मधेपुरा में होगा दिलचस्प मुकाबला, क्या इसबार ‘यादव लैंड’ में चलेगी सियासत की उल्टी आंधी ?
सिटी पोस्ट लाइव : “रोम पॉप का मधेपुरा गोप का “ यह कहावत मशहूर है. मधेपुरा मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि रही है. यादवों का गढ़ माने जानेवाला मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओं के लिए हमेशा उर्वर साबित हुआ है. बीपी मंडल से लेकर शरद यादव, लालू प्रसाद यादव, राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने बारी-बारी से इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. यहां सत्ता विरोधी सियासत की आंधी चलती रही है. यहां कभी नेहरू की आंधी में यहां से किराय मुसहर जीते तो 2014 में मोदी की सुनामी में पप्पू यादव जीते.
1 मई 1981 को मधेपुरा जिला का गठन किया गया. 1967 में मधेपुरा लोकसभा सीट अस्तित्व में आया. यहां विधानसभा की 6 सीटें हैं. मधेपुरा जिले का सोनवर्षा, आलमनगर, बिहारीगंज, मधेपुरा तो सहरसा जिले का सहरसा और महिषी विधानसभा क्षेत्र आता है. यहां से पहली बार लोकसभा में नुमाइंदगी करने का गौरव दिग्गज समाजवादी नेता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और मंडल आयोग के अध्यक्ष रहे बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल को हासिल है. वो संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे.
समाजवादी नेता BN मंडल और BP मंडल की जन्मस्थली. लालू यादव और शरद यादव की कर्मस्थली मधेपुरा में आज की तारीख में सबसे ज्यादा बुरा हाल छात्र और नौजवानों का है. चुनाव में सबसे ज्यादा उत्साह दिखाने वाला यह वर्ग आज खुद को छला महसूस कर रहा है.छात्रों की शिकायत है कि कॉलेज में शिक्षकों की कमी है. विश्वविद्यालय का सत्र समय पर नहीं चल रहा है. महिलाओं को खराब लॉ एंड ऑर्डर से शिकायत है. हिमालय से आने वाली नदियां बाढ़ से हर साल तबाही मचाती हैं. बाढ़ से बच गए तो सिंचाई के अभाव में फसलों का मर जाना आम है.
भूपेन्द्र नारायण मंडल, बीपी मंडल, लालू यादव, शरद यादव, पप्पू यादव जैसे दिग्गजों की कर्मभूमि होने के बाद भी मधेपुरा विकास के मामले में पिछड़ा हुआ है. मधेपुरा की गिनती बिहार के पिछड़े जिले के रूप में होती है.यहां समस्याओं का अंबार है. NH-106 सालों से जर्जर है. इस सड़क पर चलना मुश्किल है. NH- 106, 107 और बायपास की हालत भी बदतर है. दो महीने पहले पटना हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एपी शाही ने इसको लेकर बिहार सरकार को फटकार भी लगाई थी.
यहां की जमीन ज्यादा उर्वर नहीं है. किसानी कमजोर होने से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली ज्यादातर आबादी गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बरस करती है. यहां के मेहनतकश लोग रोजगार के लिए पलायन को मजबूर हैं.’रोम है पोप का. मधेपुरा है गोप का’. इसका सीधा मतलब ये है कि मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव जाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं. परिसीमन के बाद आंकड़े थोड़े बदले हैं. पर यदि वोटर के आधार पर जाति की बात की जाए तो मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में अब भी यादव जाति के वोटर सबसे ज्यादा हैं.
यही कारण है मंडलवादी राजनीति की प्रयोग भूमि मधेपुरा में 1967 में अब तक यादव जाति के उम्मीदवार चुनाव जीतते आ रहे हैं. मधेपुरा लोकसभा क्षेत्र में यादव – 3,30,000,मुस्लिम- 1,80,000 ,ब्राह्मण- 1,70,000, राजपूत- 1,10,000, कायस्थ- 10,000, भूमिहार- 5,000, मुसहर- 1,08,000,दलित- 1,10,000. कुर्मी- 65,000, कोयरी- 60,000, धानुक- 60,000, वैश्य/पचपनियां बिरादरी के 4,05,000 लोग हैं.
पिछले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय जनता दल के राजेश रंजन उर्फ़ पप्पू यादव ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जनता दल यूनाइटेड के शरद यादव को पचास हजार मतों के अंतर से पराजित किया था. तीसरे नंबर पर BJP के विजय सिंह कुशवाहा रहे थे.हालांकि 2019 की स्थिति बिल्कुल अलग है. RJD की टिकट से जीते पप्पू यादव ने अपनी अलग पार्टी बना ली है. जबकि दूसरे नंबर पर रहे शरद यादव ने भी JDU से अलग होकर पार्टी से नाराज नेताओं को लेकर अपनी पार्टी बनायी है.इसबार वो महागठबंधन के उम्मीदवार हो सकते हैं.
यादव लैंड से जीते दिग्गज यादव नेता केन्द्र और राज्य सरकार में महत्वपूर्ण पदों पर भी रहे. रेल मंत्री रहते हुए लालू यादव ने रेल इंजन कारखाना और स्लीपर कारखाना की आधारशिला रखी. 10 साल के लंबे इंतजार के बाद मोदी सरकार के दौरान विद्युत रेल इंजन कारखाना तो शुरू हो गया है. लेकिन स्पीपर कारखाना शुरू नहीं हो सका है. क्षेत्र के विकास की जिम्मेदारी सांसद पप्पू यादव की थी. राष्ट्रीय और राज्य से जुड़े मुद्दों पर दिल्ली से लेकर पटना तक झंडा उठाकर आंदोलन करने वाले पप्पू यादव से स्थानीय लोगों की शिकायतें हैं. मधेपुरा की जनता सांसद का पूरा हिसाब रखे हुए हैं. जाहिर है इस बार यहां का चुनाव काफी रोचक होगा क्योंकि इसबार मुकाबला उसी पार्टी से है जिसके टिकेट पर वो चुनाव जीते थे और पहलवान कोई और नहीं बल्कि शरद यादव हैं जो यहाँ से कईबार चुनाव जीत चुके हैं. .
Comments are closed.