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“विशेष” : आजीवन कारावास के सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन का नया अवतार

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“विशेष” : आजीवन कारावास के सजायाफ्ता पूर्व सांसद आनंद मोहन का नया अवतार

सिटी पोस्ट लाइव “विशेष” : एक सजायाफ्ता राजनेता अब कवि,कथाकार और साहित्यकार हो चुके हैं। सी. बी. एस. ई के आठवें क्लास की हिंदी की नयी पुस्तक है जिसके एक अध्याय के लेखक हैं पूर्व सांसद आनंद मोहन…..पुस्तक का नाम है मधुरिका हिंदी पाठमाला….आनंद मोहन के लिए कभी दबंग, तो कभी बाहुबली, तो कभी क्रांतिवीर और कभी रॉबिन हुड की संज्ञा. लेकिन अब एक नया अवतार. आनंद मोहन को अब एक लेखक के रूप में देश भर के बच्चे जानने लगे हैं. इस पुस्तक में जो आलेख या फिर निबंध है उसका नाम है पर्वत पुरुषः दशरथ….फिलवक्त ये लेखक गोपालगंज के पूर्व जिलाधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में सहरसा के मंडल कारा में उम्र कैद की सजा काट रहे है.

सबसे पहले मै आपको इनका जरा परिचय करवा दू .इनका जन्म 26 जनवरी 1956 में एक स्वतंत्रता सैनानी परिवार (सहरसा जिला के पंचगछिया स्थित) में हुआ. शुरूआती दिनों में आनंद मोहन पहले के सहरसा जिला और अब सुपौल जिला के त्रिवेणीगंज प्रखंड स्थित अपने ननिहाल मानगंज गाँव में रहते थे. वहीँ से वे जे.पी के सम्पूर्ण क्रांति में कूद पड़े और त्रिवेणीगंज में पुलिस फायरिंग का जमकर विरोध किया. इसमें कुछ उनके छात्र साथी भी पुलिस की गोली लगने से मारे गए. उन शहीद साथियों का इन्होनें शहीद स्मारक बनवाया. इन सबके बीच इन्होनें अपने सम्पादन में ” क्रान्ति दूत” नाम का एक साप्ताहिक अख़बार भी प्रकाशित करना शुरू किया. जब 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनी और तत्कालीन प्रधानमंत्री मुरारजी देसाई का सहरसा आगमन हुआ तो सैद्धांतिक मतभेदों के कारण इन्होने, उन्हें काला झंडा दिखाया. बाद में चलकर त्रिवेणीगंज विधानसभा से चुनाव भी लड़े,लेकिन पराजित हुए.


इस क्रम में इनपर कई राजनीतिक और अपराधिक मुकदमे दर्ज हुए और इन्हें देखते ही गोली मारने का वारंट भी जारी हुआ. उस वक्त आनंद मोहन को लोग रोबिन हुड की छवि के रूप में जानने लगे थे. वर्ष 1983 में पूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिंह का आगमन सहरसा में हुआ और पूर्व से तय कार्यक्रम के मुताबिक़ दस लाख से अधिक भीड़ की मौजूदगी में आनंद मोहन ने उनके समक्ष आत्मसमर्पण किया. इस आत्मसमर्पण में दिवंगत समाजवादी पुरोधा और शलाका पुरुष उमेश प्रसाद सिंह का विराट योगदान था. दिवंगत उमेश प्रसाद सिंह देश के ख्यातिलब्ध शिक्षाविद, अंग्रेज और हिंदी साहित्यकार के साथ-साथ प्रखर पत्रकार थे. बाद में चलकर, आनंद मोहन न्यायालय से बड़ी हुए.

1990 के विधानसभा चुनाव में तत्कालीन कॉंग्रेस के कद्दावर नेता लहटन चौधरी को सहरसा जिले के महिषी विधानसभा से रिकॉर्ड 63,000 मतों से पराजित कर आनंद मोहन ने अपनी पहली राजनीतिक उपस्थिति दमदार तरीके से दर्ज करायी. फिर इन्होंने अलग से अपनी पार्टी “बिहार पीपुल्स पार्टी” के नाम से बनाई और वे शिवहर से सांसद चुने गए.लगातार तीन वार शिवहर से वे सांसद रहे. 1994 में इनके एक साथी मुजफ्फरपुर के नेता छोटन शुक्ला की हत्या हो गयी. आनंद मोहन मृतक छोटन शुक्ला की दिवंगत आत्मा की शांति के लिए पत्नी लवली आनंद के साथ मृतक के पैतृक गाँव गए और प्रिजनोंओं को ढांढ़स बंधाया और वहां से निकल पड़े. इधर मृतक की अर्थी जुलूस नुकाली गयी जिसमें लालबत्ती गाड़ी को देख भीड़ बेकाबू हो गयी और उस पर टूट पड़ी.

उसमे बैठे गोपालगंज के तत्कालीन जिलाधिकारी जी कृष्णैया की पीट-पीट कर हत्या कर दी गयी. इस हत्या का आरोप आनंद मोहन पर लगा, जबकि घटना के समय वे घटनास्थल पर मौजूद नहीं थे. इस हत्या के आरोप में आनंद मोहन हाजीपुर से गिरफ्तार कर लिए गए. निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक मामला चला और पूर्व सांसद को उम्र कैद की सजा हो गयी. बीते कई वर्षों से आनंद मोहन सहरसा जेल में बंद है.सहरसा जेल के अंदर के कालखंड को आनंद मोहन ने अंतस से उपयोग किया और एक नए कवि और लेखक आनंद मोहन का जन्म हुआ. जेल डायरी, कैद में आजाद कलम, स्वाधीन कलम और काल कोठरी नाम से इनकी पुस्तक प्रकाशित हुई है,जिसकी चर्चा देश स्तर पर होती रही है.

इनके इतिहास की कड़ी को थोड़ा और आगे बढ़ाएं तो इनकी शादी सहरसा जिले के अतलखा गाँव के महान स्वतंत्रता सैनानी माणिक प्रसाद सिंह की पुत्री लवली आनंद से 13 मार्च 1991 को हुयी. आनंद मोहन ने अपने राजनीतिक प्रभाव से अपनी पत्नी को दो बार विधायक और एक बार सांसद बनाया. आनंद मोहन के दादा राम बहादुर सिंह देश के चर्चित स्वतंत्रता सेनानियों में से एक थे. आजादी से पूर्व आनंद मोहन के घर महात्मा गांधी,राजेन्द्र प्रसाद, विनोबा भावे से लेकर जे.बी.कृपलानी तक का आना-जाना रहा. हालिया वर्षों की बात करें तो पूर्व प्रधानमन्त्री चंद्रशेखर और पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत तक आनंद मोहन के घर आ चुके हैं. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने भी आनंद मोहन के घर जाकर अपनी हाजिरी लगाई है.

कोसी-सीमांचल सहित बिहार के बुद्धिजीवियों में इस बात की खुशी है की देश के पाठ्यक्रम में इतने बड़े कवि और लेखकों के बीच आनंद मोहन को भी शामिल किया गया है.जाहिर तौर पर आनंद मोहन के चाहने वालों में काफी खुशी है. आनंद मोहन के समर्थक कहते हैं की आनंद मोहन ने अपनी लेखनी से साहित्कारों के बीच एक दमदार उपस्थिति दर्ज की है.जिस व्यक्ति के बिषय में विरोधियों ने बहुत तरह की बातें फैलाई और उनको हमेशा बाहुबली ही घोषित किया लेकिन गद्य एवं पद्य के माध्यम से जो उपस्थिति उन्होंने दर्ज की है और उनके लिखे हुए गद्य का सी.बी एस. ई में प्रविष्ट होना,उनके विरोधियों को करारा जवाब है. बेशक,कहानी और कविता के माध्यम से आनंद मोहन ने जेल के भीतर अपने एक-एक पल को जिया है.

बुद्धिजीवी कहते हैं की जिस पाठ्यक्रम में इतने बड़े-बड़े साहित्कारों की रचनाओं का संग्रह किया गया है उसमे आनंद मोहन की गद्य रचना का आना बड़ी बात है.आनंद मोहन की गद्य रचना किस स्तर की होती है, ये इसका ही एक प्रमाण है ।ये बड़ी उत्कृष्ट खासियत है की आनद मोहन ने जेल की काल कोठरी में रहकर भी ऐसी रचना लिखी है. देश के जाने माने वयोवृद्ध पत्रकार यू.एन.मिश्रा भाव–विह्ववल हैं और आनंद मोहन की इस गद्द और पद्द यात्रा को श्रेष्टतम यात्रा करार रहे हैं. बड़े बेबाक लहजे में इनका कहना है की आनंद मोहन अब साहित्यिक इतिहास की धरोहर बन चुके हैं.ओमप्रकाश नारायण यादव,प्रियदर्शी पाठक, दिनेश प्रसाद सिंह,सुरेश सिंह और रमेश प्रसाद सिंह,ध्यानी यादव,पवन राठौर,राजीव सिंह,अजय कुमार सिंह “बबलू” जैसे आनंद मोहन के समर्थक कोसी इलाके में घूम-घूमकर आनंद मोहन की इस बेहद खास छवि से लोगों का परिचय करा रहे हैं.

इनलोगों का समवेत कहना है की आनंद मोहन के भीतर की संवेदना सदैव जागृत रही है और साहित्य में इनका यह स्थापन, उसी का फलाफल है.पूर्व सांसाद आनंद मोहन ने खास बातचीत में कहा की जेल के भीतर उन्होनें निर्गुण में शगुन तलाशने की कोशिश की है. उन्होनें तल्ख तेवर में कहा की राजनीतिक साजिश के तहत मैं जेल में बंद हूँ.और जिनलोगों ने यह सोचा की आनंद मोहन को सजा कराकर अभिशाप के तौर उन्हें अभिशप्त कर दिया है,उस अभिशाप को मैंने वरदान में बदलने की कोशिश की है. उन्होनें कहा की उनके लिए काफी हर्ष का क्षण है और घर के लोगों से लेकर तमाम उनके समर्थक तक काफी खुश हैं. इनकी नजर में राजनीति पर जबतक साहित्य की छाँव रही, राजनीति निर्मल रही.

लेकिन आज राजनीति बेईमानी और गंदगी का ना केवल पर्याय बन चुकी है बल्कि राजनीति निष्ठुर हो गयी है.साहित्य के दायरे में आगे राजनीति जब आएगी तब वह राजनीति पुरुषार्थ की होगी. मंडल कारा में कैद पूर्व सांसद आनंद मोहन द्वारा लिखित नई पुस्तक “गाँधी” (कैक्टस के फूल) का लोकार्पण आगामी नवम्बर माह में बिहार के पटना के ‘रविन्द्र भवन’ के सभागार में होना तय हुआ है लेकिन इसकी तिथि की अभी घोषणा नहीं की गयी है. इस लोकार्पण समारोह में देश के जाने-माने कई गांधीवादी चिंतक, प्रखर और मूर्धन्य साहित्यकार, लेखक,शायर,राजनेता सहित कई गणमान्य लोगों के उपस्थित रहने के कयास लगाए जा रहे हैं .

पूर्व सांसद आनंद को लेकर सबसे अहम जानकारी हमारे पास यह है कि पूर्व सांसद आनंद मोहन आजीवन कारावास के सजायाफ्ता हैं और अब उनकी सजा लगभग पूरी हो चुकी है ।राजनीतिक जानकारों का मानना है कि आनंद मोहन जैसे ही जेल से बाहर निकलेंगे बिहार सहित देश की राजनीतिक हवा बिल्कुल बदल जाएगी. यह सभी को पता है कि आनंद मोहन सवर्णों से लेकर सर्वसमाज के बीच गहरी पैठ रखते हैं और उनका बड़ा जनाधार है. पूर्व सांसद आनंद मोहन के जेल से बाहर निकलने का इंतजार लगभग तमाम राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ कई बड़े राजनीतिक सुरमा नेताओं को है. हमें भी उनके जेल से बाहर आने का इंतजार है.

पीटीएन न्यूज मीडिया ग्रुप के सीनियर एडिटर मुकेश कुमार सिंह की “विशेष” रिपोर्ट

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