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बिहार में थर्ड फ्रंट की संभावना की तलाश जारी, शरद यादव कर सकते हैं नेत्रित्व

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बिहार में थर्ड फ्रंट की संभावना की तलाश जारी, शरद यादव कर सकते हैं नेत्रित्व

सिटी पोस्ट लाइव : रालोसपा अभीतक NDA से अलग नहीं हुआ है.लेकिन उसके अलग होने की संभावना को देखते हुए तीसरा मोर्चा बनाए जाने की कवायद भी शुरू हो चुकी है. अगर रालोसपा NDA से अलग होता है और उसकी बात महागठबंधन के साथ नहीं बनती है तो तीसरे मोर्चे की संभावना और भी मजबूत हो जायेगी. उपेन्द्र कुशवाहा की रालोसपा, पप्पू यादव की लोक जन-अधिकार पार्टी और जीतन राम मांझी की ‘हम ‘ का एक मोर्चा बन सकता है. दरअसल,तीसरा मोर्चा बनाने की कवायद में ऐसे नेता जुटे हुए हैं जो न तो नीतीश कुमार के साथ जाना चाहते हैं और न ही महागठबंधन में तेजस्वी यादव के नेतृत्व को स्वीकार करने को तैयार हैं.

रालोसपा के उपेन्द्र कुशवाहा, हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी और विकासशील इंसान पार्टी के मुकेश सहनी और लोक जन अधिकार पार्टी के नेता पप्पू  यादव जैसे नेताओं का अपना मजबूत जातिगत आधार है. ये बिहार की जातीय राजनीति को अहम मोड़ देने वाले नेता के तौर पर अपनी पहचान बना चुके हैं.

उपेन्द्र कुशवाहा को कोयरी जाति का नेता माना जाता है. इनकी आबादी बिहार में करीब 6.4 प्रतिशत है. जब-जब कुर्मी (लगभग4 प्रतिशत) जाति के साथ कोयरी जाति का समीकरण बना तब-तब बिहार में सत्ता के खेल में बड़ा परिवर्तन हुआ है. कुशवाहा कुर्मी वोटरों को साधने में शायद ही कामयाब हो पाएं, लेकिन कोयरी जाति के साथ अन्य पिछड़ी जातियों की गोलबंदी कर वे अपनी राजनीति आगे बढ़ाने में लग गए हैं.

पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी की दलितों में अच्छी पैठ है. दलितों में जो 22 जातियां आती हैं उनकी आबादी 18 प्रतिशत है. जिस मुसहर जाति से वे आते हैं उसकी आबादी 2.3 प्रतिशत है. कुशवाहा और मांझी पहले एनडीए में एक साथ रहे भी हैं और दोनों के बीच अच्छी बनती भी है. ऐसे में दोनों एक साथ आते हैं तो जातिगत समीकरण के लिहाज से अच्छी ताकत बन सकती है.

बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना को लेकर सबसे ज्यादा सक्रीय हैं सन ऑफ़ मल्लाह मुकेश सहनी. देश भर में सन ऑफ़ मल्लाह के नाम से मशहूर मुकेश  हाल ही में विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) बना चुके हैं. वे निषाद विकास संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. अगर निषाद समुदाय मोटे तौर पर मल्लाह और नूनिया में बंटा हुआ है .इसमे भी 23 उप-जातियां हैं. इनकी आबादी 14 प्रतिशत है. इनमें बिंड, बेलदार, चइये, तियार, खुलवत, सुरहिया, गोधी, बनपार और केवट है. सबको मिलकर  उनकी संख्या लगभग 14 प्रतिशत है. मुकेश सहनी इस 14 फीसदी वोट बैंक पर अपनी मजबूत पैठ काफी हदतक बना चुके हैं.जाहिर है मुकेश सहनी यादव वोट बैंक के समानांतर  अपना एक नया वोट बैंक बना चुके हैं.राज्य में मुसहर,सहनी और कुशवाहा की जाति को मिलाकर लगभग 15 प्रतिशत हो जाती है और ये जातियां लगभग 10 लोकसभा सीटों को प्रभावित कर सकती हैं.  जाहिर है जातिगत आधार पर मुकेश सहनी बड़ा गेम चेंजर साबित हो सकते हैं.

दूसरी ओर रालोसपा छोड़ चुके जहानाबाद सीट से सांसद अरुण कुमार भी अब उपेन्द्र कुशवाहा के साथ खड़े दिख रहे हैं. 22 नवंबर को वो जीतन राम मांझी से मिलने उनके घर पहुँच कर उन्होंने तीसरे मोर्चा की संभावना को और भी बल दे दिया. अरुण कुमार भूमिहार विरादरी से आते हैं. अगर कुशवाहा, दलित और निषाद जातियों का समीकरण बने और सवर्णों के वोट का कुछ हिस्सा इसमें शामिल हो जाए तो बिहार की राजनीति नया शक्ल अख्तियार कर सकती है. तीसरा मोर्चा में लोक जन-अधिकार पार्टी के पप्पू यादव भी अहम् भूमिका हो सकती है.पप्पू यादव काफी हदतक यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं.

सबसे ख़ास खबर ये है कि अभी राजनीतिक वनवास झेल रहे शरद यादव इस तीसरे मोर्चा के गठन को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका में आ चुके हैं. सूत्रों के अनुसार ईन सभी पार्टियों को साथ लेकर कांग्रेस पर गठजोड़ के लिए दबाव बनाने की फिराक में शरद यादव जुटे हुए हैं. लेकिन अभीतक राहुल गांधी के साथ उनकी बैठक नहीं हो पाई है. राहुल पांच राज्यों में होनेवाले विधान सभा चुनाव को लेकर व्यस्त हैं. जाहिर है उनकी राहुल गांधी के साथ बैठक 11 दिसंबर के बाद ही हो पायेगी.

लेकिन इस तीसरे मोर्चे की संभावना तब और प्रबल होगी जब उपेन्द्र कुशवाहा NDA को छोड़ देने का अंतिम फैसला ले लेगें. सबको 30 नवंबर का इंतजार है. क्योंकि उपेन्द्र कुशवाहा ने सीट शेयरिंग को लेकर बीजेपी को यही डेटलाइन दी है. उधर मांझी भी महागठबंधन में उतने सहज नहीं लग रहे हैं. मुकेश सहनी फिलहाल महागठबंधन के साथ मोलभाव कर रहे हैं. जाहिर है आने वाले समय में अगर एनडीए-यूपीए के समीकरणों में ईन छोटे दलों को जगह नहीं मिलती है तो ये आपस में मिलकर बिहार में  तीसरे मोर्चे की नींव रख सकते हैं.

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