लव-कुश के प्रतिनिधित्व को लेकर छिड़ी है नीतीश कुमार-उपेन्द्र कुशवाहा के बीच जंग
सिटी पोस्ट लाइव(पॉलिटिकल डेस्क) : एनडीए में सबसे ज्यादा घमशान रालोसपा और जेडीयू के बीच है. ये लड़ाई वे-वजह नहीं है. इसकी ठोस वजह है. इस लड़ाई की वजह कुर्मी कुशवाहा का वोट बैंक है. दोनों के बीच इस बात की लड़ाई चल रही है कि लव-कुश का प्रतिनिधित्व कौन करता है.लव-कुश का अबतक नीतीश कुमार ही प्रतिनिधित्व करते रहे हैं.लेकिन कुशवाहा का मानना है कि नीतीश कुमार केवल डेढ़ फिसद कुर्मी का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. उपेन्द्र कुशवाहा 10 फिसद कुशवाहा का नेत्रित्व करते हैं. इसी बात को लेकर लड़ाई है और सीटों की दावेदारी भी की जा रही है.
लालू यादव के राज के खात्मे के बाद नीतीश कुमार को जनता ने चुना तो नए जातीय समीकरण भी सामने आने लगे. दरअसल, बिहार के सभी नेता जाति के ही नेता हैं. कोई नेता ये सहजता के साथ स्वीकार नहीं करता कि जाति के बजाय वोटर की और कोई पहचान है.यहीं वजह है कि सोशल इंजीनियरिंग के राजनीति बिहार में चल रही है. ऐसे में जिस जाति का ज्यादा वोट उसके दावे भी उतने ही बड़े हैं.रालोसपा के नेताओं का कहना है कि नीतीश कुमार डेढ़ फीसदी जनाधार वाले नेता हैं जबकि इसके असली हकदार 10 फीसदी जनाधार वाले उपेन्द्र कुशवाहा हैं. अब जब 2019 में जाति के ईर्द-गिर्द ही चुनावी रणनीति तैयार हो रही है तो उपेन्द्र कुशवाहा नीतीश कुमार से ज्यादा तरजीह अपनी पार्टी को देने की मांग कर रहे हैं.
उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी न सिर्फ खीर पका रही है बल्कि कुर्मी-कोईरी (लव-कुश) एकता के नाम पर नीतीश की जनता दल (यूनाईटेड) के जातीय आधार पर निशाना साध रही है. रालोसपा के प्रदेश अध्यक्ष नागमणि ने पिछले दिनों दावा किया कि उनके नेता 10 फीसदी वोट बैंक की नुमाइंदगी करते हैं और कम से कम इसी अनुपात में लोकसभा की सीटें मिलनी चाहिए. यही नहीं उपेंद्र कुशवाहा खुद 2014 के बाद से अब तक पार्टी के विस्तार और सामाजिक आधार के बुनियाद पर ही सीट शेयरिंग की दलील सामने रखते आए हैं.
दरअसल रालोसपा लव-कुश प्लस सोशल इंजीनियरिंग पर काम कर रही है जिसकी व्याख्या खीर थ्योरी के जरिए कुशवाहा सामने ला चुके हैं. ये व्यापक योजना है पर मूल रणनीति कुशवाहा को कुर्मी-कोईरी समाज का सर्वमान्य नेता बनाने की है. इसकी जिम्मेदारी रालोसपा ने जीतेंद्र नाथ को सौंपी है. कुशल संगठनकर्ता के तौर पर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी में पहचान बना चुके जीतेंद्र नाथ अब उपेंद्र कुशवाहा के लिए नए सोशल इंजीनियरिंग की कवायद में जुटे हुए हैं. हाल ही में पटना में इसकी बानगी दिखी. जीतेंद्र नाथ से कुर्मी-धानुक एकता मंच बनाया जिसमें राज्य भर के प्रतिनिधि जुटे.
जीतेंद्र नाथ का दावा है कि धानुक वोट बैंक लगभग चार प्रतिशत है यह कुर्मी की ही उपजाति हैं जिन्हें जसवार कुर्मी कहा जाता है. हालांकि ये अति पिछड़ा वर्ग में आते हैं. कर्पूरी ठाकुर ने ही इन्हें एनेक्चर -1 में जगह दी थी. शेखपुरा, खगड़िया समेत कई जिलों धानुक और कुर्मियों के बीच शादी भी होती है. रालोसपा इसी सामाजिक-सांस्कृतिक साम्य को राजनीतिक गोलबंदी में बदलने की कोशिश कर रही है. जीतेंद्र नाथ नवंबर में कुर्मी-धानुक स्वाभिमान-सम्मान बचाओ सम्मलेन करने की तैयारी में जुटे हैं.इस सम्मलेन को 1994 में पटना में हुई कुर्मी चेतना रैली जैसा असरदार बनाकर नीतीश कुमार से लव-कुश नेता के प्रतिनिधित्व को छिनना है.
रालोसपा का कहना है कि लालू यादव की आरजेडी के 15 वर्षों में यादव राजनीतिक तौर पर सशक्त बने. बिहार के 243 विधायकों में 63 यादव जाति के हैं जिनकी संख्या 14-15 फीसदी है. लेकिन नीतीश के 13 वर्षों के कार्यकाल में कुर्मी-धानुक समाज उपेक्षित महसूस करता रहा. कुर्मी-कोईरी-धानुक जाति के सिर्फ 24 विधायक हैं.उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी शेखपुरा के बेलौनी गांव में अप्रैल में गांव के एक मामूली विवाद के बाद धानुकों पर ढाए जानेवाले पुलिसिया जुल्म को हवा देने में जुटी है. उसके नेताओं का आरोप है कि पुलिस ने धानुकों के परिवारों पर जुल्म ढाए. औरतों -बच्चों की पिटाई हुई और झूठे मुकदमे दर्ज किए गए. इसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने खुद नीतीश कुमार को चिट्ठी भी लिखी लेकिन कोई जवाब नहीं आया.अब इस गुस्से को भुनाने की कोशिश कुशवाहा की पार्टी कर रही है.
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