सिटी पोस्ट लाइव : एलजेपी में टूट का बिहार की राजनीति पर बड़ा असर होनेवाला है.सबकुछ तय करेगा बीजेपी के फैसले पर.अगर बीजेपी ने मोदी कैबिनेट में चिराग पासवान की जगह उनके चाचा पशुपति पारस को जगह दे दी तो, बिहार का राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल जाएगा क्योंकि अपने को मोदी का हनुमान बतानेवाले चिराग पासवान के पास तेजस्वी यादव के साथ जाने के अलावा और कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा. एक बात तो तय है कि chirag और तेजस्वी के साथ हो जाने से बिहार में अपना सीएम बनाने का बीजेपी का सपना अगले कई सालों तक पूरा नहीं होगा और नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के साथ रहकर भी अपनी पार्टी को सत्ता में बनाए रखना आसान काम नहीं होगा.
चिराग पासवान और लालू के लाल तेजस्वी यादव एक हो सकते हैं. तेजस्वी ने चिराग की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया है. इसके लिए राजद ने रामविलास पासवान की जंयती (5 जुलाई) मनाने का एलान किया है. 5 जुलाई को ही राजद का भी स्थापना दिवस है लेकिन राजद ने उससे जुड़े कार्यक्रम बाद में करने का फैसला किया है. 5 जुलाई से ही चिराग पासवान ने पिता के संसदीय क्षेत्र रहे हाजीपुर से पूरे बिहार में आशीर्वाद यात्रा निकालने का फैसला किया है.दो सियासी धुरंधर पिता की राजनीतिक विरासत संभाल रहे दोनों युवा नेताओं के एकजुट होने के बिहार में बड़े सियासी मायने निकाले जा रहे हैं. अगर दोनों नेता एक छाते या गठबंधन के नीचे आते हैं तो बिहार का राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है.
पिछले विधान सभा चुनाव के नतीजों से साफ़ है कि chirag paswan अकेले कुछ खास नहीं कर सकते लेकिन जिसका चाहें खेल बना और बिगाड़ सकते हैं. विधान सभा चुनाव के नतीजों पर गौर करें तो पता चलता है कि बीजेपी को 19.5 फीसदी जबकि जेडीयू को 15.4 फीसदी वोट मिले हैं. महागठबंधन के बड़े घटक राजद को अकेले 23.1 फीसदी, कांग्रेस को 9.5 फीसदी, सीपीआई और सीपीआई(एम) को 1.47 फीसदी वोट मिले हैं. लोजपा को इस चुनाव में 5.66 फीसदी वोट मिले थे. राजद के MY वोट से छिटककर AIMIM की ओर गया वोट प्रतिशत भी 1.25 फीसदी है. राजद के पास MY समीकरण की बदौलत जहां 30 फीसदी (16 फीसदी मुस्लिम और 14 फीसीदी यादव) वोट बैंक के दावे किए जाते रहे हैं. वहीं पासवान समुदाय का करीब 6 फीसदी वोट है.
अभी यह तय नहीं है कि पासवान चिराग के साथ जाएंगे या पशुपति पारस के साथ लेकिन इस बात की संभावना ज्यादा है कि पासवान समुदाय बुजुर्ग पारस की जगह युवा चिराग का साथ दे सकता है. बिहार की त्रिकोणीय राजनीति में अगर चिराग और तेजस्वी एकसाथ (30 + 6= 36 फीसदी) आते हैं तो सियासी समीकरण बदल जाएगा. एनडीए के खिलाफ उनका पलड़ा भारी हो सकता है और राज्य में युवाओं के हाथ सियासी कमान आ सकती है. यह अलग बात है कि लालू-राबड़ी के 15 वर्षों के शासनकाल के खात्मे की वजह चिराग पासवान के पिता रामविलास पासवान ही बने थे लेकिन शायद दोनों परिवार पुरानी सियासी रंजिश को भुलाकर अब बदली परिस्थितियों में नीतीश और बीजेपी के करीब दो दशक के शासनकाल का खत्म करना चाहेंगे. लेकिन मोदी अपने इस हनुमान को खुद अयोध्या जलाने का मौका देगें, इसकी संभावना कम है. वो chirag paswan को अपने मंत्रिमंडल में जगह देकर एकसाथ JDU-LJP को साध सकते हैं.
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