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कोरोना से निबटने में कितना सक्षम है बिहार सरकार, जान लेगें तो हिल जायेगें.

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार सरकार द्वारा पटना हाईकोर्ट में दायर हलफनामे के अनुसार अगले एक सप्ताह में यानी आगामी 30 अप्रैल तक रोज संक्रमित होनेवाले मरीजों की  संख्या करीब 20 हजार तक पहुँच जायेगी. आशंका है. जाहिर है अगले 10 दिनों में बिहार में दो लाख नये कोरोना के मामलों सामने आ सकते हैं और तब सक्रिय केसों की संख्या डेढ़ लाख तक पहुंच जायेगी.“ बुधवार, 21 अप्रैल, 2021 को एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने पटना हाईकोर्ट को ये जानकारियाँ दी हैं. बिहार सरकार के अधिवक्ता रंजीत कुमार ने अदालत को बताया है कि कुल मामलों में से बीस फीसदी लोगों को अस्पताल में इलाज की जरूरत होगी. 10 फीसदी को ऑक्सीजन बेड की. यानी राज्य को तब तक 30 हजार सामान्य बेड और 15 हजार ऑक्सीजन युक्त बेड की जरूरत होगी.

पटना हाईकोर्ट में बिहार सरकार द्वारा दिया गया यह स्पष्टीकरण ये बताने के लिए काफी है कि  आने वाले दिनों में बिहार में कोरोना बहुत भयंकर तबाही मचानेवाला है.इस संकट से निबटने की राज्य सरकार की तैयारियां कितनी कमजोर है, इस बात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि फिलहाल राज्य में कोरोना मरीजों के लिए बमुश्किल 2000 बेड ही उपलब्ध हैं.लेकिन  अगले एक हफ्ते में सरकार को पूरे राज्य में 45 हजार बेड का इंतजाम करना पड़ेगा. स्वास्थ्य विभाग के बारे में जो लोग जानते हैं उन्हें ये बखूबी पता है कि ये टास्क पूरा करना असंभव है.

बेड के साथ ऑक्सीजन, और इलाज के लिए डॉक्टरों की जरूरत होगी. इस वक्त जब राज्य में सिर्फ 69 हजार सक्रिय मरीज ही हैंऔर इनमें से 90 फीसदी होम आइसोलेशन में हैं.फिर भी  बिहार के स्वास्थ्य विभाग के लिए स्थितियों को संभालना मुश्किल हो रहा है. आने वाले दिनों में जब सरकार पर  दस गुना ज्यादा प्रेशर बढ़ने वाला है, उस समय क्या होगा, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है.राज्य सरकार बेडों की संख्या बढ़ाने में जुटी है. पिछले साल तक काम कर रहे बिहटा के कोविड केयर सेंटर को किसी तरह चालू कराया गया है. राजेंद्र आई केयर अस्पताल भी चालू कराया जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग ने घोषणा की है कि सभी जिले में सौ से लेकर 500 बेड तक के ऑक्सीजन युक्त अस्थायी कोविड अस्पताल खोले जाएंगे. मगर यह काम हो पायेगा या सिर्फ घोषणाओं में सिमट कर रह जाएगा यह कहना मुश्किल है.

फिर्हाल तो बिहार सरकार के लिए यह काम आसान नहीं लगता. मसला सिर्फ मरीजों के लिए बेड का नहीं, डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की उपलब्धता का भी है. अभी भी राज्य सरकार के अस्पतालों में इनके तीन चौथाई पद खाली पड़े हैं. 45 हजार कोरोना मरीजों की देखभाल के लिए कम से कम दो-तीन हजार डॉक्टरों की जरूरत होगी. क्या स्वास्थ्य विभाग इतने डॉक्टर स्पेयर कर पायेगा. पिछले साल विभाग ने पटना उच्च न्यायालय को बताया था कि उसके पास सिर्फ 2877 डॉक्टर हैं. इस साल भी कैग की रिपोर्ट में मैन पावर का यह संकट जाहिर हुआ था.डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मी भी बड़े पैमाने पर संक्रमित हो रहे हैं.IMA ने पत्र लिखाकर मुख्यमंत्री से डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों की आकस्मिक बहाली की मांग की है.IMA के अनुसार 15 फिसद स्वास्थ्यकर्मी और डॉक्टर्स संक्रमित हो चुके हैं और बाकी बचे हुए डॉक्टर्स ड्यूटी करते करते थक चुके हैं.

कोरोना का असली संकट तब उत्पन्न होगा, जब यूपी और बिहार के गांवों में इसका प्रसार होने लगेगा. इसलिए 15 मई तक इसके पीक पर होने  की आशंका जतायी जा रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि अगर कोरोना को यूपी और बिहार के ग्रामीण इलाकों तक पहुंचने से नहीं रोका गया तो हालात बहुत बुरे होंगे. क्योंकि इन इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति काफी लचर है. लोगों को समुचित इलाज नहीं मिलेगा और हमारे पास असहाय होकर देखते रहने के सिवा कोई चारा नहीं होगा.

गांवों में बड़े पैमाने पर शादी-ब्याह, मुंडन-जनेऊ और गृह प्रवेश जैसे आयोजन हो रहे हैं.लोग अभी भी बेपरवाह नजर आ रहे हैं. वो मानकर चल रहे हैं कि  कोरोना गांवों तक नहीं पहुंचेगा. मगर ऐसे आयोजनों की वजह से गांवों में कोरोना फैलने की भी खबरें शहरों तक पहुँचने लगी है.मई में जब कोरोना पीक पर होगा, बिहार में कैसी तबाही मचेगी, इसका अंदाजा लगाना बहुत ज्यादा मुश्किल नहीं है.

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