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तोरपा विस क्षेत्रः पिछड़ापन और पलायन मुख्य चुनावी मुद्दा

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तोरपा विस क्षेत्रः पिछड़ापन और पलायन मुख्य चुनावी मुद्दा

सिटी पोस्ट लाइव, खूंटी: खूंटी ने वह दौर भी देखा है, जब खुलेआम चुनाव बहिष्कार का आह्वान होता था। कहीं किसी राजनीतिक दल का न बैनर-पोस्टर और न ही चुनाव प्रचार। एक खास दल के आलावा अन्य सभी राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों और उनके समर्थकों की इंट्री बंद। खैर, अब स्थिति बदल चुकी है। जिले में नक्सलवाद और उग्रवाद की कमर लगभग टूट चुकी है। इसलिए विधानसभा चुनाव में नक्सलवाद या उग्रवाद कोई चुनावी मुद्दा नहीं रहा। हां, इतना तय है कि विकास, पलायन, बेरोजगारी जैसी बुनियादी समस्याएं चुनावी मुद्दा बनेंगी। खूंटी जिले में विधानसभा की दो सीटें आती हैं- खूंटी और तोरपा। दोनों सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। खूंटी विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व पिछले चार बार से वर्तमान ग्रामीण विकास मंत्री नीलकंठ सिंह मुंडा करते आये हैं। उन्होंने कभी हार का मुंह नहीं देखा। इसबार भी पार्टी ने उन्हें मैदान में उतारा है। जिले के लोग भी स्वीकार करते हैं कि नीलकंठ सिंह मुंडा के कार्यकाल में खूंटी का काफी विकास हुआ है। सड़क, पुल-पुलिया, बिजली सहित अन्य क्षेत्रों में विकास कार्य धरातल पर नजर आते हैं, लेकिन तोरपा विधानसभा क्षेत्र में विकास की वो रफ्तार नहीं है, जो खूंटी विधानसभा की है। तोरपा सीट से झामुमो के पौलुस सुरीन दो सत्र से विधायक हैं, पर आरोप है कि उन्होंने क्षेत्र के विकास पर विशेष ध्यान नहीं दिया। उनपर एक खास सुमदाय के लिए काम करने के आरोप भी लगते रहे हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो आजादी के बाद से अबतक तोरपा इलाके में न कोई कॉलेज खुला (एक अल्पसंख्यक कॉलेज को छोड़कर) और न ही युवाओं के रोजगार के अवसर बढ़े। कृषि क्षेत्र भी सिंचाई और अन्य बुनियादी समस्याओं से जूझता रहा। बिजली की भी वहीं स्थिति है। अब भी सैकड़ों गांवों के लोग ढिबरी युग में जी रहे हैं। कुछ गांवों में बिजली पहुंची तो है, पर जलती भगवान भरोसे ही। जानकार बताते हैं कि इस चुनाव में तोरपा विधानसभा क्षेत्र में विकास एक बड़ा मुद्दा होगा।

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