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झारखण्ड चुनाव परिणाम का बिहार की राजनीति पर गहरा असर

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झारखण्ड चुनाव परिणाम का बिहार की राजनीति पर गहरा असर

सिटी पोस्ट लाइव : हरियाणा और महाराष्ट्र के विधान सभा चुनाव में ख़राब प्रदर्शन के बाद अब बीजेपी की अग्नि परीक्षा झारखण्ड के विधान सभा चुनाव में होनी है. हरियाणा में तो किसी तरह से बीजेपी ने सरकार बना लिया लेकिन महाराष्ट्र में उसका सबसे भरोसेमंद साथी शिव सेना से संबंध टूट गया. झारखण्ड विधानसभा चुनाव के पहले ही बीजेपी अकेली हो चुकी है.आजसू अलग चुनाव लड़ रहा है. जेडीयू-एलजेपी भी मैदान में है. थोड़ी सी राहत उसके लिए इतना भर है कि विपक्ष भी उसके खिलाफ गोलबंद नहीं हो पाया है.

झारखंड चुनाव (Jharkhand Election) परिणाम का बिहार में भी गठबंधन पर असर पड़ना तय है. झारखंड का चुनाव बीजेपी और एनडीए दोनों के लिए ही अहम माना जा रहा है. अगर बीजेपी के आशा के अनुरूप परिणाम आए तो बिहार में उसके ऊपर सहयोगी दलों का दबाव कम होगा .अगर परिणाम अनुकूल नहीं आया तो सहयोगी दलों का दबाव इस कदर बढ़ सकता है जो गठबंधन को ही खतरे में डाल देगा.

बिहार में जेडीयू फ्रंट फूट पर बैटिंग कर रही है. यह भी माना जा रहा है कि उसने झारखंड और दिल्ली में एनडीए से अलग रहकर लड़ने का इसलिए फैसला किया कि बिहार चुनाव में वह बीजेपी से बारगेनिंग कर सके और अधिकाधिक सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर सके. अगर परिणाम बीजेपी के मनोनुकूल नहीं आए तो यह साफ है कि जिस तरह से बीजेपी अब तक केंद्र में अनुच्छेद 370, 35 ए और ट्रिपल तलाक जैसे विवादित मुद्दों पर बेधड़क आगे बढ़ पाई, लेकिन आगे से वह मनमानी नहीं कर पायेगी.रविवार को दिल्ली में हुई एनडीए की बैठक में जिस तरह से लोक जन शक्ति पार्टी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने एनडीए में को-ऑर्डिनेशन कमेटी बनाने की मांग की है, इससे साफ है कि छोटी पार्टियां अब दबाव बनाने में जुट गई हैं.

कि वर्ष 2014 में  कई राज्यों के कुछ हिस्सों में प्रभाव रखने वाले छोटे-छोटे दलों के सहयोग से बड़ी सफलता हासिल की थी. लेकिन, अब यही दल या तो एनडीए से बाहर आ गए हैं या फिर नाराज चल रहे हैं. झारखंड में आजसू और यूपी में अपना दल के साथ ऐसी ही स्थिति सामने आई है.बिहार के कुछ इलाकों में सीमित प्रभाव रखने वाली एलजेपी ने झारखंड में 50 उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर अपने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं. जेडीयू पहले से दबाव बना रही है. हालांकि यह सब फिलहाल बिहार में सीटों की दावेदारी को लेकर अधिक है. ऐसे में झारखंड का चुनाव परिणाम बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है.

आजसू, जेडीयू, एलजेपी से अलग लड़ रही बीजेपी अगर अपने दम पर ही झारखंड में सफलता हासिल करने में कामयाब रहती है तो छोटे दलों के ऊपर वह हावी हो जायेगी.लेकिन बीजेपी के मनोबल बढ़ जाने से जेडीयू के अलग हो जाने का खतरा भी बढ़ जाएगा.जेडीयू हमेशा बिहार में बीजेपी से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ता रहा है.पहलीबार लोक सभा चुनाव में दोनों दल बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़े.लेकिन उस समय जेडीयू के पास केवल दो सांसद थे.विधान सभा चुनाव में ज्यादा विधयक होने की वजह से जेडीयू बीजेपी से ज्यादा सीटें मांगेगी क्योंकि उसे पता है बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने पर मुख्यमंत्री की कुर्सी छिटक सकती है.बराबर बराबर सीटों पर चुनाव लड़ने की स्थिति में अगर पांच सीट भी बीजेपी को ज्यादा आया तो वह एलजेपी को साथ लेकर मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए जेडीयू पर दबाव बना सकती है.

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