहां अधिकतर लोग बौद्ध हैं.वहीं कारगिल मुस्लिम बहुल इलाक़ा है और वहां बौद्ध कम संख्या में हैं.वहां पर कुछ लोग केंद्र शासित प्रदेश की मांग कर रहे थे तो कुछ इसके पक्ष में नहीं थे.वहां के नेता अभी भी दिल्ली में है और एक दो दिन में उनका रुख़ पता चल सकता है.

लद्दाख की अपनी सांस्कृति पहचान रही है और भौगोलिक आधार पर भी यह अलग है.ऐतिहासिक रूप में भी यह 900 से अधिक सालों तक स्वतंत्र पहचान रखने वाला क्षेत्र रहा है.लद्दाख में विधायिका वाले केंद्र शासित प्रदेश की मांग पहले से ही की जा रही थी क्योंकि यह जम्मू या कश्मीर से किसी तरह मेल नहीं खाता.ऐसे में ज़रूरी है कि इसे इन बातों को ध्यान में रखते हुए नियम-क़ानून बनाने का अधिकार मिले. यहाँ के लोगों को ये चिंता थोड़ी बहुत सता रही है कि अब बाहर से लोग आकर यहां ज़मीन खरीद सकते हैं.मगर यह भी तथ्य है कि जम्मू के लोग पहले से ही यहां आकर ज़मीन खरीद सकते थे. बावजूद यहां पर ज़मीनें ज़्यादा नहीं बिकी हैं.अब हो सकता है कि आगे बहुत सारे लोग आएं, यहां ज़मीनें खरीदें और होटल बनाएं.

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