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ऐसे नारों की जरुरत क्यों पड़ रही है नीतीश कुमार को, सार समझिये

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ऐसे नारों की जरुरत क्यों पड़ रही है नीतीश कुमार को, सार समझिये

सिटी पोस्ट लाइव : जिस तरह से एक सप्ताह के अंदर जेडीयू के दो चुनावी नारे एक के बाद एक सामने आये हैं, उससे साफ़ है कि इस नारे का खास मकसद है. सवाल ये उठ रहा है कि आखिरकार JDU को इस नारे की जरुरत क्यों पडी. जिस तरह से पहला नारा आया “क्यों करें विचार ,ठीके तो है नीतीश कुमार, उससे तो यहीं संदेश जाता है कि सहयोगी दलों की तरफ से नीतीश कुमार के नेत्रित्व पर सवाल उठाया जा रहा है या फिर परिवर्तन की मांग उठ रही है.ठीके है शब्द का जिस तरह से नारे में इस्तेमाल किया गया इससे भी तो यहीं संदेश जाता है कि कामचलाऊ हैं नीतीश कुमार .इस “ठीके है” वाले पोस्टर को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की तरफ से सवाल उठाये गए.

विपक्ष के सवालों के बाद JDU ने अपने नारे में एकबार फिर से बदलाव कर दिया है. JDU ने नीतीश कुमार (Nitish Kumar) को लेकर अपना नारा बदल लिया है. पहले JDU ने नीतीश कुमार को लेकर जो नारा दिया था वो था “क्यों करें विचार, जब ठीके तो है नीतीश कुमार” लेकिन अब जो नारा दिया गया है वो है “क्यों करें विचार जब है ही नीतीश कुमार”.इस नारे से भी यहीं संदेश जाता है है कि गठबंधन में जबतक नीतीश कुमार हैं, वहीँ मुख्यमंत्री रहेगें. उनके रहते दुसरे नाम पर विचार की जरुरत नहीं है. जाहिर है ये संदेश भी विपक्ष के लिए नहीं बल्कि सहयोगी दलों के लिए ही है.

सवाल ये भी उठ रहा है कि पिछले विधानसभा चुनाव में जो JDU का स्लोगन था ‘बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार है’, उसे बदलने की जरुरत क्यों मह्सुश हुई. क्या JDU के अंदर नीतीश कुमार के नेत्रित्व को लेकर वो आत्म-विश्वास नहीं है, जो पिछले विधान सभा चुनाव में था. क्या अब JDU को ये नहीं लगता कि बिहार में अभी भी बहार है.दूसरा नारा भी JDU ने दिया था- सच्चा है ,अच्छा है चलो नीतीश के साथ” लेकिन इसे भी क्यों JDU ने जारी नहीं रखा?

 

 

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