सिटी पोस्ट लाइव, रांची: राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू ने आज रांची विष्वविद्यालय के 34वें दीक्षांत समारोह को वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से संबोधित किया। राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि शिक्षा ही सामाजिक परिवर्त्तन और आर्थिक तरक्की का जरिया है। उन्होंने कहा कि विष्वविद्यालय विद्यार्थियों को सिर्फ ज्ञान और कौषल ही न प्रदान करें, बल्कि उनमें मानवता और नैतिक मूल्यों की भी भावना विकसित करें। उन्होंने कहा कि उच्च षिक्षा का संबंध बेहतर शिक्षा से है और यही षिक्षा बेहतर समाज का निर्माण भी करती है। राज्यपाल ने कहा कि युवा सबसे अधिक रचनाषील होते हैं, सपना देखना बहुत जरूरी है और विष्वविद्यालय के पास भी एक सपना होना चाहिए तथा उसे धरती पर सफलतापूर्वक उतारने के लिए समर्पण की भावना होनी चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि शिक्षित समुदाय ही किसी भी समाज का पथ-प्रदर्शक होता है। उपाधि पाने वाले विद्यार्थियों के सामने उम्मीदों का नया संसार खड है, उनके जीवन की एक नई यात्रा आरंभ रही है। पूरे विवेक और समझदारी के साथ आप अपने जीवन का सफर तय करें, आपका भावी जीवन सफलताओं से भरा हो, हमारी कामना है। राज्यपाल ने कहा कि शिक्षा आज की बुनियादी आवश्यकता है। मेरी दृष्टि में शिक्षा व्यक्ति केआन्तरिक शक्तियों, गुणों एव कुशलताओं के विकास का उपक्रम है, जिससे वह अपने जीवन के उद्देश्य को प्राप्त कर सके। व्यक्तित्व का संतुलित एवं संपूर्ण विकास ही शिक्षा का लक्ष्य है। शिक्षा का उद्द ेश्य छात्रों में देश-प्रेम, अपने संस्ककृति के प्रति प्रेम तथा सद्गुण उत्पन्न करना भी होना चाहिए। शिक्षा चरित्र निर्माण, व्यक्तित्व का विकास, नागरिक एवं सामाजिक कर्त्तव्य की भावना, सामाजिक उन्नति एवं राष्ट्रीय संस्कृति के विस्तार की दृष्टि से होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि समकालीन वैश्विक परिवेश शिक्षा के नये प्रकाश की अपेक्षाओं से सराबोर है। हम ऐसे दौर में शिक्षा का प्रदीप लेकर खड़े हैं जब सारा संसार एक विश्व ग्राम में बदल चुका है। हमारे चिन्तन और व्यवहार पर वैश्वीकरण का सीधा प्रभाव पड़ा है।
अनेक नए प्रश्नों और चुनौतियों से हमारा साक्षात्कार हो रहा है। कल तक हमारे विद्यार्थी शिक्षा की ज्योति लेकर अपने गाँव और शहर को आलोकित करते थे। आज संसार के मानचित्र पर भारतीय नौनिहाल छा रहे हैं। स्वभावतः नए समय की अपेक्षाओं के अनुरूप ढलने में उच्च शिक्षा को कई समस्यओं और विसंगतियों का सामना भी करना पड़ा है। दबी जबान से कभी-कभी परंपरागत उच्च शिक्षा की प्रासंगिकता पर भी सवाल उठाये जाते हैं। इस क्षेत्र मे गिरावट की बात भी कइ र् बार उठती है, लेकिन इससे न तो भारतीय शिक्षा व्यवस्था के प्रतिमान विचलित हुए हैं और न ही वैश्विकरण के दौर में उसका अंतहीन आकाश सीमित हुआ है। बाजारीकरण और भूमंडलीकरण के इस दौर में भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था ने अपनी पहचान को सुरक्षित रखा है।
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