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वर्ष 2019: मोदी सरकार का हिंदुत्व का अजेंडा, नए साल की चुनौतियाँ.

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वर्ष 2019: मोदी सरकार का हिंदुत्व का अजेंडा, नए साल की चुनौतियाँ.

सिटी पोस्ट लाइव : साल 2019 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा यादगार बना रहेगा. इस साल तीन तलाक़ कानून बनाकर , अनुच्छेद 370 को हटाकर , नागरिकता संशोधन क़ानून पारित कराकर मोदी सरकार ने डिफ़ॉल्ट रिसेट करने का काम किया है.कश्मीर से धारा 370 हटाकर उनकी सरकार ने लोक सभा चुनाव में जबर्दश्त जन-समर्थन हासिल किया. लेकिन साल के अंत में उनकी सरकार ने नागरिकता संशोधन क़ानून बनाकर देश भर में विपक्ष को विरोध-प्रदर्शन का मौका दे दिया. आने वाला नया साल नागरिकता क़ानून की ज़बरदस्त मुख़ालफ़त को लेकर प्रदर्शन वाला होगा.

विश्लेषक कहते हैं कि वर्ष 2019 को बीजेपी सरकार द्वारा अपने हिंदू राष्ट्रवाद के एजेंडे को अमली जामा पहनाने का साल माना जाएगा. लेकिन प्रधानमंत्री के लिए अगला साल भी चुनौतियों से भरा हो सकता है. साल 2020 भी हिन्दू राष्ट्र के एजेंडे को जारी रखने का साल साबित हो सकता है.सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड और धर्म परिवर्तन क़ानून ला सकती है. नरेंद्र मोदी की सरकार ने अपने  साढ़े पांच साल के कार्यकाल में भारतीय राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज में जो डिफ़ॉल्ट सेटिंग्स हैं, उसे बदलने का काम किया है.

साल 2019 दक्षिणपंथी राजनीति को देश की सियासत में अधिक वैधता, अधिक मान्यता और अधिक बल मिलने का साल रहा. “अनुच्छेद 370 का हटाया जाना, तीन तलाक़, नागरिकता संशोधन क़ानून और महाराष्ट्र में शिव सेना और कांग्रेस/राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सरकार जैसी इस साल की घटनाएं ये दर्शाती हैं कि दक्षिणपंथी राजनीति को देश में अधिक बल मिला है और अधिक जगह मिली है. वर्ष 2019 राष्ट्रवाद का वर्ष रहा  जिसमें शांति के बजाय आक्रामकता राष्ट्रवाद का केंद्र बिंदु बन गई.

“साल 2019 में तीन ऐसी घटनाएं हुई हैं जिनसे भारत की राजनीति और समाज में बदलाव आया. पहले वो घटनाएं थीं जिन्होंने हिंदुस्तान में राइट विंग पॉलिटिक्स को वैधता दी. आर्टिकल 370 का हटाया जाना और तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ क़ानून लाने जैसी घटनाओं से दक्षिणपंथी सियासत को वैधता मिली. ये काफ़ी बड़ा बदलाव है.दूसरा राष्ट्रवाद को पाकिस्तान के परिपेक्ष्य में बढ़ावा मिला. इसमें पुलवामा के बाद हुआ सर्जिकल स्ट्राइक शामिल है जिसने राष्ट्रवाद की परिभाषा बदली.अर्थव्यवस्था पर सभी बड़ी पार्टियों की ग़ायब होती असहमति भी साल 2019 की एकमात्र महत्वपूर्ण घटना रही जिसे सार्वजनिक तौर पर अधिक उजागर नहीं किया गया.”असहमति केवल मामूली चीज़ों पर रह गई. पार्टियां केवल इस बात पर सहमत न हो सकीं कि जीएसटी कितना प्रतिशत कम करना चाहिए. आर्थिक मामलों में सियासी पार्टियों में जो सहमति थी उसने संस्थागत रूप ले लिया.”

दिलचस्प सवाल ये है कि साल 2019 की सब से अहम घटना कौन थी जिसने देश की सियासत और समाज पर गहरा असर छोड़ा?

आदिल डार नामी एक स्थानीय युवक ने 14 फरवरी को जम्मू श्रीनगर हाइवे पर सुरक्षा कर्मियों को ले जाने वाले वाहनों के एक क़ाफ़िले पर आत्मघाती हमला किया. इस हमले में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के 40 जवानों की मौत हुई.डार का संबंध जैश-ए-मोहम्मद से बताया गया जिसके तार भारत सरकार के अनुसार पाकिस्तान की सरकार से जुड़े हुए हैं. पाकिस्तान स्थित जैश-ए-मोहम्मद ने हमले की ज़िम्मेदारी क़बूल की लेकिन पाकिस्तान सरकार ने भारत सरकार के इस इलज़ाम से इनकार किया कि हमले में इसका हाथ था.

26 फ़रवरी को भारतीय वायु सेना ने पाकिस्तान के अंदर बालाकोट में स्थित जैश के अड्डे पर हमला करके सैकड़ों मिलिटेंट्स को मारने का दावा किया.

पाकिस्तान ने अगले दिन जवाबी करवाई की जिसमें भारतीय वायु सेना का एक विमान मार गिराया गया जिसके पायलट विंग कमांडर अभिनंदन को पाकिस्तान ने हिरासत में ले लिया. अमरीका, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के हस्तक्षेप के बाद अभिनंदन को पाकिस्तान ने वापस भारत को लौटा दिया.

फ़रवरी से पहले बीजेपी और दूसरे सियासी दल आम चुनाव के लिए प्रचार शुरू कर चुके थे.कहा ये जा रहा था कि बीजेपी की हालत कुछ ठीक नहीं है.कांग्रेस के फिर से जीवित होने की बात कही जा रही थी और कहा जा रहा कि सत्ता में उसकी वापसी भागीदार पार्टियों के साथ मिल कर हो सकती है. लेकिन पुलवामा हमले और सर्जिकल स्ट्राइक ने हालात बदल दिए और पब्लिक मूड पूरी तरह से बीजेपी सरकार के पक्ष में जाता दिखाई दिया. अप्रैल-मई में हुए आम चुनाव में मोदी सरकार को सत्ता में लौटने के लिए भारी मैंडेट मिला. इसे मोदी 2 नाम दिया गया.कुछ विशेषज्ञों के अनुसार चुनाव में मिला ये भारी बहुमत बीजेपी सरकार के लिए ये इशारा था कि वो अपना हिंदू राष्ट्र का एजेंडा आगे बढाएं.

बीजेपी के मैनिफेस्टो में तीन तलाक़ को ख़त्म करना, जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 को हटाना और अयोध्या में मंदिर के निर्माण को शुरू करना शामिल था.पांच अगस्त को भारत सरकार ने संसद में नाटकीय तौर पर आर्टिकल 370 को ख़त्म करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रीय शासित राज्यों में बांटने की घोषणा करके सब को हैरान कर दिया.इस बारे में मंत्रिमंडल के सीनियर सदस्यों को भी जानकारी नहीं थी. देश ने इस बारे में सब से पहले अमित शाह के संसद भाषण में सुना.कश्मीर घाटी में लोगों को यक़ीन नहीं आया कि उनसे सलाह लिए बग़ैर सरकार ने इतना बड़ा फैसला ले लिया.

सरकार ने 31 अगस्त को एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी की जिसमें 19 लाख लोगों के नाम थे यानी 19 लाख लोग भारत के नागरिक नहीं रहे.इस पर असम में बवाल मच गया. एनआरसी में 19 लाख ‘अवैध’ शहरियों में से लगभग 13 लाख हिंदू थे.बाद में केन्द्र सरकार ने हिन्दुओं को आश्वासन दिया कि उन्हें देश से नहीं निकाला जाएगा लेकिन असम के लोगों का इसके प्रति विरोध प्रदर्शन अब भी जारी है.

सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या में मंदिर-मस्जिद की मिलकियत पर अपना इतिहासिक फ़ैसला सुनाया.फ़ैसले के अनुसार मंदिर बनाने के लिए कोर्ट ने मोदी सरकार को एक ट्रस्ट बनाने का आदेश दिया.अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि मुस्लिम पक्ष को एक मस्जिद के निर्माण के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी जाए. इस तरह से दशकों से चले आ रहे इस विवादास्पद मुद्दे का अंत हुआ. इस फ़ैसले को विशेषज्ञ मोदी सरकार के पक्ष में गया एक निर्णय मान रहे हैं.कहा जा रहा है कि इस फ़ैसले के बाद बीजेपी सरकार का मंदिर के निर्माण का वादा पूरा होता नज़र आता है.

नागरिकता संशोधन क़ानून  के पारित होने के बाद देश भर में इसका विरोध होने लगा और कई राज्यों में इस पर प्रदर्शन जारी हैं. इस क़ानून के आलोचक ये दावा कर रहे हैं कि ये संविधान के ख़िलाफ़ है और ये कि मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ भेदभाव की एक मिसाल है.मुस्लिम समुदाय के लोग भी सड़कों पर निकल आये हैं और उनका साथ हिन्दू और दूसरे समुदाय के लोग भी शामिल हैं. प्रदर्शन के दौरान भड़की हिंसा में अब तक 18 लोगों की जानें जा चुकी हैं. प्रदर्शन के दौरान ही केंद्र सरकार ने नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर यानी एनपीआर को अपडेट करने और जनगणना 2021 की शुरुआत करने को मंज़ूरी दे दी है. इसपर भी विवाद शुरू हो गया है और कुछ लोगों का कहना है कि ये देशभर में एनआरसी लाने का पहला क़दम है.

साल का अंत हो रहा है मोदी सरकार के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन और सियासी विरोध से.लेकिन मोदी सरकार ने ऐसे कोई संकेत नहीं दिए हैं कि वो अपने एजेंडे को छोड़ देगी. साल 2020 में सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड और धर्म परिवर्तन संबंधित बिल संसद में पारित कराने की कोशिश कर सकती है.लेकिन अगला साल अर्थव्यवस्था मोदी सरकार की असल चुनौती होगी और यही अगले वर्ष की सियासत को डिफाइन करेगा.

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