Execlusive : NDA-UPA दोनों तरफ पेंच फंसा मन-माफिक डील करने में जुटे हैं कुशवाहा
सिटी पोस्ट लाइव ( कनक कुमार ) : अमित शाह ने 26 अक्तूबर को नीतीश कुमार के साथ मिलकर बिहार में सीट शेयरिंग के 50-50 फॉमूले का यानी बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान करके रालोसपा और एलजेपी दोनों को ये संकेत दे दिया कि बीजेपी के साथ साथ सभी सहयोगी दलों को भी सीटों की कुर्बानी देनी होगी. नई दिल्ली में जैसे ही यह एलान हुआ ,बिहार में उपेन्द्र कुशवाहा तुरत तेजस्वी यादव से मुलाक़ात करने अरवल गेस्ट हाउस पहुँच गए. कुशवाहा इसे भले महज एक संयोग बता रहे हैं लेकिन राजनीतिक पर्वेक्षक इसका मतलब बखूबी समझ रहे हैं. इस मुलाक़ात के जरिये एक तीर से दो निशाना उपेन्द्र कुशवाहा ने साधा. एक तो बीजेपी पर दबाव बना दिया दूसरी तरफ आरजेडी के साथ जाने का संकेत भी दे दिया.उपेन्द्र कुशवाहा की यह तरकीब काम आई .बीजेपी पर प्रेशर बना.अमित शाह की तरफ से बातचीत का बुलावा भी आ गया.
लेकिन अब उपेन्द्र कुशवाहा को अमित शाह से मिलने की जल्दी नहीं है. अमित शाह के साथ बैठने से पहले वो आरजेडी के साथ सबकुछ तय कर लेना चाहते हैं. तेजस्वी से उपेन्द्र कुशवाहा से मिलने के दूसरे दिन रालोसपा के एक बड़े नेता लालू यादव से मिलने रांची रिम्स पहुँच गए. सूत्रों के अनुसार लालू यादव के साथ बातचीत तो शुरू हो गई है लेकिन अभीतक कुछ भी फाइनल नहीं हो पाया है. इसीलिए उपेन्द्र कुशवाहा ने अमित शाह के फोन कॉल्स को नजर-अंदाज करना शुरू कर दिया. 29 को अमित शाह के साथ बैठक थी.लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा देर शाम तक पटना में डटे रहे. दिल्ली जाते समय ये भी कह दिया कि अभीतक मीटिंग फिक्स्ड नहीं हुई है.
दरअसल, अपने को नजर-अंदाज कर नीतीश कुमार के साथ बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने के अमित शाह के एलान से कुशवाहा बेहद नाराज हैं. कुछ दिनों से उन्होंने नीतीश कुमार के खिलाफ बोलना बंद भी कर दिया है. लेकिन फिर भी बीजेपी ने नीतीश कुमार के साथ उन्हें बैठक में आमंत्रित नहीं किया. कुशवाहा को इस बात को लेकर नाराजगी है कि भूपेंद्र यादव से उनकी बात हुई थी. अमित शाह के साथ बैठक होनी थी. लेकिन उसके पहले ही अमित शाह ने नीतीश कुमार के साथ मिलकर सबकुछ फाइनल कर दिया.
अमित शाह – नीतीश कुमार के 50-50 फार्मूले का मतलब साफ़ है कि एनडीए में कुशवाहा की पार्टी रालोसपा के लिए दो और एलजेपी के लिए 5 से ज्यादा सीटों की गुंजाइश नहीं है. 2014 में कुशवाहा की पार्टी रालोसपा को तीन सीटें मिलीं थीं और सभी तीन सीटों काराकाट, जहानाबाद और सीतामढ़ी में जीत मिली थी. ऐसे में, कुशवाहा एनडीए में दो सीटों पर मानने को हरगिज तैयार नहीं हैं. वे तो तीन सीटों से भी अधिक की उम्मींद लगाए हैं, जो किसी कीमत पर अब एनडीए में संभव नहीं रह गया है.
नीतीश कुमार के खिलाफ आग उगलने वाले उपेन्द्र कुशवाहा जेडीयू को फूटी आँख सुहा नहीं रहे.जेडीयू पहले ही कह चूका है कि उपेंद्र कुशवाहा कहीं भी रहें कोई फर्क नहीं पड़ता.लेकिन अमित शाह कुशवाहा को भी साथ लेकर चलाना चाहते हैं. इसीलिए वो कुशवाहा के साथ बैठना चाहते हैं. लेकिन अब उपेन्द्र कुशवाहा जल्दी में नहीं हैं. जबतक आरजेडी को वो नापतौल नहीं लेते ,अमित शाह को अपने को मापने का मौका देना नहीं चाहते. उपेंद्र कुशवाहा अब भाव खा रहे हैं और अमित शाह के कॉल्स को नजर-अंदाज कर रहे हैं.
बीजेपी ने उन्हें फंसा दिया है और आरजेडी से एक झटके में सबकुछ फाइनल हो नहीं पा रहा है. ऐसे में कुशवाहा ये तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिए. कुशवाहा एनडीए गठबंधन के पहले ऐसे नेता हैं जो बीजेपी के नेशनल प्रेसीडेंट अमित शाह के कॉल को भी इग्नोर कर दे रहे हैं. अमित शाह बुला रहे हैं लेकिन कुशवाहा जा नहीं रहे हैं. अमित शाह जैसे नेता को उपेन्द्र कुशवाहा का यह व्यवहार कितना नागवार गुजर रहा होगा, यह बताने की जरुरत नहीं है. लेकिन फिर भी अमित शाह अंतिम प्रयास कर रहे हैं उपेन्द्र कुशवाहा को समझाने का .
कुशवाहा को करीब से जानने वाले नेताओं का कहना है कि उपेन्द्र कुशवाहा क्या करेगें, समझ पाना आसान नहीं है. वो अपने मन की बात पार्टी के बड़े से बड़े नेताओं के साथ भी शेयर नहीं करते. वो अमित शाह के साथ बैठकर तुरत अंतिम फैसला लेनेवालों में से नहीं हैं. उपेन्द्र कुशवाहा अमित शाह के साथ बातचीत कर सब कुछ अभी खत्म कर देने के मूड में नहीं हैं. पहले बीजेपी लम्बा खिंच रही थी लेकिन अब उपेन्द्र कुशवाहा इसे ज्यादा से ज्यादा लम्बा खींचना चाहते हैं. वो चाहते हैं कि बीजेपी को नो कहने से पहले आरजेडी –कांग्रेस के साथ बातचीत फाइनल हो जाए. लेकिन अब बीजेपी इंतज़ार करने के मूड में नहीं है. बीजेपी किसी भी वक्त बड़ा फैसला ले सकती है. उन्हें दो सीट देने का एलान कर नहीं मानने पर उन्हें मंत्रिमंडल से बहार कर सकती है.
उपेन्द्र कुशवाहा के करीबियों का कहना है कि कुशवाहा भी यहीं चाहते हैं कि एनडीए से रिश्ता टूटे भी तो इसके लिए उन्हें नहीं बीजेपी को जिम्मेवार ठहराया जाए .मंत्री पद से खुद इस्तीफा देने के बजाय वो चाहेगें कि बीजेपी उन्हें सरकार से बाहर करे ताकि उनके समर्थकों के बीच सहानुभूति की लहर पैदा हो और बीजेपी के खिलाफ आक्रोश का भाव पैदा हो. सूत्रों के अनुसार बीजेपी से अंतिम बातचीत करने के पहले कुशवाहा आरजेडी के साथ मनमाफिक डील कर लेना चाहते हैं. आरजेडी से उनकी तरफ से 6 सीटों की मांग की गई है. आरजेडी देने को तैयार भी है लेकिन मनचाही सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है.
कुशवाहा अंतिम फैसला लेने में जल्दबाजी नहीं करना चाहते क्योंकि वो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के मन मिजाज से अच्छी तरह से वाकिफ हैं. ज्यादा जल्दबाजी दिखायेगें तो लालू यादव उन्हें दबा देगें. उपेंद्र कुशवाहा 2014 की लोक सभा चुनाव में तालमेल को लेकर लालू यादव द्वारा लगाए गए दावं पेंच को अभीतक भूले नहीं हैं. 20 14 में जब कुशवाहा सांसद भी नहीं थे और नयी नयी पार्टी रालोसपा बनाया था. लोक सभा चुनाव की रणभेरी बजने लगी थी. उन्होंने सबसे पहले लालू यादव के साथ समझौता करने की कोशिश की थी.
2014 में तालमेल पर बातचीत को लेकर लालू यादव उपेन्द्र कुशवाहा को पटना से दिल्ली और और दिल्ली से पटना का चक्कर लगवाते रहे और आखिरी में दो से ज्यादा सीटें देने से मना कर दिया था. लालू ने पहले कुशवाहा को मिलने के लिए दिल्ली बुलाया . कुशवाहा दिल्ली पहुंच गए लेकिन लालू से मुलाक़ात नहीं हुई . 48 घंटे के बाद पता चला कि लालू यादव पटना पहुँच गए हैं. पटना में जब मिले तो लालू यादव ने 4 की जगह दो सीटों से अधिक देने से मना कर दिया.लेकिन इसबार की तरह ही उपेन्द्र कुशवाहा बीजेपी के संपर्क में भी बने हुए थे. लालू ने जब दो से ज्यादा सीट देने से मना कर दिया तो बीजेपी ने भी दबाव बना दिया और तीन सीटों पर कुशवाहा को निबटा दिया.इसलिए इसबार भी उपेन्द्र कुशवाहा जबतक एक तरफ से बात फाइनल नहीं हो जाती वो दूसरा रास्ता बंद नहीं करना चाहते हैं.
Comments are closed.