क्या अनुच्छेद 370 पर सरकार के फ़ैसले को दी जा सकती चुनौती है?
सिटी पोस्ट लाइव : भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संवैधानिक अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने का बड़ा फ़ैसला किया है. लेकिन लोगों के जेहन में ये सवाल उठ रहा है कि क्या इसकी संवैधानिकता को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है? इस सवाल को लेकर संविधान विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है.संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के अनुसार उच्चतम न्यायालय में किसी भी फ़ैसले को चुनौती दी जा सकती है. अब ये अदालत पर निर्भर करता है कि वो इस मामले को सुने या फिर इसे ख़ारिज करे.हर बात के विरोध में तर्क तो मिल ही सकते हैं और जिसे चुनौती देनी होगी वो रास्ता तलाश लेंगे.सुभाष के अनुसार इस पूरे मामले में राजनीतिक मतभेद हो सकते हैं लेकिन उनके विचार से जो किया गया है वो संविधान के दायरे में रह कर ही किया गया है.
पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील विकास सिंह के अनुसार अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को ख़त्म करने के सरकार का फ़ैसला पूरी तरह संविधान के तहत है. इसे चुनौती देने की संभावना कम है. उनके अनुसार ये एक अस्थायी प्रावधान था और सरकार ने सिर्फ़ एक अस्थायी प्रावधान को हटाया है. अब जम्मू और कश्मीर के लोगों को वो सारे मौलिक अधिकार मिलेंगे जो भारतीय संविधान के तहत दूसरे राज्यों के लोगों को मिलते हैं.
पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील केसी के अनुसार जो इससे प्रभावित हुए होंगे वो अदालत का रुख़ करने के लिए स्वतंत्र हैं. जो पक्ष इससे प्रभावित होंगे वो इसको चुनौती देंगे. उनके अनुसार भारतीय संविधान में साफ़ लिखा हुआ है कि कोई भी नागरिक अगर ख़ुद को किसी आदेश या अधिसूचना के कारण प्रताड़ित मानता है तो वो अदालत का रुख़ कर सकता है.वो मानते हैं कि सरकार ने अच्छा क़दम उठाया है.
लेकिन कुछ संविधान विशेषज्ञ इसे एक ग़ैर-क़ानूनी और असंवैधानिक फ़ैसला मान रहे हैं.अनुच्छेद 370 को कोई ख़त्म कर ही नहीं सकता है.इसे केवल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा के ज़रिए ख़त्म किया जा सकता है. लेकिन राज्य की संविधान सभा तो 1956 में ही भंग कर दी गई थी. अब मोदी सरकार उसे तोड़-मरोड़ कर ख़त्म करने की कोशिश कर रही है.सरकार के इस फ़ैसले को चुनौती ज़रूर दी जाएगी.फैसला सुप्रीम कोर्ट के हाथ में है.
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