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अपने जबाबी पत्र में सुधाकर ने साधा नीतीश पर निशाना.

5 पन्नों के जवाब में सुधाकर ने RJD को घेरा, याद दिलाया- कैसे महिला विधायकों को पिटवाया था .

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सिटी पोस्ट लाइव : पूर्व कृषि मंत्री और RJD विधायक सुधाकर सिंह का तेवर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर पहले जैसा ही है. 17 जनवरी को राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद के निर्देश पर आरजेडी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव अब्दुल बारी सिद्दीकी द्वारा एक पेज के कारण बताओ नोटिस का जवाब उन्होंने पांच पन्नों में दिया है.पत्र के शुरू में उन्होंने कहा है कि उन्हें कारण बताओ नोटिस वाट्सऐप के जरिए 17 जनवरी 23 को प्राप्त हुआ. पत्र के प्रथम पैराग्राफ में नीतीश कुमार का जिक्र है. सुधाकर लिखते हैं- आपके द्वारा भेजे गए नोटिस में यह बात रेखांकित नहीं की गई है कि मेरे द्वारा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संदर्भ में की गई किसी टिप्पणी से RJD के राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव का उल्लंघन हुआ है.

 

नीतीश कुमार JDU के नेता हैं और RJD के राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव में RJD के किसी भी कार्यकर्ता को किसी अन्य दल के कार्यकर्ता पर टिप्पणी करने के लिए न तो मना किया गया था और न ही कोई रोक लगाई गई थी. नीतीश कुमार को किसान विरोधी और शिखंडी बतानेवाले सुधाकर सिंह ने लिखा है कि अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि JDU नेता नीतीश कुमार से संबंधित मेरे किसी वक्तव्य से राष्ट्रीय अधिवेशन में पारित प्रस्ताव की अवहेलना नहीं हुई है.

 

सुधाकर सिंह ने याद दिलाया कि नीतीश कुमार के आरजेडी के विधायकों ही नहीं तेजस्वी यादव से कैसा व्यवहार किया. उन्होंने कहा- ‘जब 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मंडी कानून को खत्म करने का प्रस्ताव विधान सभा में लाया तो RJD के विधायकों के नेतृत्व में कैसे जोरदार प्रतिरोध किया गया था. कानून का विरोध करने पर सदन के भीतर और बाहर विधायकों को पुलिस द्वारा जबर्दस्त पिटाई की गई. महिला विधायकों को भी घसीटकर पीटा या। यही नहीं, महागठबंधन में एक साथ रहते हुए नीतीश कुमार द्वारा तेजस्वी यादव की उपस्थिति में सार्वजनिक मंच से ये कहना कि 2005 से पहले कुछ था क्या? जो विकास हुआ वो 2005 के बाद हुआ. उनका यह बार-बार कहना RJD के द्वारा किए गए विकास को नकारना RJD के कार्यकर्ताओं और मेरे जैसे कार्यकर्ताओं के लिए असहज की स्थिति पैदा करता है.’

 

सुधाकर सिंह ने आगे लिखा है – 2022 में नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की नई सरकार बनायी गई थी. जिस सरकार में मुझे पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मेरी अनिच्छा के बावजूद मुझे कृषि मंत्री बनाने का फैसला इस आश्वासन के साथ लिया गया था कि RJD द्वारा घोषित नीतियों पर सहजता से कार्य करने का अवसर मिलेगा. लेकिन विभाग चलाने के दौरान विभाग में व्याप्त विसंगतियों एवं मंडी कानून पर बढ़ने की मेरी मंशा पर अधिकारियों के द्वारा लगातार अवरोध पैदा किया जाता रहा, जिसकी चर्चा कैबिनेट की बैठक के दौरान एवं पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समय-समय पर अवगत कराता रहा, जिसकी अंतिम परिणति के बारे में सर्वविदित है.2 अक्टूबर को कृषि मंत्री से दिए गए इस्तीफे के बाद दिल्ली में 8 और 9 अक्टूबर को राजद राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक के आर्थिक प्रस्ताव के पारा 6 में स्पष्ट रूप से मंडी कानून लागू करने एवं धान-गेहूं की खरीद में मल्टीपल एजेंसी करने की वचनबद्धता प्रकट की गई.

 

इस जवाबी पत्र में सुधाकर सिंह ने बहुत अफसोस जताया है कि पार्टी ने उनका साथ नहीं दिया, बल्कि उल्टे उन पर मुख्य घटक दल यानी JDU के प्रवक्ताओं और मंत्रियों द्वारा व्यक्तिगत और चारित्रिक हमले हुए. उन्होंने लिखा- ‘हद से हद मुझे लगा कि कृषि के मुद्दे पर सार्थक बहस के लिए सरकार तैयार हो जाएगी या मौन साध लेगी. ऐसी परिस्थिति में मुझे पार्टी के नेताओं से अपेक्षा थी कि पार्टी की नीतियों एवं सिद्धांत पर आधारित मेरे द्वारा दिए गए वक्तव्यों का बचाव किया जाएगा. लेकिन मुझे अफसोस के साथ यहां कहना पड़ रहा है कि आखिर किस राजनैतिक दबाव में मेरा बचाव नहीं किया गया.
सुधाकर सिंह ने पार्टी की A to Z की नीति पर सवाल उठाया है. कहा है- ‘मुझे अकेले चिन्हित कर नोटिस भेजना न्यायसंगत प्रतीत नहीं होता है और यह हमारी पार्टी के A to Z की नीति की पुष्टि भी नहीं करता.’ यहां बता दें कि सुधाकर सिंह जाति से राजपूत हैं.

 

सुधाकर सिंह का जवाबी कहता है कि आरजेडी को किसानों से जुड़े घोषणा पत्र की बातें दमदार तरीके से नीतीश कुमार के सामने रखने और मनवाने की जरूरत है. आरजेडी बड़ी पार्टी है और उसे अपनी नीतियों को ताकतवर तरीके से लागू करवाना चाहिए. लेकिन नीतीश कुमार तो मानते ही नहीं कि लालू प्रसाद और राबड़ी देवी के राज में बिहार का विकास हुआ. वे तो आरजेडी के विधायकों को विधान सभा मे पिटवाने वाले नेता हैं. सबसे बड़ी बात यह कि उन्होंने पार्टी की A to Z की नीति पर सवाल उठाया है. इशारा राजपूत की तरफ है. इसके पीछे का लोकतांत्रिक सवाल यह है कि जब-जब बयान देने वाले किसी यादव, ब्राह्मण या अन्य नेता को नोटिस क्यों नहीं?

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