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छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान करने से पहले ये जानकारी जरुरी है

सौम्य और स्थिर योग में चार दिवसीय छठ महापर्व 31 अक्टूबर से शुरू, जानें पूजन से जुड़ी खास बातें.

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छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान करने से पहले ये जानकारी जरुरी है.

सिटी पोस्ट लाइव : लोकआस्था के महापर्व छठ का चार दिवसीय अनुष्ठान नहाय-खाए से कार्तिक शुक्ल चतुर्थी गुरुवार 31 अक्टूबर से शुरू हो चूका है. बिहार में इस पर्व को लेकर गंगा घाटों पर आज नहाय-खाय के साथ अनुष्ठान की शुरुवात करने पहुंचे व्रतधारियों का उत्साह देखने लायक था.छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्यदेव की उपासना का पर्व है. गंगा घाटों व पवित्र नदियों में लाखों की तादाद में व्रती अर्घ्य देते हैं. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ को सूर्य देवता की बहन हैं. मान्यता है कि छठ पर्व में सूर्योपासना करने से छठ माई प्रसन्न होती हैं और घर परिवार में सुख शांति व धन धान्य से संपन्न करती हैं.

पहली को खरना और 2 को सायंकालीन अर्घ्य

शुक्रवार 1 नवंबर  को खरना और शनिवार की शाम 2 नवंबर को भगवान भास्कर को पहला सायंकालीन अर्घ्य प्रदान किया जाएगा. कार्तिक शुक्ल सप्तमी रविवार 3 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य के साथ महापर्व का समापन होगा. इस व्रत में 36 घंटे तक व्रती निर्जला रहते हैं.

सौम्य और स्थिर योग में अनुष्ठान की शुरुआत .

सौम्य और स्थिर योग में चार दिवसीय छठ महापर्व की शुरुआत हो गई है. आदित्य ह्रदय और रावण संहिता के अनुसार रविवार को सप्तमी तिथि में सूर्य का प्रभाव एक हजार गुणा अधिक होगा. इस तिथि को गंगा स्नान मात्र से शरीर के सारे कष्टों का नाश हो जाएगा और सौ अश्वमेघ यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होगी.

छठ महापर्व:-नहाय -खाय: 31 अक्टूबर ,खरना: एक नवंबर ,सायंकालीन अर्घ्य: 2 नवंबर, प्रात:कालीन अर्घ्य: 3 नवंबर और सायंकालीन अर्घ्य : शाम 5:35 बजे दिया जाएगा.

साल में दो बार छठ महापर्व.

सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है. चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है. हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है.  चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है.

छठ पूजा का पहला दिन नहाय खाय. छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ हो चुकी है. आज व्रती गंगा स्नान कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं. व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं.

छठ पूजा का दूसरा दिन खरना.

 कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है. शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं. इसे खरना कहा जाता है. इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है. शाम को चावल व गुड़ से खीर बनाकर ग्रहण किया जाता है. नमक व चीनी का इस्तेमाल नहीं किया जाता. चावल का पिठ्ठा व घी लगी रोटी भी ग्रहण करने के साथ प्रसाद के रूप में वितरीत की जाती है.

प्रकृति को निमित है सूर्य को पहला अर्घ्य.

पहला अर्घ्य यानी अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य प्रकृति को निमित है. प्रकृति, षष्ठी माता हैं. भगवान ब्रह्मा की मानसपुत्री नि:संतान को संतान देती हैं और संतान की रक्षा करती हैं. कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह प्रात:कालीन अर्घ्य भगवान सूर्य को प्रदान किया जाता है. अर्घ्य प्रदान करने के दौरान व्रती सात बार सूर्य की परिक्रमा भी करते हैं. शास्त्रों की मानें तो सूर्य को अर्घ्य देने से व्यक्ति के इस जन्म के साथ किसी भी जन्म में किए गए पाप नष्ट हो जाते हैं.

आरोग्य की प्राप्ति व संतान के लिए व्रत.

सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति,सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है. स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था. उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था. भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था. स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है. वर्षकृत्यम में भी छठ की चर्चा है.

भगवान भास्कर की मानस बहन है षष्ठी देवी .

अथर्वेद के अनुसार भगवान भास्कर की मानस बहन हैं षष्ठी देवी.  प्रकृति के छठे अंश से  षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं. उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है. बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है.इससे बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाते हैं.एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी. षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा जाता है.

 सूर्य को प्रिय है सप्तमी.

भगवान सूर्य को सप्तमी अत्यंत प्रिय है. विष्णु पुराण के अनुसार तिथियों के बंटवारे के समय सूर्य को सप्तमी तिथि प्रदान की गई. इसलिए उन्हें सप्तमी का स्वामी कहा जाता है. सूर्य भगवान अपने इस प्रिय तिथि पर पूजा से अभिष्ठ फल प्रदान करते हैं.

अर्घ्य के सामानों का महत्व.

अर्ध्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है. सूप से वंश में वृद्धि होती है और वंश की रक्षा भी.

ईख:- ईख आरोग्यता का प्रतिक  है.

ठेकुआ:- ठेकुआ समृद्धि का प्रतिक है.

मौसमी फल:- मौसम के फल ,फल प्राप्ति के प्रतिक हैं.

कद्दू खाने से कई बीमारियां खत्म होतीं.नहाए-खाए के दिन खासतौर पर कद्दू की सब्जी बनायी जाती व व्रती इसे ग्रहण करते हैं. कद्दू में पर्याप्त मात्रा में जल रहता है. लगभग 96 फीसदी पानी होता है. इसे ग्रहण करने से कई तरह की बीमारियां खत्म होती हैं. वहीं चने की दाल भी ग्रहण किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि चने की दाल बाकी दालों में सबसे अधिक शुद्ध है.

 अर्घ्य से जुडी कुछ ख़ास बैटन पर ध्यान देना बहुत जरुरी होता है.ताम्बे के पात्र में दूध से अर्घ्य नहीं देना चाहिए.पीतल के पात्र से दूध का अर्घ्य देना चाहिए.चांदी,स्टील,शीशा व प्लास्टिक के पात्रों से भी अर्घ्य नहीं देना चाहिए.पीतल व ताम्बे के पात्रों से अर्घ्य प्रदान करना चाहिए.

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