किम कर्तव्यं विमूढ़ हुए कुशवाहा, पार्टी का एक बड़ा नेता NDA तो दूसरा RJD के साथ
सिटी पोस्ट लाइव : सीट शेयरिंग को लेकर एनडीए के अन्दर सबसे ज्यादा आक्रामक तेवर रालोस्पा सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा अपनाए हुए हैं. पिछले चुनाव में उन्हें तीन सीटें मिली थीं. तीनों पर जीते भी. लेकिन एक सांसद अरुण कुमार ने अलग पार्टी बना ली. अब बीजेपी पिछले चुनाव के हिसाब से उन्हें इसबार केवल दो सीटें देना चाहती है. लेकिन उपेन्द्र कुशवाहा पिछले साल से एक सीट कम नहीं बल्कि एक-दो सीट ज्यादा चाहते हैं. दरअसल, मंत्री बनने के बाद से कुशवाहा का कद बढ़ा है. वो अपनी पार्टी और संगठन को भी पहले से ज्यादा मजबूत करने का दावा कर रहे हैं.
लेकिन उनके दावे हकीकत से मेल नहीं खाते.उनकी पार्टी के एक सांसद अरुण कुमार पहले ही हाथ से जा चुके हैं. दूसरे सांसद रामकुमार दूसरे दल में जाने को तैयार बैठे हैं. पार्टी के दो बड़े कुशवाहा नेता हैं एक हैं नागमणि और दूसरे भगवन सिंह कुशवाहा. दोनों भी उपेन्द्र कुशवाहा के साथ मजबूती के साथ खड़े नहीं हैं. नागमणि महागठबंधन के साथ जाने के पक्षधर हैं. वो लगातार लालू यादव और तेजस्वी यादव के संपर्क में हैं. दूसरी तरफ भगवान् सिंह कुशवाहा नीतीश कुमार के साथ खड़े हैं. वो एनडीए को अपना मंदिर बता रहे हैं जिसे बतासे ( सीट ) के लिए तोड़ने को तैयार नहीं हैं. जहांतक विधायकों की बात है. पार्टी के दो ही विधायक हैं और वो दोनों ही जेडीयू में जाने का मन बना चुके हैं.
जाहिर है एक बड़ा नेता महागठबंधन के साथ जाने के पक्ष में तो दूसरा एनडीए के साथ बने रहने के पक्ष में है. यानी पार्टी एक है लेकिन नेता तीन हैं. और तीनों की राह अलग अलग है. एक नेता बीजेपी- जेडीयू के संपर्क में है तो दूसरा महागठबंधन यानी आरजेडी के संपर्क में. ऐसे में पार्टी सुप्रीमो उपेन्द्र कुशवाहा मुश्किल में फंसे हैं. वो तय नहीं कर पा रहे ,क्या करना है. एनडीए के साथ जायेगें तो भी और महागठबंधन के साथ जायेगें तो भी, उनकी पार्टी के टूटने का खतरा बना हुआ है. उपेन्द्र कुशवाहा भी एनडीए में तो बने रहना चाहते हैं लेकिन उन्हें वहां नीतीश कुमार के कारण ज्यादा भाव नहीं मिल रहा.
किम कर्तव्यं विमूढ़ उपेन्द्र कुशवाहा अब तीसरे विकल्प की तलाश में उछल कूद कर रहे हैं. कभी वो तेजस्वी से मिल रहे हैं तो कभी शरद यादव से.उनकी पार्टी के नेता ही इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा का अंतिम फैसला क्या होगा? आखिर वो चाहते क्या हैं? दरअसल, इसमे उपेन्द्र कुशवाहा का कोई दोष नहीं है. वो खुद तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें क्या करना है. उनकी नजर सीएम की कुर्सी पर है. उनके इस सपने को साकार करने की थोड़ी बहुत जो संभावना है, वो बीजेपी से ही है. लेकिन ये तभी संभव है जब उनकी पार्टी नीतीश कुमार की जेडीयू की तरह विस्तार पा ले. पार्टी के विस्तार को लेकर ही वो परेशान हैं और लोक सभा चुनाव में ही वो विधान सभा सीटों की संख्या तय कर लेना चाहते हैं जिसके लिए बीजेपी अभी तैयार नहीं है.
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