क्या आज भी बिहार की सियासत के ‘बैलेंसिंग फैक्टर’ हैं नीतीश कुमार!
सिटी पोस्ट लाइव : प्रधानमंत्री पद के लिए बिहार से हमेशा केवल नीतीश कुमार का नाम उछाला जाता है . गठबंधन की राजनीति के सबसे माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं नीतीश कुमार . कभी RJD जैसी धुर विरोधी के साथ तो कभी मुद्दों पर BJP से दूरी की बात करते हुए 18 वर्षों तक सियासत को साधने में अगर किसी ने महारत हासिल की है तो वो सख्श हैं नीतीश कुमार.सबसे खास यह है कि बिहार के दो सियासी खेमे में इस बात को लेकर हमेशा रस्साकशी भी चलती रहती है कि नीतीश कुमार उनके खेमें में आ जाएं. आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने नीतीश कुमार को फिर से आरजेडी के साथ आने का खुला ऑफर दिया तो यह बात एक बार फिर साबित हो गई कि सूबे की सियासत में अगर को सबसे बड़ा बैलेंसिंग फैक्टर है तो वह नीतीश कुमार ही हैं.
दरअसल,नीतीश कुमार एक बैलेंसिंग फैक्टर हैं, लेकिन वर्तमान संदर्भ में कितना कारगर साबित होंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में हैं. अगर तथ्यों पर नजर डालें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी तीनों अलग-अलग चुनाव लड़ीं थीं. ऐसे में वोट शेयर पर गौर करें तो बीजेपी को 29.9, आरजेडी को 20.5 और जेडीयू को 16 कांग्रेस को 8.6, एलजेपी को 6.5 प्रतिशत मत मिले थे.इतने कम वोट बैंक के साथ नीतीश कुमार खुद एक राजनीतिक ताकत तो नहीं हो सकते, लेकिन उनका साथ चाहे वो बीजेपी के साथ हो या फिर आरजेडी के साथ उसे निर्णायक बढ़त दिलाने का दम रखते हैं. इस बार के लोकसभा चुनाव में भी इस बात की तस्दीक होती है.
बिहार में एनडीए को एनडीए को कुल मिलाकर 53.3 प्रतिशत वोट मिले. बीजेपी को 23.6 प्रतिशत, जेडीयू को 21.8 प्रतिशत एलजेपी को 7.9 प्रतिशत वोटरों का समर्थन मिला. वहीं आरजेडी को 15.4 प्रतिशत और कांग्रेस 7.7 प्रतिशत मत मिले हैं.जाहिर है नीतीश कुमार जिधर भी जाते हैं उस गठबंधन का पलड़ा भारी हो जाता है. बिहार के संदर्भ में ये बात वर्ष 2005 और 2010 के विधानसभा चुनाव में साबित भी हुई, जब जेडीयू- बीजेपी ने साथ मिलकर एनडीए की सरकार बनाई.
इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी आरजेडी के साथ हुई तो अपार बहुमत से जीत हासिल हुई. 2015 में दोनों का महागठबंधन कामयाब रहा था. तब राष्ट्रीय जनता दल 80 सीटों के साथ बड़ी पार्टी रही थी और जनता दल यूनाइटेड को 71 सीटें मिली थीं.इससे पहले वर्ष 2009 के आम चुनाव में बीजेपी के साथ तो नीतीश कुमार की पार्टी 20 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करने में कामयाब हुए थे.
2015 और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने बड़ी जीत हासिल की है, लेकिन चेहरा नीतीश कुमार का नहीं बल्कि पीएम नरेंद्र मोदी थे. पहले तो बिहार में नीतीश कुमार का चेहरा एनडीए ने आगे किया, लेकिन जब नीतीश कुमार को जमीन हालात पता लगा तो वे भी नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगने लगे. ऐसे ही हालात 2015 से विधानसभा चुनाव में भी थे. तब भी सीएम के लिए नीतीश कुमार चेहरा जरूर थे, लेकिन रीयल फैक्टर लालू प्रसाद यादव थे. अब जब बीजेपी को प्रचंड जीत हासिल हुई है और मोदी के नाम पर अकेले बीजेपी की 303 सीटें हैं, तो नीतीश कुमार अभी बिहार में बैलेंसिंग फैक्टर हैं, यह नहीं कहा जा सकता है.
इस चुनाव में आरजेडी की ऐसी पहलीबार दुर्गति हुई है. वह पहली बार जीरो के स्कोर पर आउट हो गई है. रघुवंश बाबू अब जब नीतीश कुमार को महागठबंधन में आने का खुला ऑफर दे रहे हैं तो एक नयी राजनीति का संकेत तो जरुर मिल रहा है.
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