अगर हिंदुस्तानी हो तो डर कैसा और घुसपैठिये हो तो घर कैसाः श्रीनिवास
सिटी पोस्ट लाइव, रांची: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री श्रीनिवास ने कहा कि “अगर हिंदुस्तानी हो तो डर कैसा और अगर घुसपैठिये हो तो घर कैसा।” जामिया और जेएनयू, दिल्ली के शाहीन बाग जैसे स्थानों पर हमें चाहिए आजादी के जो नारे लगाए जा रहे हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए। सीएए भारत के किसी भी नागरिक के लिए नहीं है, बल्कि यह कानून भारत में रह रहे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के शरणार्थियों के लिए है। वैसे लोगों के लिए है जिसका पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धर्म के आधार पर शोषण किया गया है और वे किसी तरह अपने को बचाते हुए भारत में शरण लिए हुए हैं। वो जीवन यापन के लिए यहां संघर्ष कर रहे हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के 20वें प्रांतीय अधिवेशन के तीसरे दिन रविवार को श्रीनिवास “नागरिकता संशोधन कानून (सीएए)” विषय पर बोल रहे थे। सीएए के विरोध करने वाले लोगों से उन्होंने कहा कि 8 अप्रैल 1950 को नेहरू-लियाकत समझौते के तहत यह तय हुआ था कि पाकिस्तान में रहने वाले अल्पसंख्यकों और भारत में रहने वाले अल्पसंख्यकों को दोनों देशों की सरकारें उनकी सुरक्षा, विकास और उनके हित के बारे में सोचेगी, लेकिन आजादी के 70 वर्षों के बाद आज भारत में तो अल्पसंख्यक अपने हक और अधिकार के साथ रह रहे हैं लेकिन पड़ोस देशों में उनकी स्थिति बिल्कुल ही दयनीय है। आजादी के समय उनकी जितनी संख्या थी उससे बहुत ही कम आज उनकी संख्या वहां बची हुई है।
उन्होंने कहा कि आज जिस प्रकार से पड़ोस के देश में वहां के अल्पसंख्यकों पर अत्याचार हो रहा है उनकी धार्मिक, सामाजिक आजादी को छीना जा रहा है, इससे हम कह सकते हैं कि भारत का विभाजन बिल्कुल भी जनसंख्या के आधार पर नहीं हुआ था, बल्कि धार्मिक आधार पर हुआ था। आज शाहीन बाग में एक महीने से रास्ता बंद कर वहां एक समुदाय विशेष के धरने में छोटे-छोटे बच्चों को गुमराह कर उनके हाथों में तख्तियां देकर खड़ा कर दिया गया है। उनके द्वारा देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है। बच्चों के जेहन में जहर भर दिया गया है, जिसे वे उगल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि यह बिल्कुल ही मुस्लिम विरोधी कानून नहीं है, बल्कि यह कानून राष्ट्र हित में है। शोषित पीड़ित अल्पसंख्यक शरणार्थियों के लिए है जो भारत में अपने जीवन स्तर बढ़ाना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि देश में एनआरसी के खिलाफ माहौल बनाने का प्रयास किया जा रहा है, यह बिल्कुल ही तथ्यहीन है और विद्यार्थी परिषद् की यह पुरानी मांग है। जब-जब देश में घुसपैठियों से लड़ने की बात होती है उनके खिलाफ प्रदर्शन की बात होती है तो विद्यार्थी परिषद सदैव आगे रहती है। 17 दिसंबर 2008 को बिहार के किशनगंज में एबीवीपी के 40,000 छात्रों ने विशाल प्रदर्शन कर बांग्लादेशी घुसपैठियों के खिलाफ विरोध दर्ज कराया था। असम में विद्यार्थी परिषद् ने घुसपैठियों के खिलाफ सबसे पहला प्रदर्शन किया था। अब उन्हीं लोगों को दिक्कत हो रही है जो इन घुसपैठियों के सहारे वोटबैंक की राजनीति करते हैं। अब उनकी राजनीति संकट में आ चुकी है इसलिए वे सीएए और एनआरसी जैसे मुद्दों के खिलाफ देशभर में प्रदर्शन कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हम भारत बनाने की बात करते हैं। सीएए राष्ट्रहित की एक नीति है और जो सत्ता देश के लिए काम करे उसका स्वागत है। उन्होंने कहा कि एपीजे कलाम के 2020 के वीजन को रोकने का काम मौजूदा दौर में कुछ लोग कर रहे हैं। सीएए महज नागरिकता देने का कानून नहीं है, बल्कि यह कानून तमाम शरणार्थियों के लिए है जिनके साथ अभीतक अन्याय होता आ रहा था। उन्होंने लोगों से शरणार्थी और घुसपैठियों में अंतर समझने की बात कही। उन्होंने कहा कि सीएए के माध्यम से शरणार्थी और घुसपैठियों में विशाल अंतर का पता चलता है। एनपीआर के विषय में उन्होंने कहा कि देशभर में नागरिकों का एक डाटा रजिस्टर होना चाहिए। देश में नागरिकों का डेटाबेस बनाने का कहीं से भी विरोध करना उचित नहीं है। उन्होंने कहा कि पहली बार इसमें 1955 में संशोधन हुआ था तो इसकी कोई तो वजह रही होगी।
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