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तीन किता की मालकिन है,लेकिन तरस रही है अदद एक रोटी और चौकी के लिए

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सिटीपोस्टलाइव: बूढ़े माँ-बाप की सेवा करना ,उनकी देखभाल करना और उनकी तमाम जिम्मेवारियां संभालना बच्चों के लिए केवल सामाजिकरूप से ही नहीं बल्कि कानूनन भ जरुरी है.सरकार इस  कानून को और भी ज्यादा सख्त बनाने जा रही है.तीन महीने की सजा को बढाकर 6 महिना किये जाने का प्रावधान मोदी सरकार करने जा रही है. कानून तो पहले से भी है लेकिन फिर भी और कड़े कानून बनाने की दरकार सरकार को महसूश हो रही है .लेकिन जब सरकार के मुलाजिमों के पास ऐसे कानून के पालन करवाने के लिए फुर्सत ही नहीं हो,तो फिर भला  क्या नतीजा निकलने वाला है इस कड़े कानून का.पटना में ऐसा ही एक तीन किता की मालकिन की कहानी सामने आई है .

बिहार की राजधानी में एक ऐसा ही मामला सामने आया है.एक 75 साल की मां जो पटना में तीन किता मकान की मालकिन है एक रोटी के लिए तरस रही है.उसके सर पर एक छप्पर और सोने के लिए एक अदद चौकी भी नसीब नहीं है.

kankarbagh .

पटना के कंकडबाग के हनुमान नगर ड्रेनेज मोड़ पर तीन किता की मालकिन रेशमी देवी रहती है. तीन किता की मालकिन  मतलब करोडपति .लेकिन उसकी हालत एक भिखारिन से भी बदतर है.उसकी इस हालत के लिए कोई और नहीं बल्कि उसका अपना ही मझला बेटा  गोपाल साव जिम्मेवार है. पति की मौत के बाद से ही इस कलयुगी बेटे ने अपनी मां को दो जून की रोटी के लिए तरसा दिया है. जब अपना बेटा जुल्मी बन जाए तो भगवान् ही इस बुढापे में मालिक रह जाता है.

बेटे ने मां की सम्पति पर कब्ज़ा तो जमा ही चूका है साथ ही उसके साथ जैसा  क्रूर व्यव्हार कर रहा है ,वह रोंगटे खड़ा कर देने वाला है .इस महिला की हालत देखने के बाद तो कोई मां बाप बेटा पैदा करने से भी तौबा कर लेगा. खाने के एक-एक दाने के लिए भी मोहताज़ है यह महिला. तीन किता की मालकिन के पास सोने के लिए एक चौकी भी नसीब नहीं है. माता रेशमी देवी जमीन पर सोने को मजबूर हैं.इनको इन्साफ दिलाने के लिए एक सामाजिक कार्यकर्त्ता  सह नागरिक अधिकार मंच के महासचिव रमेश कुमार चौबे जब आगे आये तो उन्हें भी मह्सुश होने लगा कि इस माता को इन्साफ दिला पाना आसान काम नहीं है.

रमेश कुमार चौबे ने इस अत्याचारी बेटे के खिलाफ और इस बेवश तीन किता की मालकिन माता को न्याय दिलाने के लिए हर प्रशासनिक अधिकारियों से गुहार लगाईं .अनुमंडलाधिकारी सदर अनुमंडल पटना के पास परिवाद दाखिल किया .माता पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का  भरण पोषण तथा कल्याण अधिनियम 2007 के अंतर्गत मामला दर्ज कराया .यहाँ से तीन तीन बार आदेश भी पारित हुए  लेकिन उसके पालन करने के लिए थानेदार तैयार ही नहीं.वाद संख्या 10/2016 में अब तक तीन आदेश पारित हुए हैं बावजूद पारित आदेशों का कार्यान्वयन थानाध्यक्ष पत्रकार नगर ने करने से साफ़ मना कर दिया है. थानाध्यक्ष और अनुमंडलाधिकारी दोनों  कोर्ट के आदेश पर कारवाई नहीं हो पाने के लिए एक दुसरे को जिम्मेवार ठहरा रहे हैं.थाना प्रभारी का कहना है कि “अनुमंडल दंडाधिकारी  आदेश पारित करते रहते हैं,लेकिन उनके पास इन आदेशों के पालन के लिए समय नहीं है.थानेदार तो यहाँ तक कहता है कि जब इस मामले में दंडाधिकारी ही कुछ नहीं कर रहे हैं, ऐसे में एक थानेदार से मदद की अपेक्षा रखना बेवकूफी है.थक हार कर रमेश चौबे ने  सिटीपोस्ट लाईव से समपर्क किया .सिटीपोस्ट लाईव की टीम इस बेवश माता की लड़ाई को जबतक अंजाम तक नहीं पहुंचा लेगी तबतक शांत नहीं बैठेगी.

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