नीतीश के सुरक्षित किले में सेंध लगा पाएंगे ‘मांझी’? दो दशक से नीतीश का अभेद किला है नालंदा
सिटी पोस्ट लाइवः वक्त जैसे-जैसे 2019 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहा है वैसे-वैसे राजनीति में दोस्त और दुश्मन बदल रहे हैं बल्कि दल बदल और खेमा बदलने के अलावा सियासत में परिस्थितियां भी लगातार बदल रही है और इन बदली परिस्थितियों में राजनीतिक सवाल भी लगातार बदल जा रहे हैं। बिहार की राजनीति में लंबे वक्त महागठबंधन में सीट शेयरिंग को लेकर उपजा हुआ कई सवाल टहलता रहा अब जब यह खबर कंफर्म है कि सीटों का बंटवारा हो गया तो फिर सवालों की फेहरस्ति कम नहीं हुई है हां सवाल जरूर बदल गये हैं। महागठबंधन से जुड़ा एक अहम सवाल यह था कि क्या बिहार के पूर्व सीएम मांझी महागठबंधन छोड़ देंगे? जवाब मिल गया कि वे महागठबंधन में बने रहेंगे क्योंकि उन्हें तीन सीटें मिल गयी हैं
हांलाकि उनकी डिमांड ज्यादा थी मगर 1 सीट के अंदेशे के मुकाबले तीन सीटों की हिस्सेदारी संतोषजनक है। चूंकी बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जीतन राम मांझी को नालंदा सीट भी मिली है इसलिए अब एक नये सवाल ने जन्म ले लिया है कि क्या वे नीतीश कुमार के गढ़ में उन्हें चुनौती दे पाएंगे क्योंकि तकरीबन दो दशक से नीतीश कुमार का अभेद किला है नालंदा जिसे कोई भेद नहीं पाया। नालंदा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का पैतृक जिला है. इसका मुख्यालय बिहारशरीफ है. नालंदा लोकसभा सीट पर कुर्मी जाति का दबदबा है. नालंदा अपने प्राचीन इतिहास के लिए विश्वप्रसिद्ध है. यहां विश्व की सबसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष आज भी मौजूद हैं. जहां शिक्षा के लिए कई देशों के छात्र आते थे. प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में यहां जीवन का महत्त्वपूर्ण एक वर्ष एक विद्यार्थी और एक शिक्षक के रूप में बिताया था. भगवान बुद्ध ने सम्राट अशोक को यहीं उपदेश दिया था.
हाल के वर्षों में भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को फिर से स्थापित किया है. यह बौद्ध अध्ययन का प्रमुख केंद्र बन गया है. नालंदा से 2014 में जेडीयू प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार ने चुनाव जीता था. उन्होंने लोजपा उम्मीदवार सत्यनंद शर्मा को हराया था. 2009 के चुनाव में भी जेडीयू और एलजेपी के बीच टक्कर रही. जेडीयू प्रत्याशी कौशलेंद्र कुमार ने एलजेपी के सतीश कुमार को हराया. 1999 से लेकर 2014 तक के लोकसभा चुनाव में जेडीयू ही यहां से जीत हासिल करती रही है. इस कारण इस क्षेत्र को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का सुरक्षित दुर्ग माना जाता है. नालंदा संसदीय क्षेत्र में कुल वोटरों की संख्या 1,719,503 है जिनमें 803,727 महिला और 915,776 पुरुष मतदाता हैं. जाहिर हिस्सेदारी में उन्हें नालंदा जैसी चुनौतीपूर्ण सीट मिली है और नीतीश कुमार के अभेद किले को भेद पाना जीतन राम मांझी के लिए आसान नहीं होगा।
तस्वीर थोड़ी और साफ हो पाएगी जब यह सामने आएगा कि नालंदा से मांझी किसे मैदान में उतारते हैं। बहरहाल निगाहें अब नालंदा पर भी होंगी क्योंकि ‘मांझी’ अब नीतीश के गढ़ ताल ठोकेंगे। यह लड़ाई दिलचस्प हो चली है और चुनाव के नतीजे आने तक दिलचस्प हीं रहेगी हांलाकि नालंदा सीट का इतिहास मुकाबले के एकतरफा होने का अंदेशा भी देता है लेकिन राजनीति क्रिकेट की तरह अनिचितिताओं का खेल है जाहिर है छक्का लगाने की कोशिश मांझी भी करेंगे।
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