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नहीं रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी,लम्बे समय से चल रहे थे बीमार

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सिटी पोस्ट लाइव : लम्बे समय से बीमारी से जूझ रहे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी नहीं रहे. दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने गुरुवार सुबह एक बुलेटिन जारी करते हुए कहा था कि – भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की हालत नाज़ुक बनी हुई है और उसमें कोई सुधार नहीं हो रहा है, और इसलिए पिछले 24 घंटे से उन्हें वेंटीलेटर पर रखा गया था. जिसके बाद बुधवार देर शाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी को देखने के लिए एम्स गए थे. उसके बाद से लगातार एक-एक कर कई बड़े नेता एम्स पहुंच रहे हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक प्रतिष्ठित नेता थे . उन्हें सांस्कृतिक समभाव, उदारवाद और राजनीतिक तर्कसंगतता के लिए जाना जाता था. आपको बता दें कि वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने.उनके कार्यकाल में ही भारत ने पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण किया.नई दिल्ली-लाहौर बस सेवा शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर उन्होंने भारत-पाकिस्तान के बीच शांति की उम्मीदों को नया आयाम दिया. आज तक उनकी सरकार ऐसी इकलौती गैर-कांग्रेस सरकार है जिसने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है. एक अनुभवी राजनीतिज्ञ और उत्कृष्ट सांसद होने के अलावा, अटल बिहारी वाजपेयी एक प्रसिद्ध कवि और सभी राजनीतिक दलों में सबसे लोकप्रिय व्यक्तित्व थे.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में मध्यमवर्गीय ब्राह्म परिवार में कृष्णा देवी और कृष्ण बिहारी वाजपेयी के घर हुआ था. उनके पिता एक कवि होने के साथ ही स्कूल में शिक्षक थे. वाजपेयी की शुरुआती पढ़ाई ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में हुई. जिसके बाद उन्होंने विक्टोरिया कॉलेज ग्वालियर – अब लक्ष्मी बाई कॉलेज- से स्नातक की उपाधि ली. कानपूर के एंग्लो-वैदिक कॉलेज से वाजपेयी ने राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की. अटल बिहारी वाजपेयी 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े और 1947 में उसके प्रचारक (पूर्णकालिक कार्यकर्ता) बन गए. उन्होंने इस दौरान राष्ट्रधर्म हिंदी मासिक, पांचजन्य हिंदी साप्ताहिक और दैनिक स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे दैनिक अखबारों के लिए भी काम किया.वाजपेयी ने पूरी जिंदगी अविवाहित रहने का प्रण लिया था और रहे भी.

 

अटल बिहारी वाजपेयी का राजनीतिक करियर :

उन्होंने एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरूवात की थी .बाद में वे भारतीय जन संघ (बीजेएस) से जुड़े. यह एक हिंदू दक्षिणपंथी राजनीतिक दल था, जिसका नेतृत्व डॉ. श्याम प्रसाद मुखर्जी करते थे. वे बीजेएस के राष्ट्रीय सचिव बने और उनके पास उत्तरी क्षेत्र का प्रभार था.

बीजेएस के नए नेता के तौर पर, वाजपेयी 1957 में पहली बार बलरामपुर  से लोक सभा के लिए चुने गए.वे 1968 में जन संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने. नानाजी देशमुख, बलराज मधोक और लालकृष्ण आडवाणी जैसे सहयोगियों की मदद से वाजपेयी ने जन संघ की पहुंच बढ़ाई.

भारत के प्रधान मंत्री के तौर पर (1996 से 2004 तक)

वाजपेयी ने 1996 के आम चुनावों के बाद देश के 10वें प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली थी.उस समय लोक सभा चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. हालांकि, सरकार 13 दिन ही चल सकी क्योंकि वाजपेयी बहुमत हासिल करने के लिए अन्य पार्टियों का समर्थन नहीं जुटा सके. इस तरह वे भारत के सबसे कम अवधि के प्रधान मंत्री बन गए.

 

भाजपा-नीत गठबंधन यानी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग या एनडीए) 1998 में फिर सत्ता में लौटा. वाजपेयी ने फिर प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली. प्रधान मंत्री के तौर पर वाजपेयी के दूसरे कार्यकाल को राजस्थान के पोखरण में परमाणु परीक्षण के लिए जाना जाता है, जो मई 1998 में किया गया था. वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. उन्होंने ऐतिहासिक दिल्ली-लाहौर बस सेवा का फरवरी 1999 में उद्घाटन किया. इस दौरान  उन्होंने पाकिस्तान के साथ कश्मीर समेत अन्य सभी विवादों को सुलझाने की महती पहल की थी.लेकिन पाकिस्तान ने कारगिल युद्ध छेड़कर भारत को धोखा दिया. पाकिस्तानी सैनिक कश्मीर घाटी में घुसपैठ कर आए थे और उन्होंने कारगिल शहर के पास की सीमावर्ती चोटियों पर कब्जा जमा लिया था.

 

भारतीय सेना की इकाइयों ने ऑपरेशन विजय शुरू किया और कड़कड़ाती ठंड के बीच साहस और वीरता का परिचय देते हुए न केवल चोटी पर बैठे पाकिस्तानी दुश्मन को ठिकाने लगाया बल्कि उन इलाकों पर तिरंगा लहराकर देश की शान बढ़ाई. हालांकि, वाजपेयी की सरकार 13 महीने ही चली, जब अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एआईएडीएमके) ने 1999 के बीच में सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. बाद के चुनावों में, हालांकि, एनडीए पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटा और वाजपेयी पांच साल का कार्यकाल (1999-2004) करने में सफल रहे. वे यह उपलब्धि हासिल करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी प्रधान मंत्री भी बने. वाजपेयी ने 13 अक्टूबर 1999 को तीसरी बार भारत के प्रधान मंत्री के तौर पर शपथ ली थी.

 

मार्च 2000 में, वाजपेयी ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रवास के दौरान उनके साथ ऐतिहासिक विजन डॉक्यूमेंट पर हस्ताक्षर किए थे.इस घोषणा पत्र में कई रणनीतिक मुद्दे शामिल थे.इस दौरान मुख्य रूप से दोनों देशों के बीच व्यापार और आर्थिक रिश्तों को मजबूती देने की कोशिश की गई थी. राजनीति के अलावा, वाजपेयी को एक कवि प्रभावशाली वक्ता के तौर पर भी जाना जाता है. एक नेता के तौर पर वह जनता के बीच अपनी साफ छवि, लोकतांत्रिक, और उदार विचारों वाले व्यक्ति के रूप में जाने गए. 2015 में उन्हें  देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न सम्मान से नवाजा गया.

 

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