लालू को पीछे छोड़ चुके हैं तेजस्वी, NDA के लिए आसान नहीं होगा लोक सभा चुनाव
सिटी पोस्ट लाइव : राजनीति में दो दो चार नहीं होता . दो दो जीरो भी हो सकता है और दो दो 22 भी हो सकता है. चुनाव से पहले सभी राजनीतिक दल जोड़तोड़ में जुटे हैं. बिहार का चुनाव अक्सर जातीय गोलबंदी के आधार पर ही होता आया है. बिहार में दोनों गठबंधन NDA और महा-गठबंधन के बीच जोड़तोड़ जारी है. NDA के बीच सीटों का बटवारा हो चूका है. महागठबंधन में अभी होना है. जाहिर है अब बनते बिगड़ते गठबंधन की वजह से लोक सभा चुनाव के टिकेट के कई दावेदार बेदखल हो जायेगें फिर शुरू होगा टिकेट के लिए दल बदल.
इसबार बीजेपी के पास आजमाया हुआ दोस्त JDU है तो दूसरी तरफ RJD के तेजस्वी यादव ने अपने पिता लालू यादव से दो कदम आगे बढ़ते हुए जातीय आधार पर जबर्दश्त गोलबंदी की कोशिश की है. जो काम आजतक लालू यादव नहीं कर पाए तेजस्वी ने कर दिखाया है. तेजस्वी यादव के पास तीन नए दोस्त हैं. तीनों अपनी अपनी जाति के बड़े नेता हैं. अगर इनका वोट RJD के ‘माय’ ( मुस्लिम-यादव ) समीकरण के साथ फिट बैठ जाता है तो नतीजा चौंकाने वाला हो सकता है.किस मोर्चे की ताकत कितनी बढ़ी है, यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा लेकिन पिछले चुनाव परिणाम तो यहीं बता रहे हैं कि इसबार मामला एकतरफा नहीं है. दोनों गठबंधनों के बीच मुकाबला कांटे का होगा.
पिछला लोकसभा चुनाव में RJD 27 लोक सभा सीटों पर चुनाव लड़ा था. उसे कुल 20.46 फीसद वोट मिले थे.लेकिन केवल चार प्रत्याशी ही चुनाव जीत पाए थे. एक दर्जन सीटों पर लड़कर कांग्रेस ने 8.56 फीसद वोट के साथ दो सीटें निकालने में कामयाब हुई थी. एनसीपी की झोली में तारिक अनवर की कटिहार की सीट आई थी. उसका वोट फीसद 1.2 था.अब वह कांग्रेस के साथ हैं.BJP के साथ गठबंधन में रालोसपा को तीन फीसद वोट के साथ तीन सीटें भी मिली थीं. भाकपा, माकपा और माले को प्राप्त वोटों को अगर जोड़ लिया जाए तो पिछले प्रदर्शन के आधार पर महागठबंधन के पास 34.71 फीसद वोट की ताकत है.
यानी पिछले चुनाव के रिकार्ड्स के मुताबिक़ वोट प्रतिशत में NDA अभी भी आगे खड़ा दिख रहा है. 2014 में BJP को 29.86 फीसद वोट और 22 सीटें मिली थी. लोजपा को 6.50 फीसद वोट और छह सीटें मिली थी. अलग लड़कर JDU ने 16.04 फीसद वोट प्राप्त किया था. उसे दो सीटें मिली थी. इस तरह NDA की हैसियत का इतिहास 52 फीसद वोट के साथ निर्णायक स्थिति में दिख रही है.
लेकिन राजनीति में हमेशा 2-2 चार नहीं होता.जातीय समीकरण इसबार बदल चुके हैं. पांच साल पहले मांझी और शरद यादव की पार्टी का अस्तित्व नहीं था. दोनों JDU की ताकत में शामिल थे. अब छिटककर महागठबंधन के साथ आ चुके हैं. दूसरी तरफ रालोसपा का आधार भी अबकी NDA से अलग हो गया है. हम को पिछले विधानसभा चुनाव में 2.3 फीसद और रालोसपा को 2.6 फीसद वोट वोट मिले थे.BJP से अलग चलने वाली BSP ने भी 2.17 फीसद वोट लाए थे. अब एक नयी पार्टी बनाकर सन ऑफ़ मल्लाह भी महागठबंधन के साथ आ चुके हैं. जाहिर है NDA के लिए बदला समीकरण एक बड़ी चुनौती है.अगर थोड़ी भी चुक हुई तो 52 फिसद पर 34 फिसद भारी पड़ सकता है क्योंकि NDA की लड़ाई पाबंद के सहारे है जबकि महागठबंधन के पास खुद का माय समीकरण का सॉलिड 32 फिसद वोट बैंक है..
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