कमजोर और अलग-थलग पड़े कुशवाहा को महागठबंधन के लिए छोड़ना BJP की बड़ी भूल
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार एनडीए में सबकुछ अच्छा नहीं चल रहा है. BJP फिरहाल उन्हें दो से ज्यादा सीट देने को तैयार नहीं है.पहले चार सीट की मांग कर रहे उपेन्द्र कुशवाहा तीन सीटों की मांग पर अड़े हुए हैं. BJP की समझदारी इसी में है कि कुशवाहा को पिछले चुनाव की तरह उन्हें तीन सीट देकर मामला रफा दफा करे. कुशवाहा ने एक गलती जरुर की है. उन्होंने एनडीए में रहते हुए ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाने के खातिर महागठबंधन की तरफ जाने का संकेत देकर BJP को ब्लैकमेल करने की गलती की है. हालांकि ऐसी गलती करने वाले उपेन्द्र कुशवाहा एकलौते नेता नहीं हैं. आजकल ज्यादातर नेता ऐसा ही करते हैं. उन्होंने दूसरी गलती एनडीए के सबसे महत्वपूर्ण घटक दल JDU के खिलाफ मोर्चा खोलकर की है. लेकिन इस वजह से अगर BJP-JDU ने उनको एनडीए से बाहर कर देने का फैसला ले लिया है तो यह आत्मघाती फैसला होगा.
राजनीति में आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है. लेकिन समय के हिसाब से जरुरत के मुताबिक़ राजनीतिक गठजोड़ होता रहता है. नीतीश कुमार और बीजेपी के विचारधारा में जमीन-आसमान का फर्क है, फिर भी आज एकसाथ हैं .ये समय की मांग है. दोनों एक दूसरे की जरुरत हैं. वैसे ही महागठबंधन को मात देने के लिए NDA के लिए उपेन्द्र कुशवाहा बेहद जरुरी हैं. एनडीए के घटक दल और खासकर बीजेपी अगर ऐसा मानती है कि उपेन्द्र कुशवाहा के रहने-ना रहने से NDA की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता है तो यह BJP-JDU की बड़ी भूल होगी. केवल आपस के वाद-विवाद या फिर एक दो सीट के लिए उपेन्द्र कुशवाहा को NDA से बाहर कर देना BJP-JDU दोनों के लिए महंगा सौदा साबित हो सकता है. BJP को ये नहीं भूलना चाहिए कि उत्तर-प्रदेश में उसे अप्रत्याशित सफलता उपेन्द्र कुशवाहा जैसे छोटे बड़े सभी नेताओं को साथ लेने की वजह से ही मिली थी. अपने सारे इगो को ताक पर रखकर अमित शाह ने यूपी में छोटे छोटे दलों को अपने साथ लेकर मायावती और मुलायम के मायाजाल को ख़त्म कर दिया था.लेकिन दो दिन पहले बिहार दौरे पर आए बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेन्द्र यादव ने जो संकेत दिया कि कुशवाहा के जाने से एनडीए को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, राजनीतिक अपरिपक्वता या अहंकार की निशानी है. अपने गलत स्टैंड की वजह से आज खुद उपेन्द्र कुशवाहा ने अपनी राजनीतिक हैसियत भले कम कर लिया हो और ‘अकेले’ पड़ते दिख रहे हों लेकिन कल अगर वो महागठबंधन के साथ जाते हैं तो खेल बदल सकता है.उपेन्द्र कुशवाहा को कितना नुकशान या फायदा होगा पता नहीं लेकिन महागठबंधन को जरुर बहुत फायदा और NDA को बड़ा नुकशान जरुर हो सकता है.
आज की तारीख में महागठबंधन को नजर-अंदाज करना NDA की बड़ी भूल साबित हो सकती है. आज की तारीख में यादव-मुस्लिम समाज पुरे दिल के साथ भावनात्मकरूप से RJD के पक्ष में खड़ा है. इस मजबूती के साथ कि NDA के मुस्लिम और यादव उम्मीदवारों के लिए भी अपने समाज के वोट बैंक में सेंधमारी मुश्किल है. ऐसे में उपेन्द्र कुशवाहा का महागठबंधन के साथ जाना NDA के लिए घातक हो सकता है. दूसरी तरफ आज की तारीख में SC/ST एक्ट और आर्थिक आधार पर आरक्षण की मांग को लेकर नाराज सवर्ण समाज के वोट बैंक में सेंधमारी तय है. अगर बीजेपी को सबक सिखाने के लिए सवर्ण समाज एकबार फिर कांग्रेस के साथ आंशिकरूप से भी खड़ा हो गया तो NDA का पूरा खेल बिगड़ सकता है. आज सवर्ण समाज की मांग को लेकर BJP के खिलाफ हवा बनाने में जिस तरह से सवर्ण संगठन सक्रीय हैं और राजनीतिक संगठन बनाकर अपना उम्मीदवार उतारने की तैयारी में हैं पूरा खेल बदल सकता है.
उपेन्द्र कुशवाहा ने 26 अगस्त को इशारों-इशारों में कहा कि ‘यदुवंशी (यादव) का दूध और कुशवंशी (कोइरी समुदाय) का चावल मिल जाए तो स्वादिष्ट खीर बन सकती है.इस खीर से उपेन्द्र कुशवाहा कितना तृप्त होगें पता नहीं लेकिन महागठबंधन का मुंह जरुर मीठा हो जाएगा.इसलिए समझदारी इसी में है कि कुशवाहा की सारी गलतियों और राजनीतिक अपराध को उनकी एक मामूली भूल समझकर NDA उन्हें संभलने का एक मौका देकर अपनी जीत पक्की कर ले.जेडीयू पहले 22 सीटों पर चुनाव लड़ता था लेकिन इसबार वह 15-16 पर चुनाव लड़ने को तैयार है .22 सीटों पर चुनाव जीतने वाली BJP अगर नीतीश कुमार की वजह से 15-16 पर चुनाव लड़ने के लिए तैयार है तो यह बड़ी बात है. लेकिन इस आधार पर उस उपेन्द्र कुशवाहा से भी एक सीट का बलिदान देने की उम्मीद रखना जिसके पास चुनाव लड़ने के लिए आधा दर्जन से ज्यादा सक्षम नेता हैं लेकिन सीट केवल तीन है,बेमानी होगी.. तीन सीट में से कितनी सीट उपेन्द्र छोड़ेगें और कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेगें.
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