इंडियनस्पिरिचुअलवर्ल्ड:घोर कलयुग में भी एक जगह है ,जहाँ केवल मिलेगें सत्यवादी.क्या इस घोर कलयुग में कोई सत्यवादी है ?आपके इस सवाल का जबाब है केवल बिहार के पास.जी हाँ, इस घोर कलयुग में जहाँ कोई सच नहीं बोलता.लेकिन बिहार में एक जगह है जहाँ कोई झूठ नहीं बोलता .बिहार के पूर्वी चंपारण के केसरिया प्रखंड के ढेकहां गांव चलिए.यहाँ धवलपीठ है.यहाँ मान्यता है कि भक्तों की हर मुराद पूरी होती है.लेकिन शर्त है कि यहाँ झूठ नहीं बोलना है.यहाँ पूजा पाठ की परंपरा बिलकुल अनोखी है. यहां ईश्वर से पहले गुरु की पूजा होती है.फिर देवी-देवताओं की आराधना. पूजा का यह विधान दो सौ साल पुराना है.अपनी मुरादें पूरी करने के लिए यहाँ दूर -दूर से लोग आते हैं.घोर कलयुग में भी एक जगह है ,जहाँ केवल मिलेगें सत्यवादी ,इहवा झूठ बोलल त गईल बेटा .
धवलपीठ में एक पीठाधीश हुआ करते थे.उनकी मृत्यु के बाद उनके पार्थिव शरीर की समाधि बनाकर पूजन व दर्शन की परंपरा यहाँ वर्षों से चली आ रही है. सबसे पहले धवल बाबा एवं कर्ता बाबा (दो सगे भाईयों ) की समाधि बनाई गई. इसके बाद उनके उत्तराधिकारियों के पार्थिव शरीर की समाधियां भी बनाई गईं. धवल एवं कर्ता बाबा के बाद जीवन दास बाबा, गिरधारी दास, अवध बिहारी बाबा, लक्ष्मी दास बाबा एवं कृष्णमोहन दास बाबा की समाधि बनाई गई. अभी प्रमोद दास बाबा उत्तराधिकारी हैं. वर्ष 2002-03 में तत्कालीन पीठाधीश बाबा कृष्णमोहन दास की पहल पर मूर्ति पूजा शुरू हुई. यहां शिवलिंग सहित अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं स्थापित हैं,लेकिन सबसे पहले पूजा इन गुरुओं की होती है.
घोर कलयुग में भी एक जगह है ,जहाँ केवल मिलेगें सत्यवादी ,इहवा झूठ बोलल त गईल बेटा .यहाँ लोग अपनी दोस्ती आजमाने आते हैं.दोस्तों की झूठ और सच समझने आते हैं.मान्यता है कि यहाँ कोई झूठ नहीं बोल सकता.अगर बोलेगा तो अनिष्ट का सामना उसे करना होगा.कोर्ट कचहरी में गीता कुरान पकी झूठी कसमे लोग खा सकते हैं लेकिन किसकी मजाल जो यहाँ खड़ा होकर झूठ बोल दे.इस स्थान को साक्षी मानकर किसी को गवाही देनी होती है तो धवलपीठ का नाम लेकर अपनी बात रखने को कहा जाता है.मान्यता है कि यहां पर बड़ी समस्याएं भी हल हो जाती हैं.अनिष्ट की आशंका से धवलपीठ के समक्ष कोई झूठ बोलने का साहस नहीं करता.
गुरु पूर्णिमा के दिन यहाँ मजमा लगता है.उस दिन धवल एवं कर्ता बाबा द्वारा इस्तेमाल की जानेवाली वस्तुओं का दर्शन कराया जाता है.धवल बाबा के खड़ाऊं, बर्तन जैसी इस्तेमाल की चीजें आज भी मौजूद हैं. इनके दर्शनमात्र के लिए लोग दूर दूर से आते हैं.यह लाखों लोगों के आस्था का केंद्र हैं.
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