बिहार में इंजीनियरिंग के छात्रों में क्यों मची है सरकारी चपरासी बनने की होड़ ?
सिटी पोस्ट लाइव : बिहार में इंजीनियर और डॉक्टर की जगह नौजवान चपरासी बनना चाहते हैं. वैसे तो देश में इस वक़्त सरकारी नौकरी के लिए इतनी मारामारी है कि न केवल बीटेक की डिग्रीधारक बल्कि मास्टर डिग्री वाले इंजीनियर भी चपरासी, माली, दरबान और सफाईकर्मी बनने के लिए लाइन में लगे हुए हैं.लेकिन बिहार में चपरासी के पद के लिए मारामारी मची है.
वैसे तो मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, दिल्ली समेत तमाम राज्यों का यही हाल है.लेकिन फ़िलहाल इस वजह से सबसे ज्यादा सुर्खियों में है बिहार .बिहार विधानसभा में चपरासी, माली, सफाईकर्मी और दरबान बनने के लिए फोर्थ ग्रेड के कुल 136 पदों पर भर्ती चल रही है और इसके लिए पांच लाख से भी अधिक आवेदन आए हैं.सबसे ख़ास बात ये है कि आवेदकों में सैकड़ों उम्मीदवार ऐसे हैं जिनके पास बीटेक और एमटेक की डिग्री है. हज़ारों ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट हैं. कुछ ऐसे भी हैं जो आईएएस और आईपीएस बनने के लिए यूपीएससी की परीक्षाओं (प्रीलिम्स+मेन्स) को भी पास कर चुके हैं.
इन पदों के लिए शैक्षणिक और तकनीकी योग्यता है – मैट्रिक पास या समकक्ष, हिंदी और अंग्रेज़ी भाषाओं का ज्ञान और साइकिल चलाने की क्षमता.बहरहाल सवाल ये है कि इंजीनियर चपरासी क्यों बनने जा रहे हैं?इसका एक सीधा सा जवाब है – “बिहार में इंजीनियरों को सरकारी नौकरी मिलना क़रीब एक दशक से भी अधिक वक़्त से बंद है.”असिस्टेंट इंजीनियरों की भर्ती कराने वाला बिहार लोकसेवा आयोग 2007 के बाद से एक भी ज्वाइनिंग नहीं करा सका है.
2017 में आयोग की तरफ से असिस्टेंट इंजीनियर की पोस्ट के लिए आख़िरी बार विज्ञापन निकाला गया था. कई तारीख़ें बदलने और परीक्षाएं रद्द करने के बाद पिछले साल जुलाई में उसके मेन्स की परीक्षा ली गई थी. लेकिन इंटरव्यू और रिजल्ट की तिथि अब तक नहीं आ सकी है.मेन्स का रिजल्ट जारी करने और इंटरव्यू की तिथि घोषित करने की मांग के साथ सैकड़ों इंजीनियर अभ्यर्थी पिछले कई दिनों से बिहार लोकसेवा आयोग दफ़्तर के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
बिहार लोकसेवा आयोग के दफ़्तर के बाहर प्रदर्शन करने पहुंचे अभ्यर्थियों का कहना है कि वो ये जानने पहुँचे हैं कि आख़िर मेन्स का रिजल्ट कब जारी किया जाएगा. परीक्षा का नोटिफिकेशन निकाले तीन साल होने को हैं लेकिन किसी अधिकारी से बात ही नहीं हो पा रही है. दफ़्तर में कहा जा रहा है कि सभी लोग बौद्ध महोत्सव के लिए गए हुए हैं.गौरतलब है कि 2011-12 में भी एक बार वैकेंसी निकली थी. परीक्षा में गड़बड़ी की शिकायतें हुईं. धांधली के मामले दर्ज किए गए और रिजल्ट बार-बार अटकता गया. वो ज्वाइनिंग भी कभी नहीं कराई जा सकी.अभ्यर्थियों का कहना है कि इस बार मामला हाई कोर्ट में गया है. अदालत में याचिका डाली गई है कि मेन्स में चार प्रश्न ग़लत पूछे गए थे. याचिका स्वीकार कर ली गई और अदालत ने आयोग से जवाब मांगा था.
आयोग का जबाब है कि विशेषज्ञों ने प्रश्न तैयार किए थे, उन्हें बदला नहीं जा सकता. या उसकी वजह से परीक्षा रद्द नहीं की जा सकती है. मामले की सुनवाई अभी भी चल ही रही है. हालांकि, अब तो हम लोग सिर्फ़ यही चाहते हैं कि कम से कम मेन्स का रिजल्ट प्रकाशित कर दिया जाए.बीपीएसपी के सदस्य, संयुक्त सचिव सह परीक्षा नियंत्रक अमरेंद्र कुमार सिंह कहते हैं कि मामला अब हाई कोर्ट में चला गया है. आगे की कार्रवाई कोर्ट के निर्णय के अनुसार ही होगी. हमारा काम पूरा है. रिजल्ट बन चुका है. हम बस कोर्ट के ऑर्डर का इंतज़ार कर रहे हैं.
2011-12 में बीपीएसपी के तहत हुई भर्ती में गड़बड़ियां सामने आने के बाद बिहार सरकार ने इंजीनियर बहाल करने के लिए एक नए आयोग का गठन किया गया. नाम दिया गया बिहार तकनीकी सेवा आयोग. इसके ज़रिए विभिन्न विभागों के लिए इंजीनियरों को कॉन्ट्रैक्ट पर बहाल करने की योजना भी शुरू हुई.यह योजना भी बिहार में शिक्षकों के नियोजन की योजना से मिलती-जुलती है. लेकिन इसके लिए केवल बीटेक होना ही ज़रूरी नहीं है बल्कि डिग्री और (ग्रेजुएट एप्टिट्यूड टेस्ट) गेट की परीक्षा के स्कोरकार्ड के आधार पर चयन होना है.
मेरिट बनाने का काम आयोग करता है लेकिन आख़िरी चयन विभाग को ही करना है. 27,000 रुपए की अधिकतम तनख़्वाह फ़िक्स कर दी गई है.सबसे बड़ी परेशानी ये है कि फर्जीवाडा करनेवाले नौकरी पा जा रहे हैं और मेरिट वालों को मौका नहीं मिल पा रहा.कोई ऐसा विभाग नहीं बचा है जहां से जाली सर्टिफिकेट बनवाकर ज्वाइन करने के मामले सामने नहीं आए हैं.
बिहार में 32 पॉलिटेक्निक कॉलेज हैं. सभी में पांच ब्रांच हैं और हर ब्रांच में 60 सीटें. यानी केवल सरकारी पॉलिटेक्निक इंजीनियरिंग कॉलेजों से हर साल 9600 बच्चे डिप्लोमा करके निकलते हैं. अगर अन्य सरकारी और ग़ैर-सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों की गणना की जाए तो क़रीब 32 अन्य कॉलेज भी हैं जहां से हज़ार युवा हर साल इंजीनियर की डिग्री पाते हैं.
एक रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार में हर साल कम से कम 20 हज़ार इंजीनियर निकलते हैं. अगर बाहर जाकर इंजीनियरिंग करने वालों को मिला दिया जाए तो यह संख्या और भी बढ़ जाएगी.लेकिन, इंजीनियरिंग के हज़ार पद अभी भी ख़ाली हैं. ख़ुद बिहार सरकार का कहना है कि उनके यहां क़रीब सात हज़ार जूनियर इंजीनियर और इतने ही असिस्टेंट इंजीनियरों के पद ख़ाली हैं.सवाल अब भी वही है कि इंजीनियरिंग के बाद भी ये लोग आखिर चपरासी, गार्ड और माली क्यों बनना चाहते हैं? दूसरी प्राइवेट नौकरियां भी मिल सकती हैं.
दरअसल, कुकरमुत्ते की तरह फैले इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ाई की गुणवत्ता गिर गई है.हजारों लाखों जीनियर्स हर साल बन रहे हैं लेकिन उनमे से ज्यादातर इंजीनियर की नौकरी के क़ाबिल नहीं हैं. बिहार विधानसभा के एनेक्सी भवन में चपरासी की नौकरी के इंटरव्यू के लिए आए इंजीनियरों का कहना है कि आगे इंतज़ार करना मुश्किल है इसलिए वो इस नौकरी के लिए लाइन में लगे हैं.एक अभ्यर्थी के अनुसार इंजीनियरों के चपरासी बनने के पीछे एक अहम कारण वेतन भी है.बिहार सरकार जूनियर इंजीनियरों के लिए अधिकतम तनख्वाह 27 हज़ार दे रही है, जबकि विधानसभा में चपरासी बन जाने पर 56,000 रुपए की सैलेरी मिलेगी.
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