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पश्चिम बंगाल चुनाव में ममता की हैट्रिक, बीजेपी के भविष्य के लिए बड़ी चुनौती.

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सिटी पोस्ट लाइव : बंगाल की बेटी ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार प्रचंड बहुमत के साथ चुनाव जीतकर ये साबित कर दिया कि बंगाल में उनका विकल्प कोई नहीं है.ममता बनर्जी की  हैट्रिक ने उनके कार्यकर्ताओं में जोश भर दिया है. वे सड़क पर आ गए हैं और अपनी जीत का जगह-जगह पर जश्न मनाना शुरू कर दिया है. कहीं पर गुलाल फेंका जा रहा है तो कहीं पर ढोल-नगाड़े बज रहे हैं. इधर, वोटों की पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण भाजपा 100 के अंदर अटक गई है.

गौरतलब है कि बीजेपी ने कोरोना के सुनामी के बीच अपनी पूरी ताकत बंगाल में झोंक दिया था. ऐसा माहौल बनाया गया कि बीजेपी  जीत रही है. इसके बावजूद टीएमसी की जीत बीजेपी के लिए किसी झटके से कम नहीं है. बंगाल के चुनाव परिणाम के कई राजनीतिक मायने भी निकलेंगे. विधानसभा में सीटों के लिहाज से पश्चिम बंगाल में यूपी के बाद सबसे ज्यादा 294 सीटें हैं. यही कारण था कि बीजेपी  देश के दूसरे सबसे बड़े सियासी राज्य पर अपना झंडा फहराना चाहती थी. चुनाव के अन्तिम चरण में तो भाजपा के शीर्ष नेताओं ने तो बंगाल फतह को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. यही कारण था कि चुनाव तो पांच राज्यों में हुए, लेकिन पूरे देश की निगाहें बंगाल पर ही लगी थी.

बंगाल चुनाव में बीजेपी के हिन्दू कार्ड ने मुसलमानों को गोलबंद कर दिया. ममता अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों के बीच भरोसा कायम रखने में कामयाब रहीं कि टीएमसी ही बीजेपी को रोक सकती है. वे अपनी सभा में यह कहना नहीं भूली कि पश्चिम बंगाल को गुजरात और उत्तर प्रदेश नहीं बनने देंगे. यही कारण था कि मुस्लिमों ने भी लेफ्ट-कांग्रेस के साथ शामिल इंडियन सेकुलर फ्रंट की जगह बीजेपी को हराने के लिए एकतरफा टीएमसी के लिए वोट किया. इससे वोटों के बंटवारे की विपक्ष की रणनीति धरी की धरी रह गई. उन्होंने बांग्ला और बांग्ला के विरुद्ध की भावना को भी अच्छी तरह से उभारा.

ममता बनर्जी ने  अपनी रैली में वे जय बांग्ला के नारे लगाये और पहली बार चुनाव में बांग्ला और बांग्ला के विरुद्ध लोगों के भावनाओं को जगाया. बीजेपी की ध्रुवीकरण की कोशिश की काट करने के लिए तृणमूल कांग्रेस ने ‘बंगाल को चाहिए अपनी बेटी’ का नारा देकर महिला वोटरों को बड़े पैमाने पर अपने पाले में खींचा. इसका उन्हें लाभ मिला और उनकी जीत की राह आसान हो गई.

ममता ने कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले पर भी बीजेपी को  निशाने पर लिया. उन्होंने अन्तिम चार चरणों में बीजेपी के चुनावी सभा और रोड शो को संक्रमण के लिए दोषी ठहराया. जनता को वो यह समझाने में सफल रही कि बंगाल में जो महामारी फैल रही है, उसके लिए बीजेपी सबसे ज्यादा  जिम्मेवार हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव तो टाला जा सकता था या फिर आठ की जगहों पर चार चरणों में कराया जा सकता था, लेकिन बीजेपी ने अपने स्वार्थ में चुनाव को लंबा खींचा और महामारी को बढ़ाया.

ममता के वार के काट के लिए बीजेपी के  पास न तो मुख्यमंत्री पद का कोई चेहरा था और ना ही कोई तेजतर्रार महिला नेता जो ममता को उनकी शैली में जवाब दे पाता. बीजेपी के बाहरी नेताओं के ममता बनर्जी पर सीधे हमले के मुद्दे को भुनाते हुए टीएमसी ने बांग्ला संस्कृति, बांग्लाभाषा और अस्मिता के फैक्टर को हर जगह उभारा.

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ममता को लेकर भविष्यवाणी की थी कि “भाजपा बंगाल में 294 सदस्यीय विधानसभा में “दोहरे अंकों को पार करने के लिए संघर्ष” करेगी.” यही नहीं बाद में उन्होंने यहां तक कहा था कि यदि भाजपा 99 सीटों से ज्यादा बंगाल में जीत जाती है तो वह अपना पेशा तक छोड़ देंगे. दरअसल बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को जिताने के लिए पिछले करीब दो वर्षो से प्रशांत किशोर की टीम वहां पर काम कर रही है. उनके इस दावे के बाद बीजेपी नेताओं ने उनकी खिल्ली उड़ाया था. बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव व बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने तो यहां तक कह दिया था कि देश को एक चुनावी रणनीतिकार खोना पड़ेगा. लेकिन वहीँ हुआ जैसा प्रशांत किशोर ने दावा किया था.

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