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टेंशन में JDU, कैसी खीर पका रहे हैं उपेन्द्र कुशवाहा?

JDU से दूर और BJP के करीब जाते दिखाई दे रहे उपेंद्र कुशवाहा, मकर-संक्रांति को खुलेगा राज.

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सिटी पोस्ट लाइव :RJD के विधायक सुधाकर सिंह की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर अशोभनीय टिप्पणी के जवाब में जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की प्रतिक्रिया को हलके में लेना भूल होगी.उनकी प्रतिक्रिया से साफ़ है कि बिहार में महागठबंधन की राजनीति में बड़ा उथल पुथल चल रहा है.वो इसी बहाने लालू -राबड़ी राज को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं.कुशवाहा 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दही-चूड़ा की दावत देने वाले हैं. JDU के सभी सांसदों-विधायकों को आमंत्रित किया है, बड़े नेताओं की मौजूदगी बहुत हद तक साफ कर देगी कि कुशवाहा अपने दल में कितने सुकून से हैं. प्रतीक्षा इसलिए भी है कि उन्होंने दावत जदयू नहीं, बल्कि अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद की ओर से देने वाले हैं.

उपेन्द्र कुशवाहा ने अपने पुराने दल राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी के पिछले वर्ष जदयू में विलय के बाद भी अपने संगठन महात्मा फुले समता परिषद को बचाकर रखा है, ताकि विपरीत स्थिति में काम आए. पिछले एक महीने के उनके बयानों का अगर विश्लेषण किया जाए तो वह हर कदम पर जदयू को आईना दिखाते नजर आते हैं. अपनी ही सरकार के विरुद्ध बयान देकर चर्चा में आए सुधाकर पर भड़के कुशवाहा ने राजद के साथ जदयू की मुश्किलें भी बढ़ा दी हैं. सुधाकर पर कार्रवाई की मांग और लालू राज की याद दिलाते हुए कुशवाहा ने तेजस्वी यादव को भी आईना दिखाया है. उन्होंने कहा कि नीतीश ने कैसे उस खौफनाक मंजर से बिहार को बाहर निकाला है, इसपर भी विचार करना चाहिए.

कुढ़नी विधानसभा के उपचुनाव में जदयू प्रत्याशी की हार पर कुशवाहा ने अपने ही दल की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे.RJD के साथ JDU के गठबंधन के बारे में कहा था कि ऊपर से दोनों एक हो गए, लेकिन कार्यकर्ताओं की मनोदशा को नहीं समझा गया. कुशवाहा ने एक और बड़ा बयान तब दिया जब राजद-जदयू के विलय की खबरें आने लगीं. उन्होंने इसे जदयू के लिए आत्मघाती बताकर नीतीश कुमार को सचेत किया. हालांकि नीतीश ने अगले दिन साफ कर दिया कि दोनों दलों के विलय जैसी कोई बात नहीं है.

राजनीतिक जानकारों के अनुसार कुशवाहा का अगला कदम BJP से भी जुड़ा हो सकता है. नीतीश कुमार की सरकार से भाजपा के बाहर होने के बाद एनडीए को बिहार में नए सहयोगियों की जरूरत है. इसी सिलसिले में चिराग पासवान को भाजपा ने एक अंतराल के बाद दोबारा अपनाया है. जदयू से अलग होकर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह भी भाजपा की लाइन पर ही चलते दिख रहे हैं.भाजपा को कुछ अन्य सहयोगियों की तलाश है. ऐसे में उपेंद्र कुशवाहा की गतिविधियों पर नजर है. बिहार में कोईरी वोटरों की संख्या को देखते हुए कुशवाहा भाजपा की जरूरत बन सकते हैं.

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