तेजस्वी से 2019 का हिसाब चुकता करने की तैयारी है पप्पू-कन्हैया!
सिटी पोस्ट लाइवः सियासत में वक्त जब बदलता है तो सबकुछ बदल जाता है। हार और जीत नेताओं की तकदीर बदल देती है। जीत गये तो सिंकदर और हार गये तो समझिए हनक गयी। बिहार में मौजूदा वक्त में तेजस्वी यादव से बेहतर सियासत के इस स्वभाव को शायद कोई नहीं जान सकता है क्योंकि तेजस्वी ने राजनीति के इस स्वभाव को जिया है। क्रिकेटर से नेता बने तेजस्वी बखूबी यह जानते हैं कि जीत हार के लिए परफार्मेंस सबकुछ नहीं होता बल्कि पिच भी पढ़ना पड़ता है। तेजस्वी ने शायद परफार्मेंस देने की कोशिश की लेकिन क्रिकेट वाला हिसाब-किताब सियासत में भूल गये। सियासत की पिच को तेजस्वी नहीं पढ़ पा रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में तेजस्वी की हनक कुछ ऐसी थी कि पप्पू यादव, कन्हैया कुमार जैसे नेताओं की महागठबंधन में एंट्री नहीं होने दी।
कन्हैया कुमार और पप्पू यादव को अलग-थलग करके रखा। लेकिन अब शायद वक्त बदल गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आरजेडी एक भी सीट नहीं जीत पायी। किशनगंज की सीट कांग्रेस के हिस्से आयी बाकि सबका हाथ खाली हीं रहा। एक तो इतना खराब प्रदर्शन, दूसरा आरजेडी के अंदरखाने की कलह और हालिया दौर में तेजस्वी यादव का लंबा होता राजनीतिक अज्ञातवास। इन तीन वजहांे से तेजस्वी के सियासी दुश्मनों को मौका मिल गया है उनसे बदला लेने का। बिहार में एक तीसरे मोर्चे कवायद शुरू हो गयी है और पूर्व सीएम जीतन राम मांझी, कन्हैया कुमार और पप्पू यादव हाथ मिला चुके हैं।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में तीसरा मोर्चा कितना कारगर साबित होगा यह तो भविष्य बताएगा लेकिन तीसरे मोर्चे के निर्माण के लिए जी-जान से जुटे पप्पू यादव की शुरूआती सफलता यही है कि वे पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और कन्हैया कुमार को साथ लाने में कामयाब रहे हैं। यानि महागठबध्ंान की चिंगारी को पप्पू यादव ने हवा दे दी है और उसके बिखरने का सिलसिला शुरू हो गया है। पप्पू यादव ने कांग्रेस से भी यह अपील की है कि वो साथ आए और अगर कांग्रेस साथ आती है तो आरजेडी अलग-थलग पड़ जाएगी।
कुल मिलाकर देखें तो तस्वीर यही दिखायी देती है कि पप्पू यादव और कन्हैया ने मिलकर तेजस्वी से हिसाब चुकता करने की तैयारी कर ली है और तेजस्वी की मुश्किल यह है कि शुरूआती सफलता के तहत पूर्व सीएम मांझी भी जा मिले हैं। उधर कांग्रेस ने जो संकेत दिये हैं वो भी तेजस्वी यादव और आरजेडी के लिए अच्छे नहीं हैं क्योंकि कांग्रेस नेता प्रेमचंद मिश्रा ने कहा है कि बिहार में महागठबंधन सिर्फ 2029 के लोकसभा चुनाव के लिए बना था। जाहिर है अगर पूर्व सीएम मांझी की तरह कांग्रेस को भी पप्पू यादव का साथ रास आया तो तेजस्वी यादव और आरजेडी बिहार की सियासत में अलग-थलग पड़ेंगे और शायद पप्पू यादव और कन्हैया चाहते भी यही हैं।
Comments are closed.