“बिहार चुनाव परिणाम विशेष” दरक रहा है महागठबंधन का किला, राजद में भी बड़ी फुट की आशंका
सिटी पोस्ट लाइव : 23 मई की सुबह तक बिहार महागठबन्धन के नेता एक सुर में कह रहे थे कि महागठबन्धन की महाजीत होगी। परिणाम आने तक सभी को इंतजार करने के संदेश परोसे जा रहे थे ।लेकिन जैसे कि मतगणना की शुरुआत हुई,वैसे ही महागठबन्धन की हवा निकलती दिखने लगी ।जब सारे नजीजे आ गए,तो 40 सीटों में मुस्लिम बाहुल्य संसदीय क्षेत्र किशनगंज से महज एक सीट कांग्रेस को मिली और 39 सीटों पर एनडीए ने कब्जा जमा लिया ।महागठबन्धन के सबसे बड़े दल राजद का खाता भी नहीं खुला और शून्य पर आउट होकर,उसने बेशर्मी की सारी दीवारें गिरा डालीं ।हमने अपने 34 वर्षों के पत्रकारिता जीवन में इतनी घटिया,अदूरदर्शी,अहंकारी, विध्वंसक और छुप-छुप के गेंद दूसरे गठबन्धन के पाले में देते रहने की राजनीति पहले कभी भी नहीं देखी थी ।हमें पहले से ही यह लग रहा था कि राजद के युवराज और महागठबन्धन के नायक तेजस्वी यादव और बीजेपी के बीच कोई बड़ी डील हो चुकी है ।इससे मुतल्लिक हमने अपने पहले चुनावी विश्लेषण में इस घृणित चुनावी खेल के दृष्टिगत प्रमाण का भी,बाखूबी जिक्र किया था ।अब चुनाव परिणाम के साईड इफेक्ट के रुझान आने शुरू हो गए हैं ।
भड़भड़ाया कुशवाहा का कुनबा, दो विधायक एक विधान पार्षद जेडीयू में शामिल
चुनाव के समय और चुनाव परिणाम के दिन,जिस बिहार पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई थीं,उस बिहार में महागठबंधन का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया ।लोकसभा चुनाव में बिहार में सिर्फ कांग्रेस को एक सीट मिली और बांकि पार्टियों का खाता भी नहीं खुल सका ।महागठबन्धन की सहयोगी पार्टी रालोसपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा उजियारपुर और काराकाट दोनों सीटों से चुनाव हार गये ।उनकी पार्टी के दूसरे प्रत्याशी भी कहीं से नहीं जीत सके ।जाहिर तौर पर,इस करारी शिकस्त के बाद उनके लिए अपना कुनबा बचाना सबसे बड़ी चुनौती है ।लेकिन रालोसपा का कुनबा बिखड़ने लगा है ।उपेन्द्र कुशवाहा की पार्टी के दो विधायकों और एक विधानपार्षद ने उन्हें बड़ा झटका दिया है ।आरएलएसपी के दो बागी विधायकों और एक विधानपार्षद ने पार्टी का साथ छोड़ने के बाद,आधिकारिक तौर पर जदयू का हाथ थाम लिया है ।
पार्टी के विधायकों में सुधांशु शेखर और ललन पासवान हैं । एमएलसी संजीव श्याम सिंह ने अपने गुट का विलय जेडीयू में करने संबंधी पत्र बिहार विधानपरिषद सभापति को सौंप दिया है ।इन तीनों नेताओं ने उपेन्द्र कुशवाहा से अलग होकर पार्टी पर अपना दावा ठोका था । तीनों नेताओं ने चुनाव से ठीक पहले आरएलएसपी पर अपनी दावेदारी को लेकर चुनाव आयोग के समक्ष अपील की थी जिसके बाद चुनाव आयोग ने अलग गुट को मान्यता भी दे दी थी ।25 मई को तीनों नेताओं ने अपने अलग गुट को जेडीयू में विलय करने संबंधी पत्र विधानसभा अध्यक्ष विजय चौधरी को सौंपा है । जानकारी के मुताबिक चुनाव आयोग ने ललन पासवान की अगुवाई वाले बागी गुट को बिहार में राज्य स्तरीय दल की अंतरिम मान्यता पहले ही दे दी थी ।साथ ही चुनाव आयोग ने यह भी आदेश दिया था कि लोकसभा चुनाव में यह गुट अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं ।अब यह गुट जदयू में विलय कर,पूरी तरह से जदयू में शामिल हो चुका है ।
राजद से बागी हुए फातमी ने कहा की तेजस्वी के घमंड ने हरवाया
बिहार में महागठबंधन की करारी हार का ठीकरा अब राजद के युवराज तेजस्वी यादव के सर फूटने लगा है ।राजद के बागी नेता अली अशरफ फातमी का एक बयान सामने आया है । मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से आ रहे बयान के मुताबित उन्होंने कहा है कि तेजस्वी यादव के घमंड ने बिहार में महागठबंधन को हरवाया और राजद का खाता भी नहीं खुलने दिया ।फातमी ने हार की कई और वजहें भी गिनाए हैं ।उन्होंने कहा है कि एनडीए संगठित होकर चुनाव लड़ रहा था ।वहां सीटों को लेकर तालमेल सही था ।सीटों और टिकटों का बंटवारा समय से हुआ लेकिन महागठबंधन में सिर्फ कागज पर रणनीति बनती रही और जमीन पर कुछ भी नहीं दिख रहा था । प्रत्याशियों का चयन भी राजद और उसके सहयोगी दलों ने ठीक से नहीं किया ।यही वजह रही कि महागठबंधन के प्रत्याशी ना सिर्फ हारे हैं बल्कि ज्यादातर सीटों पर लाखों मतों के बड़े अंतर से उनकी हार हुई है ।कांग्रेस ने सही प्रत्याशियों का चयन किया इस वजह से भले ही बिहार में उसको एक ही सीट आयी हो लेकिन उसके प्रत्याशी कम मतों के अंतर से हारे और बिहार में अच्छा खासा वोट कांग्रेस को मिला है । फातमी ने इशारे-इशारे में यह भी कहने की कोशिश की है कि तेजस्वी यादव को इस हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए, इस्तीफा देना चाहिए ।उन्होंने कहा कि 2014 के लोकसभा चुनाव में जब जेडीयू की बुरी हार हुई थी और पार्टी को महज दो सीटें आयी थी तब नीतीश कुमार ने नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था ।उसके बाद जीतन राम मांझी बिहार के मुख्यमंत्री बने थे ।
तेजस्वी यादव का इलेक्शन मैनेजमेंट था सिफर
यह बेहद मौजूं विश्लेषण है कि बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव,अपने पिता लालू प्रसाद यादव की तरह इलेक्शन मैनेजमेंट को नहीं संभाल सके ।बिहार की जनता के मन में यह सवाल इसलिए है, क्योंकि लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में महागठबंधन की बुरी हार हुई है ।राजद अपना खाता तक नहीं खोल सका ।ऐसे में हार का ठीकरा उनके सर फोड़ा जा रहा है ।यह जायज भी है ।तेजस्वी यादव की बचकानी हठधर्मिता और अपरिपक्क राजनीति ने राजद सहित महागठबन्धन को सर्कस का जोकर बनाकर रख दिया ।लगातार ऐसे कई बयान सामने आ रहे हैं ।बेहद दिलचस्प बात है कि तेजस्वी यादव अब हार पर समीक्षा और मंथन करने वाले हैं ।बड़ा सवाल सवाल यह है कि इस मंथन से क्या निकलकर आएगा ?तेजस्वी यादव 28 मई को पटना स्थित राबड़ी आवास पर आरजेडी को मिली करारी हार को लेकर समीक्षा करेंगे ।वह भी पार्टी के सभी उम्मीदवारों और सभी वरिष्ठ नेताओं के साथ ।ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि रघुवंश सिंह,जगदानंद सिंह,रामचन्द्र पूर्वे,अब्दुल बारी सिद्दीकी, शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं को तेजस्वी यादव ने पूरे चुनाव में आखिर किस वजह से पूछा तक नहीं ?आखिर बुजुर्ग और पार्टी के बड़े अभिभावकों से तेजस्वी ने चुनाव के दौरान क्यों दूरी बनाये रखी ? हद की इंतहा है कि अब इन्हीं वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकर हार की वे समीक्षा करेंगे ।आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद आरजेडी की पूरी कमान तेजस्वी यादव के हाथ में आ गई और उन्होंने पूरी पार्टी को वैसे चलाया जैसा उन्होंने चलाना चाहा ।
जब लालू प्रसाद यादव ने पार्टी की पूरी कमान तेजस्वी यादव के हाथ में सौंपी,तब बगैर कोई सवाल किये रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह,रामचन्द्र पूर्वे, अब्दुल बारी सिद्दीकी,शिवानंद तिवारी,मंगनी लाल मंडल,कांति सिंह,अली अशगर फातमी जैसे वरिष्ठ नेताओं ने तेजस्वी यादव को अपना नेता मान लिया ।यह समझते हुए भी कि जितनी तेजस्वी की उम्र है उससे अधिक इन नेताओं का राजनीतिक अनुभव है ।लेकिन बिहार में जैसी ही लोकसभा चुनाव अभियान की शुरुआत हुई कि तेजस्वी ने इन सभी वरिष्ठ नेताओं को पार्टी के किसी मसले पर किसी बात को लेकर पूछा तक नहीं ।
कोई राजनीतिक सलाह भी लेने की जरूरत तेजस्वी को नहीं हुई ।चुनाव के दौरान तेजस्वी यादव पूरी तरह से एक तानाशाह की भूमिका में थे ।अगर तेजस्वी यादव सभी वरिष्ठ नेताओं के संपर्क में रहते और उनसे राजनीतिक टिप्पस लेते रहते,तो राजद की इतनी शर्मनाक फजीहत नहीं होती ।महागठबंधन बनाते समय,महागठबंधन में कांग्रेस के अलावा अन्य पार्टियों को शामिल करने में,महागठबंधन में सामंजस्य बनाने में,एक समय बिखरने की कगार पर पहुंचे महागठबंधन को एक सूत्र में बांधने में,सहयोगी दलों के साथ सीट के बंटवारे में,पार्टी में उम्मीदवारों के चयन में,चुनाव प्रचार जैसे किसी मसले पर किसी वरिष्ठ नेता की कोई भूमिका नहीं दिखी ।अलबत्ता स्टार प्रचारकों की लिस्ट में इन सभी नेताओं का नाम जरुर था लेकिन इनमें से कोई भी नेता चुनाव प्रचार में कहीं भी नहीं गए ।पूरे चुनाव प्रचार में आरजेडी के एक ही स्टार प्रचारक थे,तेजस्वी यादव ।हालांकि आरजेडी ने रघुवंश प्रसाद सिंह को वैशाली से,जगदानंद सिंह को बक्सर से,अब्दुल बारी सिद्दीकी को दरभंगा से उम्मीदवार बनाकर थोड़ा बहुत इन लोगों का मान रख लिया । लेकिन मंगनीलाल मंडल और अली अशगर फातमी जैसे पुराने नेता और लालू प्रसाद यादव के बेहद करीबी समझे जाने वाले को,उम्मीदवार तक नहीं बनाया ।ऐसे में मंगनी लाल मंडल और अली अशगर फातमी ने राजद से इस्तीफा दे दिया ।पार्टी के बड़े नेताओं की उपेक्षा,राजद की फजीहत का एक बड़ा कारण रह ।
बीजेपी का दावा,राजद के कई विधायक बीजेपी और जदयू में शामिल होने को हैं आतुर
बिहार के कद्दावर बीजेपी नेता और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय का कहना है कि आने वाले कुछ महीने में राजद तीन-चार टुकड़ों में बंट जाएगा ।एक टुकड़ा राजद तेजप्रताप होगा ।एक टुकड़ा राजद तेजस्वी हो या राजद राबड़ी ।एक मीसा भारती राजद की भी संभावना है ।एक रिपब्लिक राजद का खेमा होगा ।मंगल पाण्डेय ने कहा कि राजद का एक बड़ा टुकड़ा जो एनडीए के संपर्क में हैं,उनके कई विधायक हैं जो एनडीए के संपर्क हैं ।वे अब किसी भी हाल में राजद से विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं ।वे एनडीए की तरफ आना चाहते हैं ।जब एनडीए को लगेगा कि उनको अपने दल के अंदर लेना चाहिए,तब उनको शामिल किया जाएगा ।उस समय वो अपनी सुविधा के अनुसार फिर चाहे जदयू में आएं या बीजेपी या फिर एनडीए के अन्य सहयोगी दल में ।यानि कुछ महीनों के भीतर ही राजद की सर्जरी होने वाली है ।एनडीए,राजद के वर्तमान विधायकों को आगे यह मौका देने जा रही है कि राजद के वर्तमान विधायक एनडीए में शामिल दल में से वे किसी भी दल में अपनी इच्छा से शामिल हो सकते हैं ।यानि अब ये जाहिर हो चुका है कि लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में राजद के जो बुरे दिन शुरू हुए हैं,उसका अंत जल्दी और आसानी से नहीं होने वाला है ।वाकई अगर ऐसा हुआ,तो राजद अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष करता दिखेगा ।
राजद के भीतर मचा घमाशान
महागठबंधन की हार का साइड इफेक्ट अब नजर आने लगा है । राजद बिहार में जिस तरह से खाता भी नहीं खोल पायी अब इस पर राजद के अंदरखाने बवाल बढ़ गया है ।तेजस्वी यादव के सर अब हार का ठीकरा फोड़ा जाने लगा है ।मुजफ्फरपुर के गायघाट से राजद विधायक महेश्वर प्रसाद यादव ने पार्टी के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है । आरजेडी विधायक ने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस की है ।उन्होंने कहा है कि तेजस्वी यादव को इस्तीफा देना चाहिए और अगर वे ऐसा
नहीं करते हैं,तो जिस तरह के हालत हैं उससे पार्टी टूट जाएगी । मैं और मेरे साथ जो दूसरे लोग हैं वो पार्टी से अलग हो जाएंगे । उन्होंने कहा कि मैं राजद का विधायक होने के नाते यह मांग करता हूं कि तेजस्वी यादव हार की नैतिक जिम्मेवारी लेते हुए इस्तीफा दें ।उन्हें नेता प्रतिपक्ष का पद छोड़ना चाहिए ।इसके बाद विधायक दल की बैठक बुलानी चाहिए ।राजद विधायक ने कहा कि हम और हमारे साथ जो लोग हैं वो अलग गुट बनाएंगे ।उन्होंने सीएम नीतीश कुमार की भी तारीफ की और कहा कि राजद में भी सभी लोग नीतीश के खिलाफ नहीं हैं ।यानि यह बयान सिर्फ अंदरूनी कलह और बगावत भर की नहीं है बल्कि यह जदयू प्रेम की सुगबुगाहट भी है ।जाहिर सी बात है कि अभी जो राजद के भीतर खिचड़ी पक रही है,उससे राजद के नामोनिशान तक के मिटने की आशंका प्रबल हो गयी है ।
मोदी कैबिनेट में, बिहार कोटे से इन सांसदों के मंत्री बनने की है संभावना
बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में से 39 पर एनडीए ने जीत हासिल की है ।भाजपा ने अपने कोटे की 17 सीटों में 17 पर,जदयू ने 17 सीटों में 16 सीटों पर और लोजपा ने अपनी सभी 6 सीटों पर जीत दर्ज की है ।अब एक बार फिर से ये कयास लगने शुरू हो गए हैं कि नरेंद्र मोदी के नए मंत्रिमंडल में कौन-कौन से नाम शामिल होंगे ।इस बार मोदी कैबिनेट के 5 मंत्री चुनाव लड़ रहे थे ।ये सभी भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे जिसमें सभी ने जीत हासिल की है ।भाजपा के रामकृपाल यादव ने पाटलिपुत्र से, रविशंकर प्रसाद ने पटना से, अश्विनी कुमार चौबे ने बक्सर से, गिरिराज सिंह ने बेगूसराय से तथा राधा मोहन सिंह ने पूर्वी चंपारण से जीत हासिल की है ।वर्तमान समय में गिरिराज सिंह,मोदी कैबिनेट में सूक्ष्म-लघु और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री,राधा मोहन सिंह,कृषि और किसान कल्याण मंत्री,रविशंकर प्रसाद,कानून मंत्री, अश्विनी कुमार चौबे,केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री,रामकृपाल यादव,ग्रामीण विकास राज्य मंत्री हैं ।अब देखना यह होगा कि इन्हें आने वाले समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में स्थान मिलता है या नहीं ।नए मंत्रिमंडल में जदयू और लोजपा के नए चेहरे के शामिल होने के कयास तेज हैं ।संभावना यह भी जताई जा रही है कि मोदी कैबिनेट में भाजपा के मंत्रियों की संख्या कम हो सकती है क्योंकि इस बार भाजपा के साथ लोजपा और जदयू ने भी मिलकर लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की है ।लोजपा के चिराग पासवान,जदयू के दिनेश चंद्र यादव और जदयू के राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह को मोदी कैबिनेट में जगह मिल सकती है । बिहार के सबसे हॉट सीट मधेपुरा से देश के सबसे पुराने सांसद शरद यादव को 3 लाख 20 हजार मत से हराने वाले और जाप के संरक्षक पप्पू यादव की जमानत जब्त करने वाले जदयू सांसद दिनेश चंद्र यादव का मंत्री बनना, लगभग तय माना जा रहा है ।सूत्रों की मानें,तो इस बार बीजेपी के साफ छवि के मुस्लिम नेता शहनवाज हुसैन को भी मंत्री बनाये जाने की प्रबल संभावना है ।वैसे 30 मई को मोदी सरकार के गठन के बाद सारी तस्वीरें धीरे-धीरे साफ हो जाएंगी ।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह का “विशेष समाचार विश्लेषण”
Comments are closed.