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बीजेपी एमलएसी ने फोड़ा बम- ‘बिहार बीजेपी के हीं कुछ नेता नीतीश के हाथों लुटवा रहे अपना घर’

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बीजेपी एमलएसी ने फोड़ा बम-‘बिहार बीजेपी के हीं कुछ नेता नीतीश के हाथों लुटवा रहे अपना घर

सिटी पोस्ट लाइवः चुनाव अभी पूरी तरह से समाप्त नहीं हुआ है। अंतिम चरण में बिहार की 8 लोकसभा सीटों के लिए वोटिंग चल रही है। 23 मई को चुनाव के नतीजे आने हैं इससे पहले हीं बिहार एनडीए में बड़ा विस्फोट हो गया है। बीजेपी एमएलसी सच्चिदानंद राय का सोशल मीडिया पर एक मैसेज वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने नीतीश कुमार और बीजेपी के प्रदेश स्तर के कई नेताओं पर गंभीर आरोप लगाये हैं। सच्चिदानंद राय ने जेडीयू को बिहार में 17 सीटें दिये जाने पर सवाल उठाए हैं और बिहार बीजेपी के कुछ नेताओं पर नीतीश के हिडेन एजेंडा में उनका साथ देने का आरोप लगाया है।

सच्चिदानंद राय के नाम से वायरल मैसेज में लिखा गया है कि ‘नीतीश जी के हिडेन एजेंडा को मैं पहले ही भांप गया था। जिस प्रकार उन्होंने चिकनी चुपड़ी बातें करके, प्रशांत किशोर का इस्तेमाल करके, 17 सीटों का सौदा किया तभी यह स्पष्ट हो गया था। भाजपा के बिहार नेतृत्व में भी नीतीश जी के समर्थक और उनके एजेंडा पर काम करने वाले लोग हैं। उनका भी उन्हें भरपूर समर्थन प्राप्त हुआ। इसी का परिणाम है कि आनन फानन में, अप्रत्याशित रूप से अक्टूबर महीना में ही बराबर बराबर सीटों पर लड़ने का ऐलान हो गया। ‘हम’ और रालोसपा को भी गठबंधन से बाहर का रास्ता दिखाने का काम नीतीश जी के ही नेतृत्व में हुआ। यह स्पष्ट है कि नीतीश जी भाजपा के सहयोग से पुनः बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनना चाहते हैं। लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि बिहार भाजपा उनकी इस योजना में सहयोगी क्यों बना है?

जब एक बार फिर भाजपा और जदयू साथ मिलकर सरकार बनाए तब मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या का निर्धारण दोनों दलों की विधायकों की संख्या के आधार पर हुआ, तब 2 सांसद वाली जदयू को 22 सांसदों वाली भाजपा के बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का या लड़ाने का निर्णय किस प्रकार से हुआ? क्या हम यह नहीं जानते कि जदयू को यदि जनसमर्थन बढ़ाना हो तो भाजपा के ही वोट बैंक में सेंधमारी करनी पड़ेगी? तो हम अपने ही घर में सेंधमारी कराने में कब और कैसे और क्यों सहयोगी बन गए? क्या हमें पता नहीं था कि लोकसभा चुनाव समाप्त होते ही नीतीश जी अपने एजेंडा को एनडीए पर थोपेंगे? अपने प्रवक्ताओं के माध्यम से नीतीश जी ने चुनाव-काल के मध्य ही कभी धारा 370, तो कभी राम मंदिर, तो कभी कॉमन सिविल कोड अर्थात वे सभी संकल्प जो बीजेपी के घोषणापत्र में हैं, उनका विरोध शुरू करा दिए थे। आज जबकि आधे दिन का ही समय बीता है नीतीश जी ने स्वयं अपने पत्ते खोल दिए। क्या बिहार भाजपा नेतृत्व से नीतीश जी के इन उद्गारों का खंडन संभव है?

क्या हम अपेक्षा रखें कि बिहार भाजपा के नेतृत्व नीतीश जी को याद दिलाएंगे कि गठबंधन से पूर्व ही उन्हें पता था कि भारतीय जनता पार्टी राममंदिर, कॉमन सिविल कोड, धारा 370 और 35ए और इस प्रकार के राष्ट्रहित के संकल्प प्रमुखता से अपने घोषणापत्र में कई वर्षों से दोहराता आ रहा है। यदि उन्हें पता था तो उन्हें गठबंधन के समय अथवा उसके तुरंत पश्चात अपने विचार स्पष्ट नहीं करने चाहिए थे? अथवा चुनाव में मोदी जी के नाम पर पड़ने वाले वोटों की फसल काटने के पश्चात ही अपने विचार व्यक्त करेंगे ऐसा उन्होंने तय कर रखा था? क्या इस योजना में भाजपा का बिहार नेतृत्व गुप्त रूप से सहयोगी है? ऐसे कई प्रश्न उत्पन्न होते हैं। लोकसभा के चुनाव में राष्ट्रनीति राजनीति पर हावी रही। परंतु आज के पश्चात भाजपा बिहार की क्या रणनीति होगी? नीतीश जी के साथ कैसे संबंध भारतीय जनता पार्टी के हित में होंगे?

क्या इस पर विचार करने का समय नहीं आ गया है? क्योंकि डेढ़ वर्षों के पश्चात ही बिहार में विधानसभा के चुनाव होने हैं। उस समय राष्ट्रनीति नहीं बल्कि राज्यनीति या शुद्ध राजनीति का समय होगा। नितीश जी का फिर से मुख्यमंत्री बनना अथवा बनाने में सहयोग करना भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकता नहीं हो सकती ऐसा मेरा मानना है। तब क्या हम भारतीय जनता पार्टी की शक्ति के अनुसार यह शर्त रखेंगे कि बिहार का मुख्यमंत्री भारतीय जनता पार्टी का ही कोई नेता होगा और यदि ऐसा मानने को नितीश जी राजी ना हो तब भी हम उनके साथ गठबंधन को आगे बढ़ाएंगे, जबकि हमें पता है कि उनके साथ हमारा संबंध दूध और पानी की तरह नहीं बल्कि तेल और पानी की तरह है, जिसमें नीतीश जी तेल की तरह उपर रहना पसंद करते हैं?’

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