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लालू का डर-‘मोदी विरोध की सबसे मुखर आवाज के सम्मोहन में फंस न जाए जनाधार?

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लालू का डर-‘मोदी विरोध की सबसे मुखर आवाज के सम्मोहन में फंस न जाए जनाधार?

सिटी पोस्ट लाइवः जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष और बेगूसराय से लेेफ्ट के उम्मीदवार कन्हैया को आखिरकार महागठबंधन में जगह क्यों नहीं मिली यह बिहार की राजनीति का सबसे बड़ा और वाजिब सवाल बन चुका है। हांलाकि यह तर्क गढ़े जा रहे हैं कि लालू नहीं चाहते कि तेजस्वी के मुकाबले कन्हैया जैसा कोई दूसरा युवा नेता खड़ा है। तर्क यह भी है कि आमलोगों में कन्हैया की लोकप्रियता भी उन्हें महागठबंधन में एंट्री नहीं मिलने की वजह है लेकिन इन तर्को में उतना दम नजर नहीं आता।

हांलाकि कन्हैया को महागठबंधन से दूर रखने की वजह लालू का डर हीं है। दरअसल मामला वोटबंैंक और जनाधार का है। कन्हैया सिर्फ बिहार में हीं नहीं पूरे देश में मोदी विरोध की सबसे मुखर आवाज बनकर उभरे हैं और इस मुखर आवाज के सम्मोहन में लालू का जनाधार न फंस जाए यही लालू का सबसे बड़ा डर है। दरअसल कन्हैया ने दिल्ली से बिहार का रूख किया है और स्पष्ट किया है कि वे बिहार की राजनीति में सक्रिय रहेंगे। मोदी विरोध की मुखर आवाज के रूप में स्थापित हो रहे कन्हैया के सम्मोहन में फंसकर कहीं लालू का एक खास वोटबैंक न छिटक जाए लालू के डर की सबसे बड़ी वजह यही है। लालू ने महागठबंधन में कन्हैया की एंट्री को लेकर जो फैसला लिया है उसमें अपनी दूरदर्शिता का पूरा इस्तेमाल किया है।

दरअसल लालू के सामने सिर्फ 2019 की लड़ाई नहीं है बल्कि 2020 की लड़ाई भी है। 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव होना है। 2020 का विधानसभा चुनाव लालू के लिए कई मायनों में बेहद अहम लड़ाई है। लक्ष्य तेजस्वी के नेतृत्व में 2020 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज कर तेजस्वी को मुख्यमंत्री बनाने की है। लालू अपनी विरासत पर वोटरों की मुहर चाहते हैं और तेजस्वी सीएम बने तो राजनीति में लालू की विरासत स्थापित हो जाएगी लेकिन अगर हार हुई तो न सिर्फ महागठबंधन में बल्कि राजद में भी तेजस्वी की साख कमजोर हो सकती है और उनकी स्वीकार्यता घट सकती है ऐसे में तेजस्वी को सीएम बनाने का सपना अधूरा रह सकता है।

बिहार विधानसभा में राजद अपनी जीत के लिए लालू के एमवाई यानि मुस्लिम यादव समीकरण पर हीं निर्भर होगी लेकिन मोदी विरोध की मुखर आवाज बनने वाले कन्हैया के सम्मोहन में अगर एक खास तबका फंस गया तो न सिर्फ लालू का वोटबैंक टूटेगा बल्कि तेजस्वी को सीएम बनाने का सपना भी टूटेगा और ऐसा हुआ तो कन्हैया लालू के लिए सबसे बड़े विलेन साबित हो सकते हैं। जाहिर है लालू सियासत के गणित को समझत हैं, राजनीति में जातीय समीकरणों की अहमियत समझते हैं और लालू की राजनीति भी जातीय समीकरणों और एक खास वोटबैंक पर आधारित रही है और कन्हैया मोदी विरोध के नाम पर इसी वोटबैंक को अपने पाले में करते नजर आ रहे हैं और लालू ऐसे नुकसान को सूंघ  लेते हैं इसलिए कन्हैया को महागठबंधन में एंट्री नहीं मिली है।

कन्हैया भी भले कुछ नहीं बोल रहे हों लेकिन उनकी नजर भी बिहार पर हीं है और वे जानते हैं मोदी विरोध के नाम उनकी राजनीतिक लड़ाई और ताकत मिली है और यही ताकत आगे उनके काम आ सकती है क्योंकि यह उम्मीद की जानी चाहिए कि कन्हैया की नजर भी 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव पर होगी।

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