जय बिहार: लॉक डाउन में फंसे तो ठेला चलाकर दिल्ली से पहुँच गए बेगूसराय.
सिटी पोस्ट लाइव : देश और प्रदेश की सरकारें भले दूसरे राज्यों में फंसे लोगों से लॉक डाउन का पालन करने की अपील कर रही है. ये आश्वासन दे रही है कि वो जहाँ होगें, वहीँ उनके रहने-खाने-पीने की व्यवस्था की जायेगी.लेकिन सच्चाई बिलकुल अलग है. रोज कमाने-खानेवाले लोगों के सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो गई है. वो पैदल, रिक्शा ठेला से सैकड़ों किलो मीटर की दुरी तय कर अपने घर पहुँच रहे हैं. बिहार के तीन मजदूर ठेला चलाकर दिल्ली से अपने घर बिहार के बेगूसराय आ गए.
दिल्ली से घर वापसी के लिए मजदूरों का जत्था एनएच पर रोजाना 120 किलोमीटर ठेला चलाता रहा ताकि किसी तरह समय रहते घर पहुंचा जा सके. ठेले पर ही कुछ आवश्यक सामान रखकर 12 सौ किलोमीटर की दूरी तय करने की इन दोस्तों ने ठान ली. ठेला चला कर घर वापस आ रहे मजदूरों ने आपस में बारी बारी से ठेला चलाया. कभी किसी ने ठेले पर ही सोकर आराम किया तो कभी कहीं सड़क किनारे सोकर रात गुजारा.
लॉकडाउन के बाद दिल्ली से बेगूसराय आने वाले मजदूरों ने बताया कि दिल्ली में वो सभी ठेले चला कर ही अपना गुजारा करते हैं साथ ही घर और परिवार के लिए बचत कर पैसे भी भेजते हैं. सभी मजदूर दिल्ली के आजादपुर मंडी में सब्जी ठेले पर लेकर घर-घर बेचने का काम नई दिल्ली और एनसीआर के क्षेत्र में करते रहे हैं जिनसे उन्हें हरेक माह दस हजार रुपए की बचत हो जाती थी लेकिन लॉकडाउन के बाद अगले 2 से 3 दिनों तक कोई काम नहीं मिलने के बाद सभी मजदूरों ने घर वापस आने का फैसला लिया.
उनका कहना है कि घर से भी परिजनों के लगातार फोन कॉल्स आ रहे थे. रोजगार छीनने, रोजी-रोटी की तत्काल व्यवस्था नहीं होने और घर की चिंता ने उन्हें रोजी रोटी देने वाले ठेले से ही घर वापसी का फैसला लिया. सफर लंबा जरूर था लेकिन रोजाना 100 से 120 किलोमीटर की दूरी तय कर ये सभी मजदूर मुजफ्फरपुर के रास्ते अपने घर को पहुंचने को हैं.नई दिल्ली से ठेला लेकर निकलने के बाद रास्ते में मजदूरों को खाने-पीने से लेकर आने जाने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जगह-जगह पुलिस एनएच पर ठेले चलाने से भी मना करती रही लेकिन मजदूर आरजू मिन्नत कर आगे बढ़ते रहे.
ठेले पर खाने-पीने का कुछ आवश्यक सामान मजदूरों रख लिया था जिसके सहारे वो लखनऊ तक पहुँच गए. इसके बाद रास्ते में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं द्वारा चलाए जाने वाले राहत शिविरों में खाने का सामान मजदूरों को मिलता रहा और फिर मजदूरों का कारवां आगे बढ़ता गया.बेगूसराय के भगवानपुर थाना क्षेत्र के गांव के रहने वाले राजेश महतो, विकास नरसिंह और संभव ने बताया कि कभी सोचा नहीं था कि जो ठेला उसे रोजी-रोटी देता था ,वही घर वापसी का सहारा भी होगा. इससे पहले ठेले को किराए के घर के पास या फिर मंडी के पास ही छोड़ कर साल में दो बार घर वापस आते थे लेकिन कोरोना वायरस के डर ने इस बार मीलों का सफर करने को मजबूर कर दिया.
ठेजाहिर है अगर उन्हें दिल्ली में खाने-पीने का आश्वासन स्थानीय प्रशासन और सरकार देती तो वे कभी इतनी मेहनत कर वापस नहीं आते. घरवालों से उनकी मोबाइल पर लगातार बात हो रही थी लेकिन 3 दिनों तक काफी दिक्कतों का सामना करने के बाद ठेले से ही वापस घर आने का निर्णय लेना पड़ा.
Comments are closed.