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नीतीश ने अटल-आडवाणी वाली बीजेपी को छोड़ा, बाद में मोदी-शाह की बीजेपी ज्वाईन की, पड़ी गांठ?

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नीतीश ने अटल-आडवाणी वाली बीजेपी को छोड़ा, बाद में मोदी-शाह की बीजेपी ज्वाईन की, पड़ी गांठ?

सिटी पोस्ट लाइवः बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और विपक्षी दलों के कई दूसरे नेता लगातार यह बयान देते रहे हैं कि नीतीश कुमार पलटी मार सकते हैं। वे एक बार फिर बीजेपी का साथ छोड़ सकते हैं। लालू यादव ने अपनी किताब में यह लिखा है कि नीतीश बीजेपी को छोड़कर एक बार फिर महागठबंधन के साथ आना चाहते थे और इसके लिए वे प्रशांत किशोर को वो दूत बनाकर मेरे पास भेजते थे, प्रशांत किशोर से कई मुलाकातें हुई लेकिन नीतीश पर भरोसा नहीं किया जा सकता था इसलिए बात नहीं बनी। इस खुलासे के सामने आने के बाद कुछ विपक्षी नेता और आक्रामक तरीके से यह कहने लगे कि नीतीश कुमार चुनाव के बाद पलटी मारेंगे।

हांलाकि नीतीश कुमार कई मौकों पर पाला बदलने वाले अपने फैसले पर सफाई दे चुके हैं। 19 मई को भी जब वे वोट डालने पहुंचे थे तब भी उन्होंने यही कहा कि जब मैंने महागठबंधन को छोड़ा तो परिस्थितियां हीं कुछ ऐसी थी कि मुझे ऐसा फैसला लेना पड़ा। तेजस्वी यादव पर आरोप लगे थे। मैंने सफाई मांगी वे नहीं दे सके। कांग्रेस से कहा कि वे तेजस्वी से सफाई दिलवाएं लेकिन कांग्रेस भी यह न कर सकी इसलिए मुझे महागठबंधन को छोड़कर बिहार के हित में बीजेपी के साथ जाने का फैसला लेना पड़ा। बिहार के राजनीतिक गलियारों में दो सवाल बहुत मजबूती के साथ चहलकदमी करते नजर आते हैं। पहला तो यह कि जिस तरीके से कुछ विपक्षी नेता लगातार यह कह रहे हैं कि नीतीश कुमार पाला बदल सकते हैं वो संभव है और ऐसी कोई राजनीतिक परिस्थिति आने वाली है क्या? दूसरा सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार और बीजेपी के रिश्ते उतने हीं सहज है जितने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उनके बीजेपी छोड़ने तक थे?

चुनाव के बाद वाकई नीतीश कुमार पाला बदल सकते हों न तो ऐसी संभावना दूर-दूर तक दिखायी देती है और न हीं 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद ऐसी कोई राजनीतिक परिस्थिति बनती नजर आ रही है जहां इतना बड़ा सियासी उलटफेर हो सके। अगर नीतीश और बीजेपी के बीच दोस्ती की बात करें तो कई मौकां पर यह जरूर लगा है कि इस दोस्ती में गांठ पड़ चुकी है। 2014 के लोकसभा चुनाव से ऐन पहले नीतीश कुमार ने जिस बीजेपी को छोड़ा था वो अटल-आडवाणी की बीजेपी थी और 2017 में महागठबंधन को छोड़कर वे जिस बीजेपी के साथ गये ये मोदी-शाह की बीजेपी है। जाहिर है अटल-आडवाणी युग के अंत होने के बाद नीतीश का एनडीए में दुबारा प्रवेश मोदी-शाह के युग में हुआ है। नीतीश को बिहार में अपने बराबर 17 सीटें देकर बीजेपी ने जरूर यह संदेश देने की कोशिश की है कि एनडीए में नीतीश की पहले वाली अहमियत हीं है लेकिन कई बार रिश्तों की गांठ खुलकर दिखने लगती है। बीजेपी का मोदी-शाह वाला युग नीतीश को कई बार असहज कर देता है, नाराज कर देता है और संभवतः मजबूर भी कर देता है।

ज्यादातर बार कुछ मुद्दों पर बीजेपी की राय, गिरिराज सिंह जैसे नेताओं की ओर से आने वाले वाले बयान इस मजबूरी, असहजता और नाराजगी की झलक दे जाते हैं। तभी तो नीतीश कुमार साध्वी प्रज्ञा के बयान पर खुलकर नाराजगी जताते हैं। केसी त्यागी सरीखे नेता खुलकर यह कहते हैं कि गिरिराज सिंह जैसे लोग समाज तोड़ने वाले बयान दे देते हैं। कई बार इन वजहों से नीतीश कुमार के लिए अपनी तथाकथित धर्मनिरपेक्ष छवि को बचाये रखना मुश्किल लगने लगता है। इसलिए यह भी नहीं कहा जा सकता कि नीतीश कुमार के बीजेपी के साथ रिश्ते इतने गहरे हैं कि वे कभी बीजेपी को छोड़ेंगे हीं नहीं लेकिन फिलहाल लगता यही है कि न तो नीतीश अभी बीजेपी को छोड़ना चाहते हैं और न हीं बीजेपी नीतीश को छोड़ना चाहती है। अमित शाह की ओर से बुलाये गये डिनर पार्टी में नीतीश का पहुंचना, पीएम मोदी का गर्मजोशी से स्वागत करना यह बताने को काफी है कि अभी रिश्ते ठीक-ठाक हैं। बीजेपी भी चाहती है कि फिलहाल अपने सहयोगियों से रिश्ते ठीकठाक रहे तभी तो सहयोगियों के लिए इस शाही डिनर का इंतजाम किया गया। नेताओं के हिसाब से मेन्यू तैयार कराये गये।

इस डिनर पार्टी में नीतीश भी पहुंचे और उद्धव ठाकरे भी। पंजाब से प्रकाश सिंह बादल भी पहुंचे थे। भाजपा या एनडीए खुलकर जरूर यह दावा कर रहे हों कि साढ़े 300 सीटें आ रही हैं लेकिन राजनीति की अनिश्चितताएं बीजेपी भी जानती है इसलिए न सिर्फ पुराने सहयोगियों को बनाये रखने की कोशिश हो रही है बल्कि नये सहयोगियों को जोड़ने की कवायद भी जारी है। फिलहाल एनडीए की डिनर पार्टी चर्चा में है। नीतीश और उद्धव ठाकरे सरीखे सहयोगी भी इस डिनर पार्टी में पहुंचे थे जिनके रिश्ते बीजेपी के साथ खट्टे मिटठे रहे हैं इसलिए यह चर्चा और तेज रही। नतीजों के क्या होगा यह अभी कहना थोड़ी जल्दबाजी होगी लेकिन फिलहाल एनडीए में ऑल इज वेल हीं दिखा है।

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