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वेंटिलेटर पर बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था, मरने के बाद भी नसीब नहीं एंबुलेंस .

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सिटी पोस्ट लाइव :बिहार के भागलपुर से जो तस्वीर आई है ,वह बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग की व्यवस्था का पोल खोलने के लिए काफी है.भागलपुर में  अम्बुलेंस की जगह ठेले से काम चला रहा है. नाथनगर से एक बीमार महिला ठेल से पहले निजी अस्पताल और फिर सदर अस्पताल इलाज कराने के लिए पहुंचीं. महिला मरीज पेट और शरीर में दर्द को लेकर परेशान थी. सदर अस्पताल में घंटों इंतजार के बाद उन्‍हें रेफर कर दिया गया. लेकिन अस्‍पताल परिसर में एंबुलेंस होने के बाद भी महिला को इसकी सुविधा नहीं दी गई.

अस्पताल ने महिला को अम्बुलेंस देने से ये कहकर मन कर दिया कि कोई ड्राइवर उपलब्ध नहीं है. परिजन इंतजार करते रहे, लेकिन मौत के बाद भी महिला को एंबुलेंस नहीं मिली तो परिजन ठेला पर ही शव को गांव ले जाने को मजबूर हो गए.महिला के परिजन जयनंदन यादव ने बताया कि महिला पेट दर्द से कराह रही थी, तो वह शनिवार को ठेले पर लेकर ही मरीज को एक निजी अस्पताल पहुंचा था. 700 रूपया इलाज के लिए जमा कर दिया था, लेकिन घंटों इंतजार के बाद क्लीनिक में डॉक्टर नहीं पहुंचे.

परिजन महिला को ठेले पर लेकर नाथनगर भतौड़िया चले गये.फिर सुबह 8 बजे मरीज को लेकर सदर अस्पताल उसी ठेले से पहुंचे. परिजनों के अनुसार, तकरीबन 10:30 बजे सदर अस्पताल में पदस्थापित चिकित्सक डा. अभिमन्यु ने उनका इलाज करते हुए रेफर कर दिया. उसके बाद परिजन एंबुलेंस के चालक को खोजते रहे, लेकिन पह नहीं मिला. अंतत: मरीज की मृत्यु हो गयी.

मौत के बाद भी परिजन शव को वापस घर ले जाने के लिए एंबुलेंस के ड्राइवर को खोजते रहे, लेकिन ड्राइवर नहीं मिला तो फिर ठेले पर ही शव को वापस घर ले जाने के लिए मजबूर हो गये. मृतका सीता देवी मूल रूप से मुंगेर के असरगंज इलाके की रहने वाली थीं. ममलाजब सामने आ गया और मीडिया के लोग सवाल करनेलगे तो सिविल सर्जन डा. विजय सिंह ने कहकर अपना पल्ला झाड लिया कि ड्यूटी के दौरान गायब पाये जाने पर ड्राइवर के खिलाफ कार्रवाई होगी. भागलपुर सूबे में कोरोना के मामले में सबसे ऊपर है और स्वास्थ्य विभाग इतना लापरवाह है. ऐसे में कैसे बचेगी कोरोना से संक्रमित लोगों की, ये सवाल बहुत बड़ा है.

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