अपनी ही सरकार की बघिया उधेड़ रहे नीतीश के मंत्री.
बिहार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह बोले-हम चोरों के सरदार, भ्रष्टाचार का है बोलबाला, संकट में किसान.
सिटी पोस्ट लाइव :अपने ऊपर करोड़ों रूपये के चावल घोटाले का आरोप झेल रहे बिहार सरकार के कृषि मंत्री सुधाकर सिंह अपनी ईमानदारी साबित करने के लिए अपनी ही सरकार के अंदर चल रहे भ्रष्टाचार की कलई खोल रहे हैं.कैमूर जिला के चांद ब्लॉक में आयोजित अभिनंदन समारोह में रविवार को उन्होंने कहा कि बीज निगम फर्जी खेती कराता है. कोई किसान वहां से बीज नहीं लेता. जिसे पैदावार चाहिए वह निगम का बीज नहीं लगाता होगा. ढ़ाई- दो सौ करोड़ रुपए का बीज निगम खा जाता है. कोई ऐसा नहीं है जो खा नहीं रहा. हम चोरों के सरदार हैं. ऐसे विभाग में तो हम चोरों के सरदार ही न कहलाएंगे! आप लोग पुतला फूंकते रहिएगा तो हमें लगेगा किसान नाराज हैं. मैं कहता हूं कि आप भी सड़कों पर उतरा कीजिए. हम ही अकेले सरकार नहीं है. हम जब बोलते हैं तो लगता है मैं व्यक्तिगत बात कर रहा हूं.
मंत्री ने अपने कृषि विभाग को रद्दी विभाग बताते हुए कहा कि आप उपलब्धियों पर गौर कीजिएगा तो लगेगा कि यह विभाग क्यों चलाया जा रहा है! इसमें विभाग के अंदर भी विभाग हैं. मैं भी भूल जाता हूं. माप-तौल विभाग वसूली विभाग है. बीज से लेकर बाजार तक की पूरी प्रक्रिया में सरकारों ने कृषि विभाग को चरमरा दिया. 2006 में कृषि मंडी कानून खत्म हो गया पर बिहार में कोई आंदोलन नहीं हुआ. केंद्र की सरकार ने भी मंडी कानून बदल दिया और बिहार की सरकार ने अपनी पीठ थपथपा ली कि चलो हमारे रास्ते पर केंद्र की सरकार चल निकली. हमें काफी आश्चर्य हुआ.
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह नीतीश कुमार के कृषि रोड मैप से संतुष्ट नहीं दिखे.उन्होंने कहा कि बिहार में नया कृषि कानून नहीं बनता है तो बिहार के किसानों का कल्याण नहीं होगा. किसानों की आमदनी हर साल एक प्रतिशत बढ़ी है. बिहार के किसानों और भारत के किसानों की आमदनी घटी है लेकिन सरकार कागजों में खेती करती है, खेतों में नहीं. जब से मैं मंत्री बना हूं, कह रहा हूं कि बिहार में सूखा है. 40 फीसदी बारिश कम हुई तो 87 फीसदी रोपनी कैसे हुई. 40 फीसदी से कम बारिश के बावजूद सूखा ग्रस्त साबित नहीं करना आंकड़ों की बाजीगरी है.
उन्होंने कहा कि माफियाओं के साथ सरकार चलाने वाले लोग हैं. खाद के साथ सल्फर जिंक नहीं बेचे जा रहे हैं. मैं कार्रवाई करूंगा। क्या सरकार को चलाने वाले बेशर्म लोग हैं? मैं पदाधिकारियों का वेतन बंद करूंगा. हालत बद से बदतर हो रही है. आठ घंटे से 16-18 घंटे बिजली मिल रही है. 121 साल में ऐसा सूखा आया है. 1901 में ऐसा सूखा हुआ था. तब लाखों लोग मरे थे.गनीमत है कि लोग भूख से नहीं मर रहे. आज देश थोड़ा सरप्लस पैदा करता है. इस बार सूखा का भयानक असर है. पिछले साल गेहूं की फसल मारी गई थी. फर्टिलाइजर की कालाबाजारी पर नियंत्रण करने की हमने कोशिश की है. अंग प्रदेश में भागलपुर, मुंगेर, जमुई में 10-20 पर्सेंट खेती हुई है और मौसम विभाग रिपोर्ट दे रहा है कि बहुत अच्छी बारिश हो रही है! फर्जी रिपोर्ट दी जा रही है. वे चलकर धान की खेती दिखा दें.
कृषि मंत्री सुधाकर सिंह ने कहा कि धान खरीद में नियम बदलो. इसे मल्टीपल करना चाहिए. लेकिन इसकी चिंता नहीं है. मैं बोलता हूं तो सरकार के बड़े नेताओं की सांसें जैसे निकल जाती हैं. सरकार बदल तो गई पर सरकार के चाल चलन पुराने ही हैं. अफसरों का तो पूछना ही नहीं.. ट्रैक्टर का कागज रखने लगे तो किसान खाएगा क्या! जिले में भ्रष्ट अधिकारी हैं. सेवा के कानून के तहत किसी की तन्ख्वाह कटी है बिहार में? हमको लगता है कि इसी तरह जवाब मांगने में मेरी ही छुट्टी नहीं हो जाए! छुट्टी होगी ही, यह तय है. कहा कि सरकार में क्या-क्या गड़बड़ी हो रही है हम जागरूक करते रहेंगे.
गौरतलब है कि राज्य में बारिश की कमी की वजह से कई जिलों में सूखे की स्थिति पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शनिवार को पटना में बैठक की थी. इस समीक्षा बैठक में मुख्य सचिव आमिर सुबहानी के साथ ही कृषि सचिव अन. सरवन और आपदा प्रबंधन विभाग के सचिव संजय कुमार अग्रवाल मौजूद रहे. लेकिन कृषि विभाग के मंत्री सुधाकर सिंह नहीं पहुंचे थे. सुधाकर सिंह अगस्त में हुई ऐसी ही मुख्यमंत्री की बैठक में भी उपस्थित नहीं हुए थे.
2013 में सुधाकर सिंह पर चावल घोटाला का आरोप नीतीश सरकार में ही लगा था. इस वजह से नीतीश कुमार से उनके राजनीतिक रिश्ते बहुत बेहतर नहीं रहे हैं. सुधाकर सिंह, राजद के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र हैं. जगदानंद सिंह भी नीतीश कुमार से खासे नाराज दिखते रहे हैं.अब जब सुधाकर सिंह नीतीश कैबिनेट में ही मंत्री बन गए हैं, नीतीश सरकार की बखिया उधेड़ने में जुटे हैं.नीतीश कुमार जिस कृषि और बिजली को अपना सबसे बड़ा उपलब्धि मानते हैं, उसी पर मंत्री सवालिया निशान उठा रहे हैं.सरकार को भ्रष्ट और निक्कमी बता रहे हैं.
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