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नियोजित शिक्षकों ने लिखा शिक्षा मंत्री को खुला पत्र,कहा-आप संवेदनहीन हो चुके हैं…

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नियोजित शिक्षकों ने लिखा शिक्षा मंत्री को खुला पत्र,कहा-आप संवेदनहीन हो चुके हैं…

सिटी पोस्ट लाइव :नियोजित शिक्षक बिहार सरकार के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गए हैं.17 फरवारी से हड़ताल पर हैं नियोजित शिक्षक.आज फिर से नियोजित शिक्षकों ने शिक्षा मंत्री को एक पत्र लिखा है.इस पत्र का मजमून इस प्रकार है-“ मंत्री जी,आपकी सरकार की संवेदनशीलता पर अब “संवेदनशील” शब्द ही संवेदनहीन हो चुका है। आप जिस सेवा शर्त पर सरकार के संवेदनशील होने की बात कर रहे हैं, उसे 3 महीने के अंदर लागू करने का संकल्प लेने वाली सरकार 5 वर्ष बाद भी पूरा नहीं कर पाई.इससे हीं सरकार की संवेदनशीलता का पता चल जाता है. राज्य के लाखों हड़ताली शिक्षकों ने शिक्षा मंत्री कृष्णंदन प्रसाद वर्मा के नाम अपने खुला पत्र में लिखा है.

गौरतलब है कि 17 फरवरी से राज्य के प्राथमिक व मध्य विद्यालयों व 25 फरवरी से माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विद्यालयों के लगभग चार लाख शिक्षक व पुस्तकालयाध्यक्ष अनिश्चितकालीन हड़ताल पर हैं. हड़ताली शिक्षकों ने आगे कहा है कि शिक्षा मंत्री जी हमें मानवता और सामाजिक दायित्वों का पाठ न पढ़ाएं. शिक्षक समाज हमेशा से आपदा की घड़ी में आगे बढ़कर मानवीय मूल्यों के तहत तन मन धन से मानवता की सेवा करता रहा है और सरकार के राहत कोष में भी अपना भरपूर योगदान दिया है.

आज आंदोलनरत और बिना वेतन के भी वैश्विक महामारी कोरोना की लड़ाई में शिक्षक समाज कोरोंटाइन सेंटर से लेकर राहत सामग्रियों के वितरण, जन जागरण एवं राहत कोष में भी योगदान दे रहा है.शिक्षकों ने अपने पत्र में आगे लिखा है-अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत लोकतांत्रिक ढंग से मुख्यमंत्री और सरकार द्वारा सदन और सदन के बाहर घोषित अपनी जायज मांगों के लिए आंदोलनरत शिक्षक संवेदनहीन सरकार की गैरकानूनी दमनात्मक, कुचक्र  तथा वेतन के अभाव में 44 शिक्षक असमय काल के गाल में समा गए. आज कोरोना से भी बड़ा दुश्मन सरकार शिक्षकों को मान रही है ,तभी तो सरकार के मुखिया और आपका पत्थरदिल कलेजा और आंसू विहीन आंखों में कोई संवेदना नहीं दिख रही है. शिक्षकों को अपनी पूंजी बताने वाली व्यापारियों की यह सरकार यह भी नहीं जानती कि कैसे अपनी पूंजी को सहेजा व संभाला जाता है.

शिक्षकों ने कहा कि सरकार राज्य में शिक्षा जगत को पटरी पर लाकर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार पाने का ढिंढोरा पीट रही है. उसके संचालन, पठन-पाठन, नई तकनीक का सामंजन, परीक्षा से लेकर मूल्यांकन तक में इन शिक्षकों का भी बहुत बड़ा योगदान है मगर हमें हमेशा सम्मान की जगह तिरस्कार मिलता है. मंत्री को संबोधित खुले पत्रों में हड़ताली शिक्षकों ने लिखा है कि हमें तो आपने राष्ट्रहित, दायित्वों तथा वर्तमान विषम परिस्थितियों का ख्याल दिलाते हुए हड़ताल से काम पर लौटने को तो जरूर कहा. मगर क्या आपको अपनी इन विषम परिस्थितियों में दायित्वों का तनिक भी बोध नहीं हुआ? क्या आपके हाथ और कलम इस अपील को लिखते हुए दमनात्मक कार्रवाई झेल रहे बिना वेतन के शिक्षकों की परिस्थितियों पर नहीं कांपे ?

शिक्षकों ने शिक्षामंत्री  को पत्र के माध्यम से राष्ट्रनिर्माता गुरु के प्रति व्यवहार और दृष्टिकोण की याद दिलाई है. उन्होंने यह भी लिखा है कि यदि आप भूल भी गए हैं तो अभी लॉक डाउन में रामायण और महाभारत देखकर भी इस देश में गुरुओं के प्रति सम्मान और व्यवहार की परंपरा सीख लें. साथ ही साथ इनका अनादर का हश्र भी समझ ले. शिक्षकों ने आक्रोश भरे शब्दों में यह भी लिखा है कि ऐसा ना हो की कोरोना महामारी के अंत होने के बाद भी आपकी सरकार को आजीवन लॉक डाउन में रहना पड़े.

लाखों हड़ताली शिक्षकों ने अपनी एकजुटता को प्रदर्शित करते हुए स्पष्ट लिखा है कि नियोजनवाद की जकड़न और भविष्य के अंधकार को समाप्त करने के लिए यदि हमें जितनी भी कुर्बानी देनी पड़े हम तैयार हैं. इन शिक्षकों ने अंत में लिखा है कि आप जिस संविधान की शपथ लेकर सरकार चला रहे हैं उस संविधान निर्माता बाबा साहेब आंबेडकर की जयंती पर न्याय के साथ विकास की बात करने वाली आपकी सरकार अविलंब शिक्षकों पर हुई दमनात्मक कार्रवाई को वापस ले.साथ हीं वर्तमान संकट की घड़ी में हड़ताल अवधि का वेतन जारी करते हुए न्यायोचित मांगों पर ध्यान देते हुए ससम्मान हड़ताल समाप्त कराए.

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