सिटी पोस्ट लाइव :भारत में कोरोना की दूसरी लहर बेहद खतरनाक होती जा रही है. फरवरी महीने की अपेक्षा अप्रैल में 9 गुना से भी ज्यादा संक्रमण बढ़ गया है. मंगलवार को तो देशभर में कोरोना संक्रमण के 1 लाख 15 हजार से ज्यादा नए मामले सामने आए. दरअसल,वायरस का कोई नया वैरिएंट पैदा हुआ है जो इतनी तेजी से फैल रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत कोरोना संक्रमण के पॉजिटिव सैंपलों की प्रयोगशालाओं में पर्याप्त जांच-पड़ताल करने में नाकाम रहा है. इसलिए उसके पास पर्याप्त डेटा ही नहीं हैं जो तेजी से बढ़ते केस की वजह समझने में मददगार साबित हो सकें.
ब्लूमबर्ग की एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार अगर भारत जेनेटिक सिक्वेंसिंग के आंकड़ों को समय रहते तेजी से नहीं बढ़ाता है तो न सिर्फ इलाज मुश्किल हो जाएगा बल्कि वैक्सीन भी बेअसर हो जाएगा. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर भारत पॉजिटिव सैंपलों की तेजी से जेनेटिक सिक्वेंसिंग नहीं करेगा तो कोरोना के खिलाफ उसकी जंग बहुत ही कमजोर हो जाएगी. न अस्पतालों में कारगर इलाज हो पाएगा और न ही वायरस के खिलाफ वैक्सीन ज्यादा कारगर साबित होगी.
दरअसल, कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में टेस्टिंग तो महत्वपूर्ण है ही, उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है पॉजिटिव सैंपलों की जीनोम सिक्वेंसी का अध्ययन. जो लोग संक्रमित पाए जा रहे हैं, उनमें से तमाम के सैंपलों की आगे इस बात की जांच होती है कि वायरस का कोई नया वैरिएंट तो नहीं पैदा हो रहा.उसमें कोई ऐसा बदलाव तो नहीं हो रहा जो ज्यादा खतरनाक और संक्रामक हो. यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन के स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रोफेसर भ्रमर मुखर्जी के मुताबिक भारत के पास कोरोना वायरस के नए वैरिएंट से जुड़े पर्याप्त डेटा ही नहीं हैं जो बता सकें कि संक्रमण में अचानक जबरदस्त उछाल की वजह कुछ नए वैरिएंट्स हैं या नहीं.
भारत पॉजिटिव सैंपलों की जेनेटिक सिक्वेंसिंग के मामले में ब्रिटेन और अमेरिका जैसे देशों के मुकाबले काफी पीछे है. सरकारी डेटा के मुताबिक भारत ने अपने पॉजिटिव सैंपलों के 1 प्रतिशत से भी कम की जेनेटिक सिक्वेंसिंग की है. दूसरी तरफ ब्रिटेन में यह आंकड़ा 8 प्रतिशत है. पिछले हफ्ते तो यूके ने पॉजिटिव सैंपलों में से 33 प्रतिशत की यानी एक तिहाई की लैब में आगे की पड़ताल के लिए जांच की. अमेरिका ने भी पिछले महीने बताया कि वह नए केसों में से करीब 4 प्रतिशत सैंपलों की जेनेटिक सिक्वेंसिंग कर रहा है.
हेल्थ मिनिस्ट्री के मुताबिक, भारत में 30 मार्च तक कोरोना के यूके वैरिएंट्स से जुड़े 807 केस, दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के 47 और ब्राजीलियन वैरिएंट का एक मामला सामने आया था. मंत्रालय कहता आया है कि नए मामलों में तेजी से उछाल का नए वैरिएंट्स से कोई संबंध नहीं है. अभी तक जो स्टडी हुए हैं, उनके मुताबिक इन नए स्ट्रेन्स में से कुछ बहुत ज्यादा तेजी से फैलने वाले हैं जबकि इनमें से एक बहुत ज्यादा घातक है. एक अन्य स्ट्रेन में संक्रमण से उबर चुके लोगों को दोबारा संक्रमित करने की क्षमता है.
केरल बेस्ड अर्थशास्त्री और पब्लिक हेल्थ पॉलिसी ऐनालिस्ट रिजो एम. जॉन के मुताबिक, वैक्सीनेशन की धीमी गति, लोगों की लापरवाही, सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क जैसे नियमों का पालन नहीं करने की वजह से नए केस तेजी से बढ़ रहे हैं. भारत में दूसरी लहर कम घातक है यानी मृत्यु दर कम है लेकिन यह पहली लहर से कहीं ज्यादा बुरी रहने वाली है.’ जॉन के मुताबिक, लोगों में वैक्सीन को लेकर हिचक को कम करने में सरकार नाकाम रही है. दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान सरकार के अपने ही लक्ष्य से काफी पीछे है.
भारत अभी औसतन हर दिन 26 लाख वैक्सीन डोज लगा रहा है. इस रफ्तार से उसे अपनी 75 प्रतिशत आबादी के टीकाकरण में अभी 2 साल और लगेंगे. ब्लूमबर्ग वैक्सीन ट्रैकर के मुताबिक भारत में करीब 5 प्रतिशत लोग पहली डोज लगवा चुके हैं जबकि सिर्फ 0.8 प्रतिशत ही दोनों डोज पा चुके हैं.
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