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मोतिहारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी: कुलपति और शिक्षकों की लड़ाई से छात्रों का भविष्य दावं पर

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सिटी पोस्ट लाइव : मोतिहारी का महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय बिहारवासियों का एक बड़ा सपना था .लेकिन आज यहाँ शिक्षकों और कुलपति के बीच चल रही खींचतान की वजह से छात्रों का भविष्य दावं पर लग गया है. विश्व विद्यालय के कुलपति को अपने शिक्षकों पर भरोसा ही नहीं है. ये अविश्वास उनकी योग्यता को लेकर नहीं बल्कि उनके आचरण, संस्कार और चरित्र को लेकर है. कुलपति को लगता है उनके शिक्षक चरित्रहीन हैं और उनसे उनके संस्थान की छात्राओं की आबरू को खतरा है.कुलपति ने विश्वविद्यालय के चप्पे चप्पे में सीसीटीवी कैमरा लगा दिया है. कौन शिक्षक कहाँ बैठता है, किससे क्या बात करता है,  सबका ऑडियो-विडियो रिकॉर्ड किया जा रहा है.

सीसीटीवी सुरक्षा के लिए अगर लगाया जाता है तब तो जायज है लेकिन जब वह निजता के अधिकार के उल्लंघन का हथियार बन जाये, तो बात गंभीर हो जाती है. शिक्षकों का आरोप है कि सीसीटीवी फूटेज के जरिये उन्हें ब्लैकमेल किया जा रहा है. लड़कियों के साथ अगर कोई शिक्षक बात करता भी दिख जाता है, तो उसके विडियो को दिखाकर उसे डराया धमकाया जाता है. इतना ही नहीं शिक्षकों का यहाँ तक आरोप है कि कुछ छात्राओं को माध्यम बनाकर शिक्षकों के ऊपर यौवन उत्पीडन के आरोप लगाकर उन्हें नौकरी से निकाले जाने की शाजिष कुलपति कर रहे हैं. अगर ये शिक्षक यौवन उत्पीडन के दोषी हैं तो भी और नहीं हैं तो भी दोनों स्थितियां गंभीर हैं .दोनों ही स्थितियों में छात्रों का ही सबसे ज्यादा नुकशान हो रहा है.

शिक्षक पिछले दो महीने से धरने पर बैठे हुए हैं. एक महीने से भूख हड़ताल कर रहे हैं. अब तो छात्रों द्वारा  कुलपति को बंधक बना लिए जाने की खबर आ रही है. खबर के अनुसार छात्र कुलपति का पैर पकड़ रहे हैं. जिस शिक्षक का उन्होंने धोखे से त्याग पत्र ले लिया है ,उसे फिर से बुलाये जाने का आग्रह कर रहे हैं.लेकिन कुलपति मानने को तैयार नहीं हैं. शिक्षकों का आरोप है कि शिक्षको से नियुक्ति के दिन ही त्याग पत्र लिखवा कर कुलपति ने रख लिया है. उसका दुरुपयोग कर उन्होंने एक शिक्षक की नौकरी भी ले ली है. शिक्षकों का कहना  है कि जिस शिक्षक को छात्र योग और काबिल बता रहे हैं. जिसे वापस लेने के लिए पैर पकड़ रहे हैं, उस शिक्षक से कुलपति की घृणा का आधार क्या हो सकता है ?

मामला बेहद गंभीर है. हजारों छात्रों के भविष्य से जुडा ये मामला है .लेकिन आजतक यह मीडिया के लिए बड़ा मुद्दा नहीं बन पाया है. राजभवन और सरकार की चुप्पी भी हैरान करने वाली है.अगर शिक्षक दोषी हैं तो उनके खिलाफ कारवाई होनी चाहिए.लेकिन जब निर्दोष हैं या फिर उन्हें प्रताड़ित किये जाने का मामला है तो मामले की निष्पक्ष जांच तो होनी ही चाहिए .सत्ता के शीर्ष पर बैठे प्रभू  जब किसी को बचाना या  फंसाना चाहता है तो, ऐसे ही चुप्पी साध लेता है. कहीं ये भी किसी को फंसाने और किसी बचाने का मामला तो नहीं ?

 

नोट-धरने और भूख हड़ताल पर बैठे मोतिहारी सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शिक्षको ने अपने आन्दोलन का पूरा विवरण सिटी पोस्ट लाइव को भेंज  है जिसे पाठकों के लिए नीचे संलग्न किया जा रहा है.इस सूचना से सिटी पोस्ट का कोई लेनादेना नहीं है. इस पत्र में दी गई जानकारी की सत्यता की पुष्टि भी सिटी पोस्ट लाइव नहीं करता है.

बगुला भगत कुलपति

महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के उद्घाटन अर्थात 3 अक्‍टूबर 2016 से लेकर अब तक भय का माहौल व्‍याप्‍त है। यहाँ पर आये दिन हमारे संविधान प्रदत्‍त मौलिक अधिकारों का हनन होता आ रहा है जिसमें सबसे बड़ी भूमिका विश्‍वविद्यालय के कुलपति तथा प्रशासन की है। भारत के संविधान की धारा 12 से लेकर 35 तक भारत के हर एक नागरिक को जो विभिन्‍न मौलिक अधिकार प्रदत्‍त किये गये हैं, उनमें से ज्‍यादातर का किसी न किसी रूप में इस विश्‍वविद्यालय में कुलपति तथा प्रशासन द्वारा हनन किया गया है और आज की तारीख तक यह प्रवृत्ति बदस्‍तूर जारी है। विश्‍वविद्यालय की शुरुआत से लेकर अब तक किस प्रकार इन मौलिक अधिकारों की हत्‍या होती आ रही है, उसके कुछ उदाहरण नीचे दिये जा रहे हैं :

यौन उत्‍पीड़न की झूठी शिकायतों द्वारा शिक्षकों का मानसिक उत्‍पीड़न

  • विश्‍वविद्यालय के अंदर यौन उत्‍पीड़न की शिकायतों के निपटान हेतु कोई तंत्र आज तक लिखित रूप से नहीं बनाया गया है।
  • शिक्षकों को फर्जी ढंग से यौन उत्‍पीड़न के मामलों में फंसाने की कोशिशें की गई हैं।
  • प्रशासन के दबाव में आकर कुछ शिक्षकों द्वारा कई शिक्षकों के ऊपर विश्‍वविद्यालय की छात्राओं के मार्फत यौन उत्‍पीड़न के फर्जी मामलों की शिकायतें विश्‍वविद्यालय प्रशासन में करवाई गई।
  • नियम के अनुसार जिन शिक्षकों के खिलाफ इस प्रकार की शिकायतें दर्ज हुई हैं, उन्‍हें इस संबद्ध में लिखित नोटिस दिया जाना चाहिए और 90 दिनों के अंदर शिकायत पर समुचित कार्रवाई होनी चाहिए। किंतु न नोटिस दिया जाता है और न कार्रवाई की जाती है जबकि शिकायतों को प्रशासन द्वारा सार्वजनिक कर दिया जाता है। दूसरी तरफ जिन शिक्षकों के खिलाफ शिकायत करवाई जाती है, उन्‍हें कार्रवाई के नाम पर मौखिक रूप से प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष रूप से धमकाया जाता है।
  • क्‍या यह सब प्रशासन का आपराधिक षड्यंत्र नहीं है ? क्‍या उन शिक्षकों और छात्राओं पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए जो इसप्रकार के फर्जी यौन उत्‍पीड़न शिकायतों के सूत्रधार हैं।
  • विश्‍वविद्यालय के तमाम शिक्षकों के निजी कक्षों में और सहायक प्रोफेसरों के बैठक कक्ष में उच्‍च क्षमता के कैमरे लगाये गये हैं जिनके बारे में आशंकायें हैं कि इनके द्वारा ध्‍वनि और दृश्‍य, दोनों रिकार्ड किये जाते हैं।
  • इन्‍हीं रिकार्डिंग के आधार पर शिक्षकों को स्‍वयं कुलपति जी और उनके करीबी लोगों द्वारा धमकाया जाता है। क्‍या शिक्षकों की यों रिकार्डिंग करवाना और उन्‍हें धमकाना आपराधिक कृत्‍य नहीं है? क्‍या यह निजता के अधिकार का उल्‍लंघन नहीं है ?
  • विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों के निजी और सार्वजनिक बैठक कक्षों में कैमरे (सीसीटीवी) लगाये गये हैं जिनसे शिक्षिकायें विशेष रूप से असहज महसूस करती हैं। क्‍या यह स्‍त्री शालीनता पर पुंसवादी हमला नहीं है ? यह भी निश्‍चय ही यौन उत्‍पीड़न में आता है।
  • हमारी जानकारी में देश के किसी विश्‍वविद्यालय में शिक्षक-शिक्षिकाओं की इस तरह सीसीटीवी में रिकार्डिंग करवाने हेतु उनके निजी कक्षों में कैमरे आदि नहीं लगाये गये हैं।
  • अस्‍तु, सीसीटीवी कैमरों के माध्‍यम से स्‍वयं प्रशासन प्रत्‍यक्ष और अप्रत्‍यक्ष यौन उत्‍पीड़न में सक्रिय रूप से शरीक है।
  • सीसीटीवी कैमरों को लेकर जब आंदोलनरत शिक्षकों ने मीडिया को अपनी व्‍यथा सुनाई तो कुलपति और प्रशासन ने मीडिया के समक्ष झूठ बोलते हुये एक प्रेस वार्ता ही कर डाली। प्रेस वार्ता में कुलपति ने दावा किया था कि शिक्षक कक्ष सार्वजनिक स्‍थल में आता है अत: उन्‍हें अधिकार है वहाँ सीसीटीवी लगाने का। किंतु हमारा कहना है कि शिक्षक कक्ष सार्वजनिक स्‍थल के रूप में परिभाषित नहीं किये जा सकते। हमने तो लगाये गये सीसीटीवी सेटों की क्षमताओं और उनके नियंत्रण तंत्र को लेकर भी सवाल पूछे थे किंतु हमारे ढेर सारे सवालों की जैसे इन सवालों पर भी वे कुछ न बोले।

महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में हो रहा है आरक्षण के नियमों का खुला उल्‍लंघन

  • महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय द्वारा 6 जून 2017 के विज्ञापन द्वारा गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के कुल 52 पद विज्ञापित किये गये। इनमें से वर्ग ए, बी और सी के क्रमश: 10, 17 और 25 पद थे। इनमें अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिए 5, अनुसूचित जाति के लिए 0 और अनुसूचित जनजाति के लिए भी 0 पद आरक्षित थे। आप ही बताइए कि क्‍या यह आरक्षण के नियमों का उल्‍लंघन नहीं है?
  • शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों पर विश्‍वविद्यालय कौनसा रोस्‍टर किसप्रकार से लागू करता है, यह तथ्‍य आज तक छिपाया गया है। सवाक्‍या आरक्षण विषयक इतना महत्‍वपूर्ण तथ्‍य छिपाया जाना स्‍वयं में कुलपति की मनुवादी मानसिकता का द्योतक नहीं है ॽ क्‍या यह आपराधिक षड्यंत्र नहीं है ॽ
  • शैक्षणिक पदों की भर्ती में भी आरक्षित पदों को जानबूझकर रिक्‍त रखा गया है। जब इस बाबत कुलपति महोदय से सवाल पूछा जाता है तो वे बड़ी मासूमियत दिखाते हुये मेरिट का रोना रोने लगते हैं। अनेक बार सार्वजनिक बैठकों में शिक्षकों के समक्ष वे आरक्षण की बुराई कर चुके हैं कि इसके कारण विभिन्‍न विभागों में पद खाली हैं। किंतु असलीयत कुछ और ही है। उदाहरण हेतु हिंदी विभाग में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित सहायक प्रोफेसर पद पर चयन के बाद भी चयन समिति ने कागज़ों में चयनित उम्‍मीदवार का नाम काट दिया था जबकि यह उम्‍मीदवार योग्‍यता में सामान्‍य वर्ग के किसी उम्‍मीदवार से कम न था। वह जेआरएफ और पीएच.डी. धारक था तथा पोस्‍ट डॉक्‍टरल कर रहा था। उल्‍लेखनीय है कि इस उम्‍मीदवार ने उसके चयन को काटने वाले चयन समिति के दस्‍तावेज भी सोशल मीडिया में सार्वजनिक कर रखे हैं।
  • विश्‍वविद्यालय के अध्‍यादेश के मुताबिक स्‍नातक में प्रवेश हेतु न्‍यूनतम योग्‍यता सामान्‍य वर्ग के लिए 12 वीं में 50 प्रतिशत है जबकि आरक्षित वर्ग के लिए 45 प्रतिशत है। किंतु पिछली बार अध्‍यापकों के विरोध के बावजूद यह न्‍यूनतम प्रतिशत बढ़ाकर क्रमश: 60 और 55 कर दिया गया। स्‍पष्‍टत: जानबूझकर आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को प्रवेश से वंचित रखने की साजिश की गई। कट ऑफ अंक की आड़ में आरक्षित वर्ग के बच्‍चों को आरक्षण से वंचित किया गया, उन्‍हें ज्‍यादा अंक लाने पर भी सामान्‍य वर्ग में शामिल नहीं किया गया। इसका दुष्‍परिणाम निकला कि ज्‍यादा अंक लाने पर भी आरक्षित अन्‍य पिछड़े वर्ग के बच्‍चों को प्रवेश नहीं मिला जबकि कम अंक लाने वाले सामान्‍य वर्ग के बच्‍चों को विश्‍वविद्यालय के विभिन्‍न पाठ्यक्रमों में प्रवेश मिल गया। प्रवेश की प्रतीक्षा सूचियों में तो आरक्षण के नियम लागू ही नहीं किये गये थे।
  • अस्‍तु, आरक्षण नियमों के त्रुटिपूर्ण क्रियान्‍वयन द्वारा आरक्षित वर्ग के बच्‍चों को एक साजिश के तहत प्रवेश से हर संभव तरीके से वंचित करने की कोशिश की गई।
  • एस.सी.-एस.टी. सेल आज तक विश्‍वविद्यालय में स्‍थापित नहीं किया गया जो सरकारी नियमों के अनुसार कानून का उल्‍लंघन है।
  • कुलपति आरक्षण को लेकर उठ रहे सवालों पर बकायदा प्रेस वार्ता करते हैं और नियमानुसार आरक्षण के नियमों की पालना की बात कहकर पत्रकारों को गुतराह करने का प्रयास भी करते हैं। किंतु अगर कुलपति के मन में दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों के प्रति पूर्वाग्रह नहीं हैं तो उन्‍होंने अभी तक शिक्षकों के रोस्‍टर को सार्वजनिक क्‍यों नहीं किया है ? गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति वाले विज्ञापन में आपने ऐसा कौनसा रोस्‍टर लगाया कि एक भी पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं हुआ ? मीडिया का ध्‍यान हम इस तथ्‍य की ओर आकर्षित करना चाहते हैं कि गैर शैक्षणिक पदों पर रोस्‍टर कैडर अनुसार लागू होता है, न कि प्रति पद पर यह रोस्‍टर लागू किया जाता है। वे उस प्रेस वार्ता में विद्यार्थी प्रवेश प्रक्रिया में हुये आरक्षण विषयक नियमों के उल्‍लंघन के आरोपों पर क्‍यों मौन रहे ?

 

  • शिक्षकों द्वारा कुलपति और विश्‍वविद्यालय प्रशासन पर फर्जी यौन उत्‍पीड़न के मामलों में फंसाने के बारंबार जो आरोप लगाये गये हैं, उनके पक्ष में कल दिनांक 12 जून 2018 को बिहार के स्‍थानीय टेलीविज़न चैनल कशिश द्वारा चलाये गये कुलपति के एक ऑडियो को भी सुना जा सकता है।
  • कल 12 जून 2018 को पूर्वी चंपारण के जिला मुख्‍यालय मोतिहारी में स्थिति महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के कुल‍पति प्रो. अरविन्‍द अग्रवाल के ऊपर विश्‍वविद्यालय की एक छात्रा को अपने ही शिक्षक श्री श्‍याम नन्‍दन के खिलाफ फर्जी यौन उत्‍पीड़न के लिए उकसाने का आरोप लगाते हुए बिहार के स्‍थानीय टेलीविज़न चैनल द्वारा उनका एक ऑडियो प्रसारित किया गया। ‘सबसे गंदा वीसी’ शीर्षक वाला यह समाचार सोशल मीडिया पर तत्‍काल सुर्खियों में आ गया है। चैनल का दावा है कि उन्‍हें यह ऑडियो विश्‍वसनीय स्रोत से हासिल हुआ है। इस ऑडियो के वायरल होने के साथ ही आंदोलनरत शिक्षकों को नैतिक रूप से विजय हासिल हो गई है।
  • शिक्षक अपने आंदोलन के पहले दिन से ही कुलपति और विश्‍वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ फर्जी यौन उत्‍पीड़न के मामलों में फंसाने के आरोप लगाते रहे थे। वैसे प्रशासन इन आरोपों को सिरे से नकार रहा था। किंतु कल टेलीविज़न चैनल पर कुलपति का ऑडियो आने के बाद प्रमाणित हो गया है कि शिक्षकों के आरोपों में दम है। कल आंदोलनरत शिक्षकों ने मीडिया को दिये अपने संदेश में कहा कि वे कुलपति जी के इस ऑडियो के टेलीविज़न पर आने से बहुत व्‍यथित हैं। वे व्‍यथित हैं इस बात से कि बापू के नाम पर बना यह विश्‍वविद्यालय कुलपति के काले कारनामों से बड़ा शर्मिंदा है। वे सरकार से त्‍वरित उच्‍च स्‍तरीय जाँच दल बनाने की मांग करते हैं ताकि बापू के नाम पर लगा यह कलंक धोया जा सका।

                           महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों का फेसबुक पृ. – https://www.facebook.com/mgcu.teachers.3

कारण बताओ नोटिसों के द्वारा विश्‍वविद्यालय में आतंकी माहौल

  • बैसिर-पैर के मुद्दों पर विभिन्‍न शिक्षकों को कारण बताओ नोटिस दिेये गये हैं, जिनके कारण सभी शिक्षक आतंकित हैं।
  • कम्‍प्‍यूटर विज्ञान के शिक्षक श्री अतुल त्रिपाठी को जिंस पहनने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जो जीवन शैली की आज़ादी का उल्‍लंघन है।
  • जंतु विज्ञान के शिक्षक डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन को अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगने पर कारण बताओ नोटिस जारी किया गया जो रोजगार की स्‍वतंत्रता का उल्‍लंघन है।
  • विश्‍वविद्यालय के शिक्षक जब अवकाश हेतु आवेदन करते हैं तो निर्धारित समयावधि के भीतर उनकी छुट्टियों के अनुमोदन की सूचना नहीं दी जाती है। और जब वे चले जाते हैं तो उन्‍हें बिना सूचना अनुपस्थित रहने पर कारण बताओ नोटिस थमा दिया जाता है और उनके सर्विस ब्रेक की धमकी दी जाती है। गणित विभाग की शिक्षिका डॉ. बबीता के साथ ऐसा घटित हो चुका है।

सबसे ताजा मामला जंतु विज्ञान के शिक्षक डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन का है जिनको अनापत्ति प्रमाणपत्र मांगने पर कारण बताओ नोटिस बेबुनियाद कारण गढ़ते हुए जारी कर दिया गया। इसके चलते यह शिक्षक मानसिक अवसाद में चला गया है और चिकित्‍सालय में इलाजरत है। विश्‍वविद्यालय प्रशासन ने उन पर किसी दूसरे विश्‍वविद्यालय के विज्ञापन भर्ती नियमों की अनुपालना न करने तथा तथ्‍यों को छुपाकर दूसरे विश्‍वविद्यालय में नौकरी हेतु परीक्षा देने का हवाला देकर यह कारण बताओ नोटिस 29 मई को जारी किया गया है। इस संदर्भ में प्रशासन ने सीसीएस 1964 की दफा 3 का हवाला दिया है। यह कारण बताओ नोटिस सरासर बेबुनियाद है। जहाँ तक दूसरे विश्‍वविद्यालय के भर्ती नियमों का सवाल है, तो वे इस विश्‍वविद्यालय पर लागू नहीं होते। और जहाँ तक सीसीएस 1964 की दफा 3 के संदर्भ में तथ्‍यों को छिपाने की बात है तो सनद रहे कि तथ्‍य छिपाये नहीं गये हैं, बल्कि तथ्‍य बताया नहीं गया है। और उचित समय आने पर शिक्षक द्वारा स्‍वयं इस तथ्‍य से विश्‍वविद्यालय प्रशासन को अवगत भी करा दिया गया था। यह कारण बताओ नोटिस शिक्षकों को गुलाम बनाये रखने के लिए विश्‍वविद्यालय के उद्घाटन दिवस से जारी एक व्‍यापक षड्यंत्र का ताजा नमूना है। य‍ह कारण बताओ नोटिस संविधान द्वारा प्रदत्‍त रोजगार की स्‍वतंत्रता के मूल अधिकार (अनुच्‍छेद 16) और सम्‍मानपूर्व निजी जीवन निर्वाह के मूल अधिकार अनुच्‍छेद 21 का भी उल्‍लंघन है। विदित हो कि अनुच्‍छेद 13 कहता है कि कोई ऐसा कानून या उस कानून के तहत किसी कार्यालय द्वारा जारी किया गया पत्रादि स्‍वत: अप्रासंगिक और खारिज हो जायेगा जो संविधान प्रदत्‍त मौलिक अधिकारों की अवहेलना करता हो।

यहाँ यह भी ध्‍यातव्‍य हो कि डॉ. जैन को दिये कारण बताओ नोटिस में (जैसा कि हमने ऊपर उल्‍लेख किया है) उन पर आरोप लगाया गया है कि उन्‍होंने भारत सरकार के सीसीएस 1964 के खंड 3 का उल्‍लंघन किया है जबकि भारत के राजपत्र में 29 अप्रैल 2017 को छपी विश्‍वविद्यालय की अधिसूचना के अध्‍यादेश संख्‍या 13 के मुताबिक विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों पर सीसीएस नियम लागू नहीं होते अपितु विश्‍वविद्यालय द्वारा समय-समय पर बनाई गई व्‍यावहारिक आचार संहिता लागू होती है। इसप्रकार यह कारण बताओ नोटिस स्‍वत: ही त्रुटिपूर्ण है। वास्‍तव में सीसीएस 1964 का डर दिखाकर कुलपति शिक्षकों को दबाये रखना चाहते हैं।

  • एक तरफ डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन को बिना सूचित किये दूसरे विश्‍वविद्यालय में आवेदन डालने और परीक्षा देने पर कारण बताओ नोटिस थमा दिया जाता है और दूसरी तरफ श्री अतुल त्रिपाठी द्वारा समुचित माध्‍यम से दूसरे विश्‍वविद्यालय में नौकरी के लिए आवेदन करने पर भी अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने के अपने प्रार्थना पत्र के 50 दिन गुजर जाने पर भी न तो अनापत्ति प्रमाण पत्र दिया जाता है और न उनका आवेदन ही संबंधित विश्‍वविद्यालय को भेजा जाता है।
  • ध्‍यातव्‍य है कि इसी नोटिस के कारण डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन भयावह मानसिक तनाव के कारण चिकित्‍सालय में अपना उपचार करवा रहे हैं।

 

बलात् त्‍यागपत्र लिखवाना और परिवीक्षा अवधि में बर्खास्‍तगी के तख्‍ते पर लटकाये जाते शिक्षक :

  • विदित हो कि विश्‍वविद्यालय के कुलपति और प्रशासन द्वारा सार्वजनिक मंचों से अनेकों बार सभी शिक्षकों को परिवीक्षा अवधि से लेकर परिवीक्षा अवधि समाप्‍त होने के बाद भी लगातार नौकरी से निकाल देने की धमकियाँ दी जाती रही हैं। इससे शिक्षकों को जिस भयावह यंत्रणा से गुजरना पड़ा, वह अक‍थनीय है।
  • कुलपति और प्रशासन द्वारा परिवीक्षा अवधि में शिक्षक-शिक्षिकाओं को बार-बार चेतावनी दी गई कि आप विवाह नहीं कर सकते और आपको छुट्टी नहीं दी जायेगी। और जो विवाह करने छुट्टी पर गये भी तो उन्‍हें आकस्मिक अवकाश लेने के लिए मजबूर किया गया।
  • विदित हो कि बर्खास्‍तगी की धमकियाँ ही नहीं दी गई बल्कि इनका दो शिक्षकों – डॉ. अमित रंजन तथा डॉ. शशिकांत रे पर अमलीजामा भी पहनाया गया। ज्ञातव्‍य है कि उस समय शिक्षकों, विद्यार्थियों और अधिशासी परिषद के दबाव में बिना शर्त वापस भी लिया गया। दोनों शिक्षकों द्वारा बारंबार अपनी बर्खास्‍तगी के कारणों को बताये जाने की प्रार्थना के बाद भी आज तक उन कारणों को दबाकर रखा गया है।
  • प्रशासन के अनुचित दबाव में कई शिक्षकों को अपना त्‍यागपत्र देने के लिए मजबूर होना पड़ा, जैसे – डॉ. संदीप कुमार, श्री अतुल त्रिपाठी, श्री ओमप्रकाश गुप्‍ता, डॉ. आर्तृत्राण पाल आदि। कई अन्‍य अध्‍यापक भी हैं जिन्‍होंने इस्‍तीफा दिया है, किंतु आज भी प्रशासन के भय से चुप बैठे हुये हैं। आंदोलनरत शिक्षकों के पक्ष में राज्‍यसभा सांसद श्री अखिलेश प्रसाद सिंह जब अभी हाल ही में कुलपति से मिले थे तो कुलपति ने कुछ शिक्षकों के द्वारा अपने बलात् त्‍यागपत्रों का सवाल उठाने पर स्‍वयं सांसद के समक्ष इस बात को स्‍वीकारा था कि शिक्षकों को मुट्ठी में रखने के लिए, उन्‍हें नियंत्रण में रखने के लिए उन्‍होंने कुछ शिक्षकों से त्‍यागपत्र लिखवाये थे।
  • श्री अतुल त्रिपाठी जी का इस्‍तीफा आज भी प्रशासन के पास है और डॉ. बुद्धिप्रकाश को जारी किये गये कारण बताओ नोटिस के संदर्भ में जब वे विश्‍वविद्यालय के कुलपति से मिलने गये तो उन्‍हें कुलपति द्वारा बेइज्‍जत किया गया। उन्‍हें बोला गया कि वे चाहे जो कर लें, उनका इस्‍तीफा फाड़ा नहीं जायेगा। श्री अतुल त्रिपाठी को डर है कि भविष्‍य में उनके इस्‍तीफे का उन्‍हीं के खिलाफ दुरुपयोग किया जायेगा।
  • विदित हो कि डॉ. संदीप के बारे में यह चर्चा है कि उनके ऊपर यौन उत्‍पीड़न के आरोप लगाकर उन्‍हें दबाव में डालकर इस्‍तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था। डॉ. संदीप ने इस संदर्भ में अपने त्‍यागपत्र को रद्द करने की अपील भी की थी जिस पर विश्‍वविद्यालय की कार्यकारी परिषद् ने 10 मई 2018 को संज्ञान लेते हुए जाँच समिति बैठाने की अनुशंसा की थी किंतु आज तक कोई जाँच समिति इस मसले में गठित ही नहीं की गई।

शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक पदों पर हुई नियुक्तियों में गड़बड़ी

  • ध्‍यातव्‍य है कि विज्ञापित गैर शैक्षणिक पदों में से उच्‍च पदों को रिक्‍त रखकर कुछ निम्‍न पदों पर कुलपति ने अपने नजदीक के लोगों को रख लिया है। पता चला है कि जिन लोगों की नियुक्ति हुई है, वे स्‍वयं भर्ती परीक्षा की संपूर्ण प्रक्रिया के साथ प्रत्‍यक्ष-अप्रत्‍यक्ष रूप से जुड़े हुये थे जबकि यह गैर कानूनी है। नियमानुसार अगर आपके परिवार का कोई व्‍यक्ति तक किसी परीक्षा में बैठने जा रहा है तो आप को उस परीक्षा से संबंधित किसी कार्य की जिम्‍मेदारी नहीं दी जा सकती।
  • गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति न हो पाने के लिए वे प्रेस वार्ता आयोजित करके उल्‍टा शिक्षकों के कथित असहयोग का जिक्र करते हैं किंतु उन्‍हें बताना चाहिए था कि कुलसचिव और वित्‍त अधिकार जैसे महत्‍वपूर्ण पद खाली रखकर निचले दर्जे के कुछ ही पदों को शुरु में ही क्‍यों भर लिया गया ? क्‍या स्‍वयं कुलपति का पद खाली रखकर पहले किसी लिपिक या शिक्षक की नियुक्ति की जाती है ? जब ऐसी नियुक्ति नहीं की जाती तो उच्‍च पदों को रिक्‍त रखकर कुछ छोटे पदों पर कैसे नियुक्तियाँ की गईं
  • शिक्षकों की नियुक्ति प्रक्रिया भी संदेह के घेरे में है। एसोसिएट प्रोफेसरों के पदों पर नियुक्‍त कुद शिक्षकों के पास अपेक्षित शैक्षणिक अनुभव है ही नहीं।
  • कुछ के पास शोध निर्देशन का बिल्‍कुल भी अनुभव नहीं है।
  • कुछ एसोसिएट प्रोफेसरों के पास साक्षात्‍कार के समय निर्धारित एपीआई अंक ही न थे।
  • कुछ एसोसिएट प्रोफेसरों और कुछ असिस्‍टेंट प्रोफसरों के प्रकाशन तक फर्जी हैं।
  • ध्‍यातव्‍य है कि चंपारण शताब्‍दी समारोह के अवसर पर कुलपति के निर्देश पर संपादित और प्रकाशित दो पुस्‍तकों में जो आलेख संकलित हैं, उनमें से कुछ की मौलिकता को लेकर स्‍वयं संपादन मंडलों ने कुलपति को समय रहते आगाह भी कर दिया था किंतु उस समय कुलपति ने संपादक मंडलों पर दबाव डालकर मामला रफा-दफा कर दिया था।

 

 

विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा शिक्षकों के खिलाफ विद्यार्थियों का इस्‍तेमाल 

  • प्रशासन द्वारा विद्यार्थियों को शिक्षकों के खिलाफ उकसाया जाता है, झूठी शिकायतें करवाई जाती हैं।
  • जब शिक्षक अपनी कक्षाओं में पढ़ा रहे होते हैं तब भी कुलपति और विश्‍वविद्यालय प्रशासन के निर्देश पर कुछ विद्यार्थी गुपचुप ढंग से रिकार्डिंग करने में लगे रहते हैं।
  • आये दिन कुलपति इसीप्रकार से गलत ढंग से करवाई गई ऑडियो-वीडियो रिकार्डिंग के आधार पर शिक्षकों को धमकाते रहते हैं।
  • इस अविश्‍वास, डर, संशय और भय के माहौल में विश्‍वविद्यालय षड्यंत्रों का अड्डा बन चुका है।

विश्‍वविद्यालय के सर्वोच्‍च पदों को खाली रखना

  • विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपने अनैतिक और भ्रष्‍ट कार्यों पर पर्दा डालने के लिए महत्‍वपूर्ण प्रशासनिक पदों को रिक्‍त रखना, जैसे कुलाधिपति, वित्‍त अधिकारी, परीक्षा नियंत्रक, पुस्‍तकालयाध्‍यक्ष, चिकित्‍सा अधिकारी, आदि।
  • ज्‍यादातर गैर शैक्षणिक पदों को रिक्‍त रखकर कुछ पदों पर अपने चहेते लोगों की नियुक्ति गलत ढंग से करना।

 

निजी दस्‍तावेजों की गोपनीयता भंग

  • शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के मन में कुछ अनुभवों और प्रशासनिक धमकियों के बाद भय और आशंका बैठ गई है कि प्रशासन के पास जमा उनके निजी दस्‍तावेजों की गोपनीयता भंग होने का खतरा है।
  • अपने दस्‍तावेजों के साथ हेरफेर की आशंका भी शिक्षक सार्वजनिक रूप से व्‍यक्‍त करते रहे हैं।

 

एनपीएस कटौती किंतु एनपीएस खाता में भुगतान न होना  

  • विश्‍वविद्यालय के स्‍थाई शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों की तन्‍ख्‍वाह से एनपीएस (न्‍यू पेंशन स्‍कीम) के तहत पैसे तो काटे जा रहे हैं किंतु ये पैसे उनके एनपीएस खाते में जमा नहीं हो रहे हैं। क्‍या यह गंभीर आर्थिक अनियमितता नहीं है ?
  • ध्‍यातव्‍य है कि शिक्षकों की नियुक्ति के लगभग डेढ़ साल बाद जाकर ही ये खाते खुल पाये थे।
  • जो शिक्षकगण किसीप्रकार के अवकाश आदि पर दूसरी संस्‍थाओं से आये हैं, उनके एनपीएस पैसे उनकी मूल संस्‍थाओं में स्‍थानांतरित नहीं किये गये।
  • कुलपति का आतंक का आलम यह था कि परिवीक्षा अवधि में किसी शिक्षक की इतनी हिम्‍मत ही न हुई कि इस संदर्भ में लिखित में पूछताछ कर सके।
  • एक वरिष्‍ठ शिक्षक के द्वारा पहल करके पत्र लिखने पर ही अब जाकर एनपीएस खाते खुल पाये हैं और पैसा भी उनमें डाला गया है।
  • किंतु इस दीर्घ अवधि में हुई विश्‍वविद्यालय प्रशासन की निष्क्रियता के कारण शिक्षकों को हुई आर्थिक क्षति की पूर्ति के लिए विश्‍वविद्यालय अब भी कुछ नहीं कर रहा है।

अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में भाई-भतीजावाद

  • विश्‍वविद्यालय में नियुक्ति के समय सभी शिक्षकों से यह अनुबंध भरवाया गया था कि कोई भी शिक्षक परिवीक्षा अवधि में दूसरी जगह नौकरी के लिए आवेदन नहीं करेगा और अगर करता है तो विश्‍वविद्यालय उसके आवेदन पर अनापत्ति प्रमाणपत्र जारी नहीं करेगा।
  • किंतु तमाम नियमों को ताक पर रखकर कुछ शिक्षक-शिक्षिकाओं को इसप्रकार के अनापत्ति प्रमाणपत्र दिये गये।

 

चिकित्‍सकीय सुविधा और तद्विषयक पुनर्भुगतान की व्‍यवस्‍था नहीं

  • विश्‍वविद्यालय अभी तक स्‍थाई या अस्‍थाई चिकित्‍सा अधिकारी की नियुक्ति नहीं कर पाया है।
  • अपने शिक्षकों और गैर शैक्षणिक कर्मचारियों के चिकित्‍सा व्‍यय के पुनर्भुगतान का अपना कोई तंत्र ही विश्‍वविद्यालय के पास नहीं है।

 

प्रयोगशालाओं की माकूल व्‍यवस्‍था नहीं

  • विश्‍वविद्यालय के विज्ञान के शिक्षक और विद्यार्थी आज तक बिना समुचित प्रयोगशालाओं के भटक रहे हैं।
  • बार-बार लिखित अनुरोध पत्र देने पर भी विश्‍वविद्यालय प्रशासन कुंभकरण की नींद सो रहा है।
  • शिक्षकों को बिना प्रयोग करवाये प्रायोगिक परीक्षायें करवाने का दबाव डाला जाता है।

 

विद्यार्थियों के शुल्‍क कम करने पर सफेद झूठ

  • आंदोलनरत शिक्षकों के साथ जुड़ते विद्यार्थियों को भ्रमित करने के लिए कुलपति ने विद्यार्थियों के शुल्‍क में कथित रूप से कमी की सूचना देने के नाम पर 8 जून को एक अच्‍छी-खासी प्रेस वार्ता ही कर डाली किंतु उस मुद्दे पर भी उन्‍होंने सफेद झूठ बोला। असल में शुल्‍क कम नहीं किया गया है अपितु मोटे तौर पर उन मदों पर शुल्‍क न लेने की घोषणा की गई है, जिन मदों से जुड़ी सुविधायें विश्‍वविद्यालय विद्यार्थियों को देता ही नहीं है। और फिर प्रेस वार्ता में नीतिगत स्‍तर पर स्‍वयं कुलपति ने यह भी स्‍वीकारा कि आगे चलकर वे कुछ ऐसा चमत्‍कार करने वाले हैं जिससे शिक्षकों का वेतन विश्‍वविद्यालय स्‍वयं जुटा सके। स्‍पष्‍ट है कि आगे आने वाले सालों में शुल्‍कें और बढ़ेंगी। मीडिया को इस संदर्भ में सनद रहे कि दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के शिक्षक भी इसीप्रकार की शुल्‍क वृद्धि को लेकर हड़ताल पर हैं।

इस पूरे मामले में पुन: ध्‍यातव्‍य है कि विश्‍वविद्यालय के शिक्षक गण 29 मई 2018 से अपने एक साथी डॉ. बुद्धिप्रकाश जैन को गलत ढंग से दिये गये कारण बताओ नोटिस के खिलाफ आंदोलनरत हैं। इस मुद्दे से आरंभ हुआ यह आंदोलन 4 जून 2018 से क्रमिक भूख हड़ताल की शक्‍ल ले चुका है। आज भूख हड़ताल के नवें दिन डॉ. पवन, श्री अमिताभ ज्ञानरंजन, डॉ. राजेश, डॉ. सुनील कुमार सिंह और श्री ओम प्रकाश गुप्‍ता भूख हड़ताल पर बैठे हैं। ध्‍यातव्‍य है कि हर 48 घंटों बाद पाँच नये शिक्षक क्रमिक भूख हड़ताल की मशाल थाम लेते हैं। एक ओर शिक्षक आंदोलनरत हैं और भूख हड़ताल पर बैठे हैं, दूसरी ओर कुलपति का अहंकार देखिये कि वे आज तक शिक्षकों का हालचाल लेने के लिए आंदोलन स्‍थल पर नहीं आये हैं। इतना ही नहीं उन्‍होंने धनबल और प्रलोभन से स्‍थानीय मीडिया को इस कदर अपना क्रीतदास बना रखा है कि कुछ इक्‍का-दुक्‍का अपवादों को छोड़कर अखबारों के स्‍थानीय संस्‍करण शिक्षकों के इस आंदोलन को दबाने-छिपाने में लगे हैं। कुलपति द्वारा स्‍थानीय नेताओं और प्रभावशाली लोगों तक को नौकरियों आदि का प्रलोभन देकर अपने पक्ष में कर रखा है। तथाकथित सिविल सोसाइटी के लोग तो शिक्षकों से ही उल्‍टा सवाल कर रहे हैं कि जब उन्‍हें वेतन समय पर मिल रहा है, तो वे क्‍यों आरक्षण और यौन उत्‍पीड़न जैसे मुद्दे उठा रहे हैं !

12 जून को बिहार के स्‍थानीय कशिश चैनल पर कुलपति का एक ऑडियो टेप चलाया गया है जिसमें वे किसी छात्रा को विश्‍वविद्यालय के ही एक शिक्षक के खिलाफ फर्जी यौन उत्‍पीड़न की शिकायत करके आंदोलनकारियों को दबाने का षड्यंत्र बनाते पकड़े गये हैं। यद्यपि कुलपति का कहना है कि यह ऑडियो जोड़तोड़ के बनाया गया है किंतु उन्‍होंने इस ऑडियो में उनकी आवाज़ न होने का दावा फिर भी नहीं किया है। पुन: ध्‍यातव्‍य है कि कल 13 जून को ही जी टीवी बिहार-झारखंड ने भी कुलपति का एक और ऑडियो-वीडियो चलाया है जिसमें वे शिक्षकों को परिवीक्षा अवधि में बर्खास्‍त करने की धमकी देते सुने और देखे जा सकते हैं। इस संदर्भ में शिक्षक और विद्यार्थियों का कहना है कि यह तो सिर्फ ट्रेलर है, इसप्रकार के और भी ऑडियो-वीडियो अभी आने शेष हैं। कल शाम विद्यार्थियों ने ‘कुलपति भगाओ और बेटी बचाओ’ के नारे लगाते हुये बाज़ार में रैली भी निकाली थी। आज जब मीडिया प्रबंधन द्वारा बनाई गई कुलपति की नैतिकतावादी और गाँधीवादी छवि दरकने लगी है तो वे पत्रकारों को प्रेस विज्ञप्ति देकर छपवाते हैं कि वे गाँधीवादी ढंग से आंदोलनरत शिक्षकों का मुकाबला करेंगे ! लेकिन जनाब कौनसा गाँधीवाद कहता है कि आप सरकारी पैसे से शिक्षकों को मानहानी के मामलों में फंसाकर अदालत में उनकी परेड करायेंगे। भूख हड़ताल करते हुए भी अपने शैक्षणिक दायित्‍वों का निर्वाह करने वाले शिक्षकों में आपको गाँधी क्‍यों नहीं नज़र आते ? गाँधीवाद को स्‍वच्‍छ भारत और खादी तक ही सीमित कर देने वाले ये कुलपति शिक्षकों को जिसप्रकार से बर्खास्‍त करने और कारण बताओ नोटिस पकड़ा देने की धमककियाँ देते आये हैं, उन धमकियों को क्‍या कोई अहिंसा का नाम दे सकता है ? फर्जी यौन उत्‍पीड़न में फंसाने का कुचक्र रचने वाले कुलपति जी किस मुँह से स्‍वयं को गाँधीवादी नैतिकता का पुजारी कह सकते हैं ? गाँधी जी ने कहा था कि झूठ मत बोलो, किंतु ये कुलपति तो गाँधी के चंपारण शताब्‍दी समारोह के उपलक्ष्‍य में विश्‍वविद्यालय की ओर से प्रकाशित दो पुस्‍तकों तक में दूसरों के द्वारा लिखित लेखों को अपने शिक्षकों के नाम से छपवाने का दबाव संपादक मंडल पर डालते हैं। इन पुस्‍तकों के लिए लेख न लिखने पर परिवीक्षा अवधि आगे खिसकाने की धमकी भी उन्‍होंने शिक्षकों को दी थी। दलितों के हितों की बात करने वाले गाँधी का यह छद्म बगुला भगत कुलपति जब आरक्षित वर्गों के पद खा जाता है, आरक्षित वर्गों के बच्‍चों को शिक्षा से वंचित रखता है तो कैसे आप इसे गाँधीवादी कहेंगे ? क्‍या भूख हड़ताल पर बैठे आंदोलनरत शिक्षकों से न मिलना और उनके खिलाफ अनुशासनात्‍मक कार्रवाई की धमकियाँ देना ही गाँधीवाद होता है ? गाँधी ने कहा था कि बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोलो किंतु हमारे कुलपति जी की नीति उलटी है – बुरा ही देखो, बुरा ही सुनो और बुरा ही बोलो।     

किंतु हम शिक्षक बिके हुये नहीं हैं और न क्षुद्र प्रलोभनों से हम डिग सकते हैं। हम उस विश्‍वविद्यालय की परिकल्‍पना करते हैं जहाँ हमारे मौलिक अधिकारों का हनन न हो, हमें विश्‍वविद्यालय में कदम रखते ही इस बात का भय न सताये कि कब किस कारण से हमें हमारी नौकरी से बर्खास्‍त कर दिया जायेगा या किसी दूसरे तरीके से प्रताड़ि‍त किया जायेगा। अंत में सनद रहे कि कुलपति और प्रशासन द्वारा  बारंबार शिक्षकों को चेतावनी दी जाती रही है कि कौओं की तरह टांग दिये जाओगे। हम विगत के लगभग डेढ़ सालों की इस यंत्रणा के बाद आज इस निष्‍कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि वर्तमान कुलपति के रहते हुए हम स्‍वाभिमान तथा अपने मौलिक अधिकारों के साथ नौकरी नहीं कर सकते। अपने पद के साथ न्‍याय नहीं कर सकते। हम विश्‍वविद्यालय के कुलपति से उनके इस्‍तीफे की मांग करते हैं। गाँधी जी के नाम पर बनाये गये इस विश्‍वविद्यालय में गाँधी जी के तमाम सिद्धांतों और आदर्शों की जिसप्रकार से हत्‍या हो रही है, जिसप्रकार से गाँधीवाद को मात्र कर्मकांड बनाकर कुलपति ने अपने काल कारनामों पर पर्दा डालने का प्रयास किया है, ऐसे में इन्‍हें पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।

 

नोट : महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय में चल रहे शिक्षकों के इस आंदोलन की सुर्खियों के लिए मीडिया मित्र निम्‍न लिंकों पर जा सकते हैं –

  1. https://timesofindia.indiatimes.com/city/patna/mgcu-teachers-stir-enters-8th-day/articleshow/64469279.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=social&utm_campaign=TOIDesktop
  2. http://epaper.bhaskar.com/detail/39089/65224324992/bihar/map/tabs-1/2018-06-06%2000:00:00/482/4/image/
  3. https://www.facebook.com/photo.php?fbid=1864063766986161&set=a.110830155642873.13586.100001476665893&type=3&theater
  4. https://www.facebook.com/mgcu.teachers.3/videos/117999905756284/
  5. https://www.facebook.com/MGCUTA/videos/312378119299875/
  6. कशिश टीवी प्रसारण का लिंक – https://www.youtube.com/watch?v=fO2lo1K36y4
  7. महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय के शिक्षकों का फेसबुक पृ. – https://www.facebook.com/mgcu.teachers.3

 

प्रेषक : आंदोलनरत शिक्षक, महात्‍मा गाँधी केंद्रीय विश्‍वविद्यालय, मोतिहारी – 845401                  

संपर्क : श्री श्‍याम नन्‍दन (फोन नं. 9453154515), डॉ. भानु प्रताप सिंह (9652983076), डॉ. पंकज कुमार सिंह (6202789562)   

 

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