सिटी पोस्ट लाइव ( श्रीकांत प्रत्यूष ) : सप्ताहांत : मुजफ्फरपुर चिल्ड्रन होम में 34 नाबालिग लड़कियों के साथ रेप और शारीरिक यातना की खौफनाक दास्तान दुनिया भर में हेडलाइन बनी. सिविल सोसाइटी और विपक्षी खेमे ने जैसे ही दबाव बनाना शुरू किया श्री नीतीश कुमार ने उसकी सीबीआई जांच की मंजूरी दे दी. हालांकि इससे दो दिन पहले बिहार के पुलिस चीफ ने ऐसी किसी भी ‘संभावना’ से इनकार कर दिया था. राज्य सरकार ने बदस्तूर इस मामले को उजागर करने का क्रेडिट भी खुद लेने की कोशिश की. यह बताया गया कि बिहार सरकार के समाज कल्याण विभाग ने ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज को राज्य भर के शेल्टर होम का ‘सोशल ऑडिट’ (सामाजिक अंकेक्षण) करने का निर्देश दिया था. लेकिन सरकार का यह प्रयास नीतीश कुमार की छवि के लिए उल्टा साबित हुआ.
नीतीश कुमार के सातवीं बार राज्य की कमान संभालने के बाद पिछले एक साल में घपले-घोटाले के कई मामलों में खुद सरकार ‘पोलखोल या व्हिसल ब्लोअर’ की भूमिका अदा करने की मुद्रा में फ़टाफ़ट आती दिखी थी. जैसे, पिछले साल महागठबंधन से नाता तोड़ भाजपा के समर्थन से सरकार बनाने के कुछ ही दिनों बाद नीतीश कुमार ने सार्वजनिक मंच से ‘सृजन घोटाले’ का खुलासा किया, जिसमें सरकारी विभागों के पैसे को एक एनजीओ के खाते में सुनियोजित तरीके से ट्रांसफर किया जा रहा था. फिर ‘शौचालय घोटाला’ सामने आया और संबंधित सरकारी विभाग ने इसका भी क्रेडिट खुद लेने की कोशिश की. लेकिन मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड के खुलासे से यह स्पष्ट हुआ कि यह कोई तात्कालिक या आकस्मिक दुर्घटना नहीं है, किसी गुंडा गिरोह की आपराधिक करतूत नहीं है; यह शासन-प्रशांसन का संचालन-नियमन-नियन्त्रण करनेवाले ‘बड़े’ लोगों का सुनियोजित ‘दुष्कर्म’ है. सो यह सवाल उठना लाजिम था कि कोई स्कैम हो या स्कैंडल क्या हर बार सरकार खुद को ‘व्हिसल ब्लोअर’ बताकर अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से बच सकती है?
यूं पिछले कुछ घोटालों और स्कैंडल में सरकारी अधिकारियों की भूमिकाएं सामने आयीं, और उनमें से कुछ को जेल की हवा खाने के लिए भेज दिया गया. लेकिन उन फैसलाकुन-सी कार्रवाइयों से नीतीश-सरकार की राजनीतिक ‘ईमानदारी’ की खुशबू की बजाय ‘बेईमानी’ की यह ‘बदबू’ फ़ैली कि ये बड़ी मछलियों को बचाने के लिए छोटी मछलियों को फांसने के प्रमाण हैं. सो मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड के खुलासे के बाद देश के आमोखास में फैले आक्रोश-उत्तेजना के बीच शासन-प्रशासन के अधिकारियों की, क्रिकेट टेस्टमैच के खिलाडियों जैसी उछल-कूद और श्री नीतीश कुमार की, कोच-मैनेजर जैसी, हैरान करने वाली चुप्पी से यह ‘सवाल’ भी सतह पर आ गया कि क्या यह सब ‘जहां घोटाला हो वही उसकी जांच करें’ थ्योरी का कमाल तो नहीं है?
यह सर्वविदित है कि आज पटना से लेकर दिल्ली तक की सत्ता-राजनीति के खेल में ‘ईमानदारी’ की एक ही थ्योरी का बोलबाला है. वह यह कि “तुम बेईमान हो यह मेरी ईमानदारी का प्रमाण है.” श्री नीतीश कुमार की सत्ता-राजनीति की पहली डेढ़ पारियां इस बात का संकेत करती थीं कि वह ईमानदारी की इस थ्योरी के कभी कायल नहीं रहे. लेकिन पिछले एक-डेढ़ साल के घपले-घोटालों और अब मुज़फ़्फ़रपुर-काण्ड से आम जन में यह शंका घर करने लगी है कि यह सब नीतीश कुमार पर ईमानदारी की उक्त थ्योरी के राजनीतिक असर का प्रमाण तो नहीं? यूं आमतौर पर नीतीश कुमार के कट्टर विरोधी भी उनकी व्यक्तिगत ‘ईमानदारी’ पर शक नहीं करते, लेकिन आम जन में यह शंका पनपने लगी है कि श्री नीतीश कुमार की व्यक्तिगत ‘ईमानदारी’ भी देश के कई राजनीतिक दिग्गजों की तरह की ही है, जो ‘बेईमानी’ के बीच अपनी छवि को बचाने के प्रति सचेत रहती है, और इसलिए अपनी छत्र-छाया के नीचे पलती ‘बेईमानी’ का खुलकर विरोध करने से भी बचती है. ‘मरता क्या न करता’ की नौबत आने पर ही ऐसी ईमानदारी खुद को एक्टिव दिखाती है. परिणामतः ऐसी ईमानदारी की छत्र-छाया के नीचे कई बेईमानियाँ सूखने की बजाय पलती-पुसती हैं – घने पेड़ की छाया के नीचे की घास-पूस की तरह! आम जन में नीतीश कुमार के प्रति इस तरह के कई सवाल और संदेह बनने-पनपने लगे हैं.
और, ऐसे समय में राज्यपाल की चिट्ठी! महामहिम राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने नीतीश कुमार को जो चिट्ठी लिखी सो लिखी, लेकिन इसके साथ उन्होंने पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस और केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को भी पत्र लिख दिये! अब इन चिट्ठी-पत्रियों को क्या माना जाए, क्या समझा जाए? नीतीश-सरकार की ‘तस्वीर’ या कि नीतीश-सरकार के लिए ‘आईना’?
राज्यपाल महोदय ने हाल की घटना को मानवता के लिए कलंक बताते हुए इसकी रिपोर्ट के मुताबिक जांच कराने की मांग की और यह उम्मीद जताई कि उनके सुझावों पर सरकार अमल करेगी. उन्होंने यौन उत्पीड़न के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट गठित करने की भी सलाह दी. श्री नीतीश कुमार ने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि प्रशासनिक मामलों में उन्हें राजभवन से सलाह दी जाएगी.
वैसे, यह पहली बार नहीं है कि राज्यपाल ने नीतीश सरकार के क्रियाकलापों पर टिप्पणी की. जून महीने में गया में हाईवे के किनारे मां और बेटी के साथ सामूहिक रेप और नालंदा में एक लड़की के साथ सामूहिक रेप की घटना के बाद श्री मलिक ने सार्वजनिक मंच से बिहार की लड़कियों को किसी भी मुसीबत में राजभवन का नंबर मिलाने को कहा था. विश्वविद्यालयों के चांसलर होने के नाते कई मौकों पर उन्होंने नीतीश-सरकार की शिक्षा व्यवस्था की भी आलोचना की. एक बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि सभी दलों के नेता शिक्षा माफिया बने हुए हैं और उनके खिलाफ एक गैंग बन रहा है.
बहरहाल, राज्यपाल की ‘चिट्ठी’ नहीं, बल्कि ‘चिट्ठियों’ का निहितार्थ क्या माना जाए? इन्हें सिर्फ नीतीश कुमार की ‘सुशासन बाबू’ की छवि पर धूल जमने की ओर ‘इशारा’ माना जाए या कि नीतीश कुमार के प्रति गठबंधन की सत्ता-राजनीति के नजरिये में बदलाव का ‘संकेत’ भी?
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