उपचुनाव के परिणाम से कैसे बदल जाएगी बिहार की राजनीति,जानिए
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार की 5 विधान सभा सीटों के चुनाव के नतीजों से फिरहाल सरकार और विपक्ष की सेहत पर कुछ ख़ास प्रभाव तो नहीं पड़ेगा लेकिन गठबंधन पर इसका असर अभी से देखा जाने लगा है. बीजेपी के एमएलसी टुन्ना पाण्डेय ने नीतीश कुमार से इस्तीफे की मांग शुरू कर दी है वहीं उप-चुनाव में चुपचाप बैठी RLSP पार्टी तेजस्वी यादव के पक्ष में खुलकर सामने आ गई है.RLSP के राष्ट्रिय महासचिव माधव आनंद ने महागठबंधन के घटक दल वीआइपी और हम पार्टी को बड़ी नसीहत दे दी है.माधव आनंद ने कहा कि लोक सभा चुनाव के बाद जो लोग तेजस्वी यादव के नेत्रित्व पर सवाल उठा रहे थे उन्हें अब समझ लेना चाहिए कि BJP को उखाड़ फेंकने का दम तेजस्वी यादव में ही है.
टुन्ना पाण्डेय और माधव आनंद के बयान से साफ़ है कि उप-चुनाव से तेजस्वी की स्थिति मजबूत हुई है तो दुसरी तरफ नीतीश कुमार कमजोर पड़े हैं.तेजस्वी के नेत्रित्व पर महागठबंधन के नेता भरोसा जता रहे हैं वहीं बीजेपी के नेता नीतीश कुमार के नेत्रित्व पर सवाल उठाने लगे हैं. वैसे चुनाव के पहले से ही बीजेपी के कई नेता नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे.लेकिन नीतीश कुमार के नेत्रित्व में ही अगला विधान सभा चुनाव लड़ने के अमित शाह के बाद माना जा रहा था कि NDA में सबकुछ ठीक है.लेकिन जिस तरह से दरौंधा और बेलहर में बीजेपी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने जेडीयू को हारने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी, बात साफ़ है प्रदेश बीजेपी के नेता तेजस्वी यादव से पहले नीतीश कुमार से फरियाने के मूड में हैं.
उपचुनाव के परिणाम के बाद अब स्पष्ट है कि बिहार में बड़ा भाई बने रहने जेडीयू के JDU का दावा कमजोर पड़ा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार सीटों के बंटवारे को लेकर बीजेपी पर ज्यादा दबाव नहीं बना पायेगें.अब बीजेपी नीतीश कुमार पर लोक सभा चुनाव के सीट बटवारे के फार्मूले पर विधान सभा चुनाव में बराबर बराबर सीट पर लड़ने का फार्मूला लागू करने की कोशिश करेगी. महाराष्ट्र की शिव सेना की तरह अगर BJP बिहार में JDU को छोटा भाई बनाने की कोशिश करे तो भी आश्चर्य नहीं होगा.
दूसरी तरफ तेजस्वी यादव की स्थिति महागठबंधन में मजबूत हुई है.अब तेजस्वी यादव पर घटक दल सीटों की संख्या को लेकर ज्यादा दबाव नहीं बना पायेगें. जीतन राम मांझी और मुकेश सहनी पर दबाव बढेगा. हालांकि मुकेश सहनी सिमरी बख्तियारपुर में RJD की जीत का श्रेय लेकर तो मांझी नाथनगर में आरजेडी को हराने का श्रेय लेकर तेजस्वी यादव पर दबाव बनाने की कोशिश जरुर करेगें. गौरतलब है कि सिमरी बख्तियारपुर में मुकेश सहनी के उम्मीदवार द्वारा 25 हजार से ज्यादा वोट लाये जाने की वजह से ही नीतीश कुमार की हार हुई है और नाथनगर में मांझी के उम्मीदवार ने ही 6 हजार से ज्यादा वोट हाशिल कर आरजेडी की हार सुनिश्चित किया है. जहांतक कांग्रेस की बात है वह किशनगंज में हार की वजह से आरजेडी के साथ ज्यादा बार्गेन नहीं कर पायेगी.मांझी और सहनी तो बीजेपी में जाने डर RJD को दिखा सकते हैं लेकिन कांग्रेस तो वो भी नहीं कर सकती.
उप-चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (AIMIM) की जीत सबसे ज्यादा मायने रखती है. आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र विधानसभा में एंट्री मारने के बाद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM को अब बिहार विधानसभा में एंट्री मिल गई है. बिहार के किशनगंज सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार कमरुल होदा (Kamrul Huda) ने बीजेपी की प्रत्याशी स्वीटी सिंह को मात देकर सिमांचल की राजनीति को बदल दिया है. AIMIM की जीत से सीमांचल की राजनीति में बड़े उलटफेर होने की संभावना है. आरजेडी-जेडीयू के मुस्लिम वोट बैंक में AIMIM ने केवल सेंधमारी नहीं की है बल्कि अल्पसंख्यकों के इस ईलाके में AIMIM के पक्ष में गोलबंद हो जाने का खतरा बढ़ गया है. इस गोलबंदी की वजह से यहाँ लड़ाई केवल AIMIM और BJP के बीच हो जायेगी.RJD,CONG मैदान से बाहर नजर आयेगी.
AIMIM की जीत से बिहार में तीसरे मोर्चे की संभावना प्रबल हो गई है. AIMIM अब विधान सभा चुनाव में पप्पू यादव जैसे प्रभावशाली स्थानीय नेताओं को साथ लेकर हर सीट पर अपना उम्मीदवार उतारकर CONGRESS और RJD की मुश्किल बढ़ा सकती है. AIMIM सिमांचल में NRC के विरोध के बहाने भी अपनी ताकत बढाने की कोशिश करेगी. AIMIM के नेता असदुद्दीन ओवैसी जीतन राम मांझी, मुकेश सहनी और कन्हैया कुमार जैसे नेताओं को साथ लेकर तीसरे मोर्चे का गठन कर महागठबंधन की चुनौती बढ़ा सकते हैं.
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