“विशेष” : हिंदी साहित्य के एक युग का हुआ अंत, नहीं रहे हिंदी साहित्य के पुरोधा डॉक्टर नामवर
नामवर सिंह नहीं रहे
“विशेष” : हिंदी साहित्य के एक युग का हुआ अंत, नहीं रहे हिंदी साहित्य के पुरोधा डॉक्टर नामवर
सिटी पोस्ट लाइव : हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कथाकार, प्रखर लेखक, पिपासु कवि और नैतिक मूल्यों से लवरेज हमलावर आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह का दिल्ली के एम्स अस्पताल में 19 फरवरी यानि बीते कल देर रात 11.50 में निधन हो गया। हिंदी साहित्य के पर्याय बन चुके नामवर 93 साल के थे। उन्होंने दिल्ली AIIMS के ट्रॉमा सेंटर में अंतिम सांस ली। डॉक्टर नामवर की तबियत पिछले कुछ दिनों से खराब चल रही थी। उन्हें इलाज के लिए AIIMS में भर्ती कराया गया था। जानकारी के मुताबिक जनवरी माह में वो अचानक अपने कमरे में गिर गए थे। उनका ब्रेन हैमरेज हो गया था। लगातार ईलाज के बाद भी उनकी सेहत काफी खराब रहने लगी थी।
इसी कड़ी में बीती रात हिन्दी आलोचना के शिखर पुरुष डॉक्टर नामवर सिंह का मंगलवार की मध्य रात्रि को दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार आज अपराह्न तीन बजे लोधी रोड शव गृह में किया जाएगा। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री है। उनकी पत्नी का निधन कई साल पहले हो गया था। प्रसिद्ध लेखक अशोक वाजपेयी, निर्मला जैन, विश्वनाथ त्रिपाठी, काशी नाथ सिंह, ज्ञानरंजन, मैनेजर पांडे, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, असगर वज़ाहत, नित्यानंद तिवारी तथा मंगलेश डबराल जैसे लेखकों ने नामवर सिंह के निधन पर गहरा दुःख और शोक व्यक्त किया है। सभी ने नामवर की मृत्यु को हिन्दी साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति बताया है।
सही में “हिंदी साहित्य जगत आज अंधकार में डूब गया है। “उल्लेखनीय विचारक और हिंदी साहित्य के एक अगुआ शख्सियत की मृत्यु से उपजे शून्य को भरना कतई आसान नहीं होगा। ”बताना जरूरी है कि नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1926 को वाराणसी के एक गांव जीयनपुर (वर्तमान में ज़िला चंदौली) में हुआ था। उन्होंने बीएचयू से हिंदी साहित्य में एम.ए. और पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। उन्होंने बीएचयू, सागर एवं जोधपुर विश्वविद्यालय और जेएनयू में बतौर प्रोफेसर पढ़ाया भी ।1971 में साहित्य अकादमी सम्मान से नवाजे जा चुके नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में आलोचना को एक नया आयाम दिया है। “नभ के नीले सूनेपन में, हैं टूट रहे बरसे बादर,जाने क्यों टूट रहा है तन! वन में चिड़ियों के चलने से, हैं टूट रहे पत्ते चरमर, जाने क्यों टूट रहा है मन !”…
कविता के रचनाकार और हिंदी जगत के प्रख्यात साहित्यकार और आलोचक डॉक्टर नामवर सिंह अब हमारे बीच नहीं रहे। हिंदी साहित्य में उन्होंने कविताएं, कहानियां,आलोचनाएं और नई विचार धाराएं,कई सारी चीजें लिखी हैं। उन्होंने अपनी अधिकतर आलोचनाओं, साक्षात्कार इत्यादि विधाओं में साहित्य कला का सृजन किया है। उन्होंने ना सिर्फ साहित्य की दुनिया में अपना खासा योगदान दिया है बल्कि शिक्षण के क्षेत्र में भी उनका काफी योगदान रहा है। नामवर सिंह ने काशी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के पद कई वर्षों तक अपनी सेवा दी थी। नामवर सिंह ने सागर विश्वविद्यालय में भी अध्यापन का काम किया, लेकिन यदि सबसे लंबे समय तक रहने की बात करें तो वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल में रहे।
जेएनयू से सेवानिवृत्त होने के बाद नामवर सिंह को महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्व विद्यालय, वर्धा के चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया था। आपको यह भी बताना जरूरी है कि उन्होंने 1959 में चकिया चन्दौली के लोकसभा चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में चुनाव भी लड़ा लेकिन उन्हें इसमें हार मिली थी। डॉक्टर नामवर सिंह ने कई पुस्तकें भी लिखी हैं। उन्होंने समीक्षा, छायावाद और विचारधारा जैसी किताबें लिखीं हैं जो बेहद चर्चित हैं। इनके अलावा उनकी अन्य किताबें इतिहास और आलोचना, दूसरी परंपरा की खोज, कविता के नये प्रतिमान, कहानी नई कहानी, वाद विवाद संवाद आदि मशहूर हैं।
उनका साक्षात्कार ‘कहना न होगा’ भी साहित्य जगत में काफी लोकप्रिय है। आलोचना में उनकी किताबें पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, कहानी नई कहानी, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परंपरा की खोज आदि भी काफी मशहूर हुए हैं। इसके अलावा उनकी छायावाद, नामवर सिंह और समीक्षा, आलोचना और विचारधारा जैसी किताबें भी काफी चर्चित हैं। सही मायने में हिंदी जगत का एक अनमोल सितारा अब डूब चुका है। हमें इस बात का सुकून है कि देश के कई बड़े मंचों पर हमने उनके साथ अपने विचार साझा किए थे। उनका असीम स्नेह आज भी हमारी ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत्र है। देश उन्हें सदैव याद रखेगा ।सिटी पोस्ट लाइव परिवार भी इस युग प्रणेता को सादर नमन और चिर श्रद्धांजलि अर्पित करता है।
पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट
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