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ए लव स्टोरी ऑफ़ बाबू कुंवर सिंह

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सिटी पोस्ट लाइव : प्रेम त्याग और बलिदान का नाम है ये सीखना हो तो वीर कुंवर सिंह की  प्रेमिका धरमन से सीखनी चाहिए. जिसने मरते दम तक सिर्फ प्रेम किया और प्रेम में शहीद हो गई. बात तब कि है जब वीर कुंवर सिंह बीबीगंज से मिर्जापुर और कालपी की लड़ाई लड़ रहे थे. उस वक्त एक अनजान योद्धा बड़े ही समर्पित भाव से लड़ रहा था. इस योद्धा की वीरता, सहस और तेजी के कायल साथ लड़ने वाले सहित दुश्मन की सेना के भी लोग थे. इस युद्ध में कुंवर सिंह शायद शहीद हो जाते, दुश्मन का निशाना उन पर था वह अपने लोगों को कुछ निर्देश दे रहे थे कि इसी बीच दुश्मन की गोली चल गई और बड़ी फुर्ती से उस अनजान योद्धा ने सीना आगे कर दिया. अपने नायक की जान बचाकर वह योद्धा शहीद हो गया. युद्ध थमने पर सच का पता चला तो लोग स्तब्ध रह गए. वह अनजान योद्धा कोई और नहीं कुंवर सिंह की प्रेमिका धरमन थी, जो भेष बदलकर लगातार लड़ रही थी.उसने ना सिर्फ अपनी अकूत संपत्ति अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने पर खर्च कर दी बल्कि खुद शस्त्र उठाया और अंतिम समय तक फिरंगियों के विरुद्ध लडती रही. आरा की नर्तकी धर्मन नृत्य कला एवं उसके रूप से कुंवर सिंह भी काफी प्रभावित थे. दोनों एक दुसरे से मिलते थे और उन दोनों के  बीच प्रेम हुआ. अपने अंतिम समय तक कुंवर सिंह ने धरमन को नहीं छोड़ा. धरमन ने भी कुंवर सिंह को अपना सब कुछ माना. दोनों में प्रेम कितना गहरा था, उसकी निशानी धरमन मस्जिद बना. उस दौर की स्थिति यह थी कि मुस्लिम महिलाओं को मस्जिद में नमाज पढ़ने की पूरी मनाही थी. एक बार धरमन ने अपनी चिंता कुंवर सिंह को बता दी. यह जानकर कुंवर सिंह ने अपने उदार प्रेम तथा सांप्रदायिक सौहार्द का नमूना पेश करते हुए, उसके लिए एक नई मस्जिद का निर्माण करा दिया. जिसे धरमन मस्जिद के नाम से जाना जाता है. यह मस्जिद आज भी टूटे-फूटे रूप में आरा शहर में स्थित है.

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