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तबाही के मुहाने पर खड़ा है पटना, अभी नहीं चेते तो मिट जायेगी हस्ती

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सिटीपोस्टलाईव:( कनक कुमार ) बिहार की राजधानी पटना  तबाही के मुहाने पर खड़ा है. आसपास की नदियों में पानी नहीं है.गंगा नाले में तब्दील हो चुकी है,पुरखों की प्यास बुझाने वाले तालाब या तो सुख चुके हैं या फिरु उनके ऊपर बहुमंजिली ईमारतें खडी हो गईं हैं.तालाब और छोटे मोटे जलाशय की बात कौन करे,पटना के लोगों ने तो गंगा के सीने पर बहुमंजिली ईमारते खडी कर दी है. शहरी विकास की होड़ में नदियों,तालाबों (जलाशयों ) की दी जार रही बलि पटना को तबाही के मुहाने पर खड़ा कर चुकी है .

पटना के जिले में 1005 जलाशयों में कोई ऐसा नहीं, जिसमें की गई खुदाई के बाद जल सचित हो सके.आम लोग तो दूर गर्मी के दिनों में इन जलाशयों में पशु-पक्षियों को प्यास बुझाने के लिए इनमें पानी नहीं रहता. आस्था के महापर्व छठ के अवसर पर तालाब, सरोवर और नदी का महत्व सबसे अधिक हो जाता है. बावजूद एक-एक कर तालाबों और जलाशयों का अस्तित्व समाप्त होता गया और किसी ने इसे बचाने की फिक्र नहीं की.गंगा पटना से तीन किलोमीटर दूर भाग चुकी है.

आम आदमी ही जलाशयों के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहा.सरकार भी वहीँ कर रही है. फुलवारीशरीफ में करीब 35 एकड़ के तालाब को भरकर एम्स का निर्माण करा दिया गया. तारामडल, नेताजी सुभाष पार्क, इको पार्क, दरोगा प्रसाद राय रोड में विधायक आवास, खाद्य निगम कार्यालय, बिस्कोमान कॉलोनी, रेलवे सेंट्रल अस्पताल, सदलपुर सहित कतिपय कॉलोनी शहर के बीच तालाबों को भर कर बसा दिए गए.पटना महानगर प्लान क्षेत्र नौबतपुर से फुलवारीशरीफ और दानापुर प्रखड में सोन नहर से 70 के दशक तक सालभर मासी फसल उपजाई जाती थी.बिहटा और मनेर सोन नहर के पानी से खेती होती थी. शहर के विस्तार में खगौल से दीघा तक मुख्य सोन नहर के बीच में दीघा-एम्स एलिवेटेड रोड बन रहा है. दानापुर कैंट से लेकर नरगदा, उसरी, सरारी, जमालुद्दीनचक और कुर्जी महमदपुर तक नहर पर पक्का मकान बन गए. बिहटा प्रखड के जमुनापुर से आगे आइटीआइ सहित कई फैक्ट्रिया बन रही हैं. बिहटा, श्रीरामपुर, गोकुलपुर, कोरहर, आनदपुर कैंट से लेकर मनेर नहर अवैध कब्जे का शिकार हो गया.

पटना के दक्षिण हिस्से में सबसे बड़े जल स्रोत  बादशाही नाला कभी हुआ करता था .फुलवारीशरीफ प्रखड के गोनपुरा गाव से शुरू होकर सपतचक प्रखड के विभिन्न पचायतों से होते फतुहा के पास पुनपुन नदी में जाकर यह मिल जाता है. पटना नगर निगम 2009 से इसकी उड़ाही कराते आ रहा है लेकिन इसके अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है .अगमकुआ में शीतला मदिर के पास कभी राम कटोरा तालाब हुआ करता था. इसी तरह रामपुर तालाब, गोनसागर तालाब, बहादुरपुर, नदलाल छपरा तालाब सहित जो गाव पटना शहरी क्षेत्र में शामिल हुए उस मौजे में अब आहर, पइन, नहर तालाब और जलाशय मिटाकर मकान बना दिए गए.शहर के बीच कुछ तालाब बचे हैं, जो सकट में हैं. कच्ची तालाब, सचिवालय तालाब, मानिकचद तालाब और अदालतगज तालाब हैं, लेकिन विलुप्त होने का सकट बरकरार है.जलाशयों पर बढ़ते खतरे के प्रति आगाह नहीं हुए तो मिट जायेगी हमारी हस्ती .

शहर में आबादी बढ़ने के कारण पानी का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है.इतना ज्यादा कि 2030 तक पटना में पानी का सकट विकराल हो जाएगा. ग्राउंड वाटर रिचार्ज के जो भी माध्यम हैं वह कंक्रीट में तब्दील हो जा रहे हैं. ऐसे ग्राउंड वाटर रिचार्ज नहीं किये जाने पर पेय जल संकट बहुत गंभीररूप धारण कर सकता है.जो जलाशय  हमें बचा सकते थेअब  वहीं  नहीं बचे तो  फिर  हमें  कौन बचाएगा.जलाशय बचाइये  अपना  जीवन बचाइये .

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