City Post Live
NEWS 24x7

सासाराम में दांव पर लगी है मीरा कुमार की प्रतिष्ठा, BSP की वजह से बड़ी चुनौती

-sponsored-

-sponsored-

- Sponsored -

सासाराम में दांव पर लगी है मीरा कुमार की प्रतिष्ठा, BSP की वजह से बड़ी चुनौती

सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की सासाराम लोक सभा सीट पर देश भर की नजर टिकी है क्योंकि यहाँ से एकबार फिर से चुनाव मैदान में हैं कांग्रेस नेत्री मीरा कुमार. मीरा कुमार का मुकबला बीजेपी प्रत्याशी और बिहार के सासाराम से मौजूदा सांसद छेदी पासवान से है. छेदी पासवान का कहना है कि उनकी सीट पर नामदार और कामदार के बीच सीधी लड़ाई है. नामदार बनाम कामदार के नारे को छेदी पासवान ने अपना चुनावी तकिया कलाम बना लिया है. उन्हें पूरा भरोसा है कि इसी नारे की बदौलत वो अपना चुनाव निकाल लेगें. छेदी पासवान का कहना है  कि वो एक आम आदमी हैं और कांग्रेस प्रत्याशी की तरह चांदी का चम्मच मुंह में लेकर पैदा नहीं हुए हैं. पासवान ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी और स्थानीय स्तर पर वो वंशवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. छेदी पासवान का कहना है कि संसद सत्र छोड़कर बाकी समय वो सासाराम में ही रहते हैं जबकि उनकी प्रतिद्वंदी मीरा कुमार ने पूर्व में अपनी जीत के बाद बमुश्किल ही इस संसदीय क्षेत्र का दौरा किया है.

कांग्रेस प्रत्याशी मीरा कुमार अपने पिता और महान नेता बाबू जगजीवन राम की ओर से इस पिछड़े संसदीय क्षेत्र में कराए गए विकास कार्यों को याद करा रही हैं. वो केवल परिवार के नाम पर ही वोट नहीं मांग रही हैं बल्कि बतौर सांसद अपने दो कार्यकालों ( 2004 और 2009) के दौरान कराए गए कामों की भी गिनती करा रही हैं.19 मई को सातवें और अंतिम चरण के चुनाव में यहां वोटिंग होनी है. पूर्व उप-प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम का इस संसदीय क्षेत्र से पुराना नाता रहा है. यहां से उन्होंने रिकॉर्ड आठ बार, 1952 से 1984 के बीच लगातार जीत दर्ज़ की थी.बाबू जगजीवन राम ने छुआछूत जैसी कुरीतियों को समाप्त करने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी और बिहार के इस पिछड़े क्षेत्र को औद्योगिक केंद्र बनाने की दिशा में काम किया. उन्हीं के अथक प्रयासों से कई बड़े उद्योग यहां स्थापित हुए. ब्रिटिश काल में बनाई गई सोन नहर प्रणाली को पुनर्निर्मित करने की दिशा में काम किया जिससे वहां के किसानों को सिंचाई की सुविधा मिले.

लेकिन चुनाव का आखिरी चरण के आते-आते ये मुद्दे अब पीछे चले गए हैं और अभियान मूल रूप से जातिवाद और प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच वर्चस्व की लड़ाई तक सीमित रह गया है. बीजेपी प्रत्याशी मोदी के करिश्मे को भुनाने में लगे हैं. छेदी पासवान इस सीट से दो बार-1989 और 1991 में जीत दर्ज़ कर बाबू जगजीवन राम की विरासत में सेंध मार चुके हैं. राष्ट्रीय जनता दल के समर्थन के साथ कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि वो मुस्लिमों और यादवों का वोट हासिल करने में कामयाब होगी. उम्मीद लगाई जा रही है कि उन्हें कुशवाहा समाज का भी वोट हासिल होगा, क्योंकि वो खुद इसी समाज से आने वाले एक प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार की बहू हैं. इस बार लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है एसपी के मनोज कुमार ने. इस इलाके में बड़ी संख्या में दलित वोट होने के कारण इस बार बीएसपी प्रमुख मायावती ने इस क्षेत्र के रास्ते बिहार में कदम रखने का निर्णय लिया.बीएसपी की वजह से मीरा कुमार की चुनौती बढ़ गई है लेकिन छेदी पासवान से लोगों की नाराजगी को वो अपना सबसे बड़ा हथियार बनाने की कोशिश कर रही हैं.

इस संसदीय क्षेत्र में यादव के बाद भूमिहारों की आबादी है. इसके बाद मुसलमान और राजपूत की संख्या है. अतिपिछड़ी जातियों में बनियों की भी काफी आबादी है. कुछ गांवों में कहारों की संख्या भी अच्छी तादाद में है. नदियों के कारण मल्‍लाह भी बड़ी संख्या में हैं.इस सीट को लेकर दिलचस्प तथ्य ये है कि यहां यादव और भूमिहार जाति में वर्चस्व की लड़ाई तो और ये एक-दूसरे के खिलाफ गोलंबदी में शामिल रहे हैं. हालांकि यह जीत-हार के समीकरणों के तहत बदल भी जाया करते हैं.

2014 में कुछ इलाकों में व्यक्ति विशेष के कारण भूमिहारों ने भी यादव जाति के उम्मीदवारों को वोट दिया. विशेष रणनीति के तहत जब लालू यादव या मीसा भारती को हराने के लिए भूमिहारों ने दूसरे यादव को वोट दिया तो यादवों की बड़ी आबादी ने भी लालू परिवार का साथ छोड़ दिया.बहरहाल चुनावी संघर्ष इसलिए भी दिलचस्प बन पड़ा है क्योंकि इस बार लालू परिवार से महज मीसा भारती ही चुनावी मैदान में हैं. अगर उनकी हार होती है तो इस बार लालू परिवार का कोई भी व्यक्ति संसद में प्रतिनिधित्व नहीं कर पाएगा. यही वजह है कि तेजस्वी, तेजप्रताप और राबड़ी देवी ने पूरा जोर लगा दिया है.

इस सीट से मिसा भारती की जीत सुनिश्चित करने के लिए ही आरजेडी ने अपनी आरा सीट को माले के लिए छोड़ दिया है. माले ने आरा सीट के बदले पाटलिपुत्र सीट मिसा भारती के लिए छोड़ दिया है. इसबार मिसा भारती को माले का साथ मिल रहा है तो रामकृपाल यादव को नीतीश कुमार का साथ मिल रहा है. अब देखना ये है कि यहाँ माले और नीतीश कुमार के बीच कौन ज्यादा दमदार साबित होता है.जो ज्यादा वोट मैनेज कर पायेगा उसी का उम्मीदवार लोक सभा पहुंचेगा .

- Sponsored -

-sponsored-

- Sponsored -

Comments are closed.